अमरीका की पाखंड़ी वामपंथी विचारधारा, बहिष्कार की संस्कृति फ्रान्स के लिए खतरनाक – राष्ट्राध्यक्ष मैक्रॉन समेत फ्रेंच नेता और विचारकों की चेतावनी

पैरिस/वॉशिंग्टन – नियंत्रण के बाहर पाखंड़ी वामपंथी विचारधारा अमरीका से फ्रान्स में आयात हो रही है। इससे अपने देश के लिए बड़ा खतरा है, ऐसा इशारा फ्रान्स के राष्ट्राध्यक्ष इमैन्युएल मैक्रॉन ने दिया था। इसकी गूंज फ्रान्स में सुनाई देने लगी है। मैक्रॉन के सियासी विरोधक मरिन ली पेन ने भी इस भूमिका पर उनका समर्थन व्यक्त किया है। साथ ही फ्रान्स के १०० से अधिक विचारकों ने एक खुला खत जारी किया है और अमरीका से पहुँच रही पाखंड़ी वामपंथी विचारधारा और बहिष्कार की संस्कृति फ्रान्स के अस्तित्व के लिए खतरा बन सकते हैं, यह इशारा दिया है।

वामपंथी विचारधाराबीते वर्ष फ्रान्स में पैरिस ऑपेरा के कृष्णवर्णी कलाकारों ने कंपनी में वांशिक विविधता की आवश्‍यकता स्पष्ट करनेवाला खत जारी किया था। इस पर संज्ञान लेकर ऑपेरा के नए प्रमुख अलेक्ज़ांडर नीफ ने एक रपट प्रसिद्ध की। इस रपट में, ऑपेरा में अलग अलग वंश के नागरिकों को स्थान देने का वादा किया गया था। साथ ही कंपनी द्वारा पेश हो रहे कार्यक्रमों में ‘ब्लैकफेस’ जैसे संवेदनशील मुद्दे का इस्तेमाल नहीं होगा, यह वादा भी उन्होंने किया था। नीफ ने जारी किए इस रपट ने फ्रान्स में फिर एक बार अमरिकी विचारधारा के गलत प्रभाव का मुद्दा उठा है।

फ्रान्स के अग्रीम अखबार ‘ली मॉन्ड’ ने फ्रान्स अब धीरे-धीरे अमरीका की राह पर चल रहा है, ऐसा कहकर तीव्र नाराज़गी व्यक्त की। किसी भी तरह की त्रासदी ना हो, इस वजह से कलाकार और कार्यक्रमों पर स्वयं ही प्रतिबंध लगाने की प्रवृत्ती मज़बूत हो रही है, यह आलोचना भी इस अखबार के संपादक मिशेन गुरिन ने की है। फ्रान्स की प्रमुख विरोधी नेता मरिन ली पेन ने भी नीफ के निर्णय की आलोचना की है। वंशविवाद का विरोध करने के नाम से कथित उदारमत की विचारधारा के लोग कैसे मूर्खतापूर्ण बर्ताव करते हैं, यही बात इससे दिखाई देती है, ऐसी फटकार ली पेन ने लगाई।

वामपंथी विचारधाराअमरीका की विचारधारा और प्रदर्शनों के फ्रान्स में हो रहे प्रभाव का मुद्दा बीते वर्ष से ही चर्चा में है। अमरीका में ‘ब्लैक लाईव्ज मैटर’ के प्रदर्शनकारियों को समर्थन देने के लिए फ्रान्स में भी रैली निकाली गई थी। यह बात रैली तक सीमित नहीं रही और फ्रान्स के गुटों ने देश की युनिवर्सिटीज्‌ को लक्ष्य करना शुरू किया। अलग अलग विचारकों को व्याख्यान के लिए ना बुलाया जाए, नाटकों में काम कर रहे श्‍वेतवर्णी छात्र मुखौटे या ‘डार्क मेकअप’ का इस्तेमाल ना करें, इस उद्देश्‍य से दबाव बनाने की घटनाएँ भी हुई हैं।

इन घटनाओं का फ्रान्स के सियासी दायरे में विचारकों के गुटों ने भी गंभीरता से संज्ञान लिया है। राष्ट्राध्यक्ष मैक्रॉन ने अमरीका से आ रही विचारधारा का सीधा ज़िक्र करके इसके खिलाफ सावधानी बरतने की चेतावनी दी। तभी, फ्रान्स के शिक्षामंत्री जीन मिशल ब्लैंके ने नजदिकी दिनों में अमरीका की युनिवर्सिटीज्‌ से आ रही विचारधारा के विरोध में फ्रान्स को संघर्ष करना पड़ेगा, यह इशारा दिया। फ्रान्स के कई विचारकों ने खुला खत लिखकर इसका समर्थन किया है।वामपंथी विचारधारा

फ्रेंच इतिहासकार पिअर-आंद्रे टैगिस ने यह बयान किया कि, अमरीका की तरह फ्रान्स में कृष्णवर्णियों का मुद्दा उपस्थित करना पूरी तरह से कृत्रिम बात साबित होती है। फ्रान्स की समाजशास्त्र की विशेषज्ञ नथाली हेनिश ने अमरीका से आ रहे गलत प्रभाव के विरोध में खड़े रहने के लिए एक गुट का भी गठन किया है। पाखंड़ी वामपंथी विचारधारा और बहिष्कार की संस्कृति का फ्रान्स में ही नहीं, बल्कि जर्मनी जैसे प्रमुख यूरोपिय देश में भी विरोध होने लगा है। बीते हफ्ते में ही जर्मनी में वामपंथी विचारधारा की नेता सारा वागक्नेश्‍ट ने ऐसी सख्त चेतावनी दी थी कि, वामपंथी विचारधारा के गुटों ने अपना ढ़ोंग और असहिष्णु भूमिका छोड़ी नहीं है और जर्मनी में भी अमरीका की तरह बड़ी दरार निर्माण करनेवाला माहौल तैयार होगा।

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