‘अटल टनेल’ के रास्ते पहली बार सेना का बेड़ा ‘एलएसी’ पहुँचा

atal-tunnelश्रीनगर – मनाली-लेह को बारह महीनें जुडा रहनेवाला सुरंगी मार्ग ‘अटल टनेल’ से परिवहन शुरू होने के बाद पहली बार भारतीय सेना का बेड़ा इस रास्ते ‘एलएसी’ पर पहुँचा है। युद्ध के समय सैनिक और रक्षा सामान का तेज़ परिवहन करने के नज़रिये से इस सुरंगी मार्ग की सामरिक अहमियत काफी ज्यादा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में ‘अटल टनेल’ का उद्घाटन किया था। तभी चीन सरकार के मुखपत्र ‘ग्लोबल टाईम्स’ ने इस सुरंगी मार्ग का भारत को युद्ध के समय लाभ नहीं होगा, यह धमकी दी थी। इस पृष्ठभूमि पर गुरूवार के दिन अटल टनेल के रास्ते लष्करी गाड़ियों का बेड़ा पहली बार ‘एलएसी’ पर पहुँचा।

मनाली-केलाँग-लेह इस ४७५ किलोमीटर दूरी के राजमार्ग का निर्माण करने की रक्षा मंत्रालय की कोशिशों में अटल टनेल एक अहम चरण है। ठंड़ के मौसम में इस क्षेत्र में काफ़ी बरफ गिरती है और इसके कारण यह मार्ग अन्य क्षेत्रों से कट जाता है। लेकिन, इस सुरंगी मार्ग की वजह से मनाली और लेह अब साल के बारहों महीने जुड़े रहेंगे। यह सुरंग तैयार करने के लिए १० वर्ष काम चला। समुद्री सतह से १० हज़ार फीट की ऊंचाई पर निर्माण किया गया ८.८२ किलोमीटर दूरी का यह टनेल विश्‍व का सबसे लंबा टनेल है।

atal-tunnelचीन और पाकिस्तान के साथ बढ़ रहे तनाव की पृष्ठभूमि पर ‘अटल टनेल’ का काम पूरा होने से सेना को बड़ी सहायता होगी। इस सुरंगी मार्ग की वजह से युद्ध के दौरान कम समय में ‘लाईन ऑफ ऐक्च्युअल कंट्रोल’ (एलएसी) तक लष्करी गाड़ियां और सैनिकों को कम समय में पहुँचाना मुमकिन होगा। सेना की गाड़ियों के साथ ही टैंक भी इस टनेल से यात्रा कर सकते हैं और इसके कारण इस सुरंगी मार्ग की अहमियत रेखांकित होती है।

३ अक्तुबर के दिन इस टनेल का उद्घाटन किया गया और इसके बाद यह टनेल पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। इसके पांच दिन बाद ही सेना का बेड़ा इस टनेल से ‘एलएसी’ पर पहुँचा। इस टनेल की वजह से सरहदी क्षेत्र की बुनियादी सुविधाओं को मज़बूती मिलने की बात कही जा रही है।

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