भारत और युरोपीय महासंघ के व्यापारिक सहयोग का महत्व बढ़ा

व्यापारिक सहयोगनई दिल्ली – अपना व्यापारिक साझेदार होनेवाले युरोपीय महासंघ के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने में क्या भारत को सफलता मिलेगी, ऐसी चर्चा शुरू हुई है। कोरोना की महामारी के कारण दुनियाभर के प्रमुख देशों की अर्थव्यवस्थाओं के सामने गंभीर संकट खड़ा हुआ है। इसमें से मार्ग निकालकर अर्थव्यवस्था पहले जैसी करने के लिए भारत और युरोपीय महासंघ के सदस्य देशों को भी इस व्यापारिक समझौते की बहुत बड़ी आवश्यकता है। उसमें भी चीन के साथ महासंघ के राजनीतिक विवाद जब तीव्र हुए हैं, तब भारत के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए महासंघ पहल कर रहा दिखाई देता है।

कुछ ही दिन पहले भारत के प्रधानमंत्री मोदी और युरोपीय महासंघ के नेतृत्व का वर्चुअल सम्मेलन संपन्न हुआ। इस समय मुक्त व्यापारिक समझौते पर चर्चा नये सिरे से शुरू होने का ऐलान किया गया। युरोपीय महासंघ के साथ भारत के सहयोग का नया अध्याय शुरू हुआ है, ऐसा दावा महासंघ के नेताओं ने किया था। भारत ने भी उसपर संतोष ज़ाहिर किया था। भारत और महासंघ के बीच उत्पादनों के स्तर पर होनेवाला वार्षिक व्यापार ६२.८ अरब युरो इतना है। दशकभर की कालावधि में इसमें ७२ प्रतिशत बढ़ोतरी दर्ज़ हुई है। फिर भी इस व्यापार का अधिक विस्तार हो सकता है। मुक्त व्यापारिक समझौता अगर संपन्न हुआ, तो इस व्यापार की व्याप्ति भारी मात्रा में बढ़ेगी, ऐसे दावे किए जाते हैं।

फिलहाल भारत में लगभग ६ हज़ार युरोपीय कंपनियाँ कार्यरत हैं। उनके जरिए भारत में ठेंठ १७ लाख लोग रोजगार प्राप्त करते हैं। वहीं, अप्रत्यक्ष रूप में इन युरोपियन कंपनियों के कारण ५० लाख लोगों को रोजगार मिलता है, ऐसी जानकारी महासंघ द्वारा दी जाती है। अगर मुक्त व्यापारिक समझौता संपन्न हुआ, तो युरोपीय कंपनियों का भारत में निवेश भारी मात्रा में बढ़ेगा और भारत में रोज़गार निर्माण को इससे बढ़ावा मिल सकेगा। वहीं, युरोपीय कंपनियाँ इस समझौते के कारण, भारत के मार्केट का अधिक मुक्त रूप से फ़ायदा उठा सकेंगी।

वहीं, दूसरी तरफ भारतीय उत्पादनों के लिए युरोप का मार्केट अधिक ही खुला होगा। फिलहाल कोरोना की महामारी के कारण दुनियाभर के सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर आये हुए तनाव को देखते हुए, भारत और युरोपीय महासंघ के बीच व्यापक सहयोग अत्यावश्यक होने की बात सामने आ रही है। युरोपीय महासंघ ने चीन के साथ, व्यापार और निवेश विषयक सहयोग बढ़ाने के लिए समझौता करने की तैयारी की थी। लेकिन चीन के झिंजियांग प्रांत के उइगरवंशियों पर चीन द्वारा किए गए अत्याचारों का मुद्दा महासंघ ने उपस्थित किया। उसके बाद चीन ने, महासंघ की संसद के सदस्य होनेवाले कुछ लोगों पर प्रतिबंध लगाए थे। इस कारण चीन और महासंघ के बीच का यह समझौता स्थगित हुआ था।

ऐसी परिस्थिति में महासंघ का भारत के साथ व्यापारिक सहयोग सामरिक दृष्टि से अत्यंत अहम साबित होता है। आनेवाले समय में युरोपीय महासंघ के सदस्य देशों के साथ भारत का व्यापार और निवेश क्षेत्र में सहयोग, चीन पर होनेवाली निर्भरता कम करेगा। इससे चीन की आर्थिक वर्चस्ववादी नीति को झटका लग सकता है।

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