‘एलएसी’ पर विकास प्रकल्पों को गतिमान करके भारत ने दिया चीन को प्रत्युत्तर

‘एलएसी’ पर विकास

नई दिल्ली – गलवान घाटी में कर्नल संतोष बाबू समेत २० भारतीय सैनिकों ने बलिदान देने की घटना का एक वर्ष पूरा हुआ है। इन शहीदों का पूरे देशभर में कृतज्ञता के साथ स्मरण किया जा रहा है। इसी अवसर पर भारतीय सेना ने रेल प्रशासन के सहयोग से ‘न्यू फ्रेट कॉरिडॉर’ का सफल परीक्षण किया। इससे ‘एलएसी’ पर तैनात भारतीय सैनिकों को जलद गति से हथियार और अन्य रक्षा सामान की आपूर्ति करना मुमकिन होगा। गलवान में हुए संघर्ष के बाद भारतीय सेना ने चीन से जुड़ी सीमा पर बुनियादी सुविधाओं का विकास गतिमान किया है और यह फ्रेट कॉरिडॉर इसी का हिस्सा है। 

हरियाणा के न्यू रेवारी से न्यू फुलेरा के बीच बनाए गए इस फ्रेट कॉरिडॉर के परीक्षण को प्राप्त हुई सफलता बड़ी अहमियत रखती है। चीन ने भारतीय सीमा के करीब आवश्‍यक बुनियादी सुविधाओं का विकास किया था। इस पर प्रत्युत्तर देने के लिए भारत ने भी चीन से जुड़ी अपने सरहदी क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं के प्रकल्पों का काम शुरू किया था। ऐसे प्रकल्प शुरू करके भारत हमें चुनौती ना दे, यह माँग चीन कर रहा था। इस मुद्दे पर भारत को धमकाने का सिलसिला भी चीन ने शुरू किया था। बीते वर्ष चीन की सेना ने लद्दाख के ‘एलएसी’ के करीब की हुई घुसपैठ और गलवान में हुए संघर्ष की यह पृष्ठभूमि थी।

गलवान में संघर्ष के बाद भारत पीछे हटेगा, इस सोच में चीन था। लेकिन, अपने २० सैनिक खोने के बाद भारतीय जनता के मन में चीन के विरोध में असंतोष भड़का था। भारत सरकार ने भी चीन के खिलाफ आक्रामक निर्णय किए। कुछ समय बाद यह मुद्दा पिछड़ जाएगा और भारत सबकुछ भूल जाएगा, इस भ्रम में रहनेवाले चीन को अब सच्चाई का अहसास हुआ है। इसी वजह से चीन समेटने की भाषा बोलने लगा हैं। लेकिन, सलोखा स्थापित करने के लिए लद्दाख की सीमा से पूरी तरह से पीछे हटने के लिए चीन तैयार नहीं है। बल्कि, चीन के गुमराह करनेवाले बयानों पर अब भरोसा करना मुमकिन नहीं होगा, यह इशारा भारत दे रहा है।

गलवान के संघर्ष का एक वर्ष पूरा हो रहा था तभी भारतीय नागरिकों के गुस्से का हमारे विरोध में फिर से उद्रेक होगा, इस बात का अहसास रखनेवाले चीन ने फिर एक बार सहयोग और शांति की भाषा शुरू की है। चीन की सेना के निवृत्त कर्नल झाऊ बो ने दोनों देशों के ‘एलएसी’ पर ‘बफर ज़ोन’ होना चाहिये, यह माँग की है। इससे गलवान जैसे संघर्ष से बचना मुमकिन होगा, ऐसा बो का कहना है। लेकिन, ‘एलएसी’ पर पहले से ही इस तरह के बफर ज़ोन थे एवं चीन की वहां हो रही घुसपैठ नियंत्रण में थी, तब तक वहां पर संघर्ष नहीं हुआ था, इस ओर चीनी झाऊ बो अनदेखा कर रहे है। परंतु चीन अधिकृत स्तर पर भारत को ऐसा प्रस्ताव नहीं दे रहा है, यह बात भी ध्यान आकर्षित कर रही है।

इसी बीच, भारतीय सेना ने अब लद्दाख के ‘एलएसी’ पर अपनी तैनाती और तैयारी प्रचंड़ मात्रा में बढ़ाकर वहां पर लंबे समय तक रुकने की तैयारी की है। इसी के साथ ‘एलएसी’ पर बुनियादी विकास प्रकल्पों को गतिमान किया जा रहा है। अगले दो से तीन वर्षों में भारत इस क्षेत्र में चीन के मुँहतोड़ व्यवस्था विकसित करेगा, यह जानकारी रक्षाबलप्रमुख बिपीन रावत ने कुछ दिन पहले साझा की थी। इस वजह से भारत पर लष्करी दबाव बढाने की चीन की कोशिश अब इसी देश पर उलटने की बात स्पष्ट दिख रही है। साथ ही लद्दाख के ‘एलएसी’ पर की हुई हरकत की बड़ी आर्थिक कीमत चीन को चुकानी पड़ रही है।

चीनी सामान के अलावा भारतीय जनता के लिए विकल्प नहीं है, इसलिए कितना भी क्रोधित होने के बावजूद भारतीय नागरिकों को चीनी सामान खरीदने ही पड़ेंगे, ऐसे बयान चीन के मुखपत्र किसी समय कर रहे थे। लेकिन, अब भारत सरकार ने चीन के ऐप्स पर पाबंदी लगाने के साथ चीन के व्यापार में अड़ंगा डालने के निर्णय किए हैं और भारतीय ग्राहकों ने भी चीनी सामान को पीठ दिखाई है। इस वजह से पहले भारत का मज़ाक उड़ानेवाले चीन के माध्यम और विश्‍लेषक अब भारत हमारे देश पर अन्याय कर रहा है, ऐसी भाषा बोलने लगे हैं। अगले दिनों में चीन ने भारत के खिलाफ यही भूमिका जारी रखी तो भारत इससे भी अधिक सख्त भूमिका अपनाकर चीन को झटके दे सकता है, यह बात स्पष्ट दिखाई देने लगी है।

हाल ही में लंदन में हुई ‘जी ७’ की बैठक में विश्‍वभर के प्रमुख देशों ने चीन के खिलाफ मोर्चा बनाना शुरू करने की बात स्पष्ट हुई है। इसमें भारत का समावेश इस मोर्चे का बल प्रचंड़ मात्रा में बढ़ाता दिखाई दे रहा है। इस वजह से चीन की बेचैनी बढ़ रही है और अब चीन भारत को ‘वुहान स्पिरीट’ की याद दिला रहा है। दोनों देश संघर्ष के बगैर सहयोग करें, यह आवाहन भारत में नियुक्त चीन के राजदूत कर रहे हैं। लेकिन, चीन के इस खोखले प्रस्तावों का भारत पर प्रभाव पड़ने की संभावना खत्म हो चुकी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.