प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा से सम्मानजनक वापसी करने के लिए चीन का संघर्ष – तनाव कम करने पर ‘ब्रिगेडियर’ स्तर की चर्चा में हुई सहमति

नई दिल्ली – भारत-चीन की प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा पर अधिक तैनाती ना करने पर दोनों देशों की लष्करी चर्चा में सहमति होने का समाचार है। लेकिन, तैनात सेना की वापसी करने के मुद्दे पर अभी दोनों देशों में समझौता नहीं हो सका है। लेकिन, अगले चरण की चर्चा में इस मुद्दे पर अधिक विस्तार से बातचीत करके प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा पर सौहार्दता स्थापित करने का निर्णय दोनों देशों के लष्करी अधिकारियों ने किया। दोनों देशों की इस ब्रिगेड़ियर स्तर की बैठक के बाद संयुक्त निवेदन जारी करके यह ऐलान किया गया। इससे पहले मास्को में भी भारत और चीन के विदेशमंत्री की चर्चा होने के बाद संयुक्त निवेदन जारी किया गया था। लेकिन, इसके बाद प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा पर तनाव कम होने के बजाय तनाव में अधिक बढ़ोतरी हुई थी।

प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा

दोनों देशों के बीच हुई इस ब्रिगेड़ियर स्तर की चर्चा के बाद प्रसिद्ध किया गया निवेदन यानी तनाव कम करने की दिशा में उठाया गया पहला कदम होने के संकेत दोनों देशों ने दिए हैं। लेकिन, इस चर्चा में चीन ने २९ अगस्त के पहले की स्थिति स्थापित हो, यह माँग की। इसका मतलब भारत ने पैंगॉन्ग त्सो के दक्षिणी ओर स्थित अहम चोटियों पर प्राप्त किया हुआ नियंत्रण छोड़कर पीछे हटे, ऐसा चीन का कहना है। तभी, भारत ने प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा पर अप्रैल से पहले बनी स्थिति की उम्मीद होने का इशारा चीन को दिया। इसके कारण घुसपैठ करनेवाले चीनी सैनिकों को प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा से पूरी तरह से पीछे हटना होगा। यह माँग स्वीकारने से चीन ने इन्कार किया तो चीन की माँग ठुकरार भारत भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं होगा, यह बात इस चर्चा में स्पष्ट की गई।

इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच कड़ा मतभेद होने के बावजूद आनेवाले दिनों में प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा पर अधिक तैनाती बढ़ाकर तनाव में बढ़ोतरी नहीं करेंगे, इस पर ब्रिगेड़ियर की चर्चा में सहमति हुई है। साथ ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग के बीच सीमा विवाद पर हुई चर्चा के दायरे में ही अगली बातचीत होगी, यह निर्णय भी सहमति से किया गया। ऐसा होने के बावजूद दोनों देशों ने लद्दाख की प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा पर की हुई बड़ी तैनाती देखें तो यह तनाव इतने में कम होने की संभावना नहीं है। फिलहाल चीन के सैनिक लद्दाख की ठंड़ का मुकाबला करने के लिए तयार ना होने से इस क्षेत्र की तैनात कम करना चीन के हित में रहेगा। ऐसे में भारत ने भी इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में तैनाती करने से चीन का कोई भी उद्देश्‍य सफल होना असंभव है। इसी कारण चीन अब समेटने की भाषा बोलने लगा है। लेकिन, अगले दिनों में अवसर प्राप्त होते ही चीन पलटे बिना नहीं रहेगा, यह बात ध्यान में रखकर भारत अपनी लष्करी आक्रामकता जारी रखे और चीन पर दबाव बढ़ाए, यह बात पूर्व लष्करी अधिकारी सूचित कर रहे हैं।

प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा

भारत और चीन ने प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा पर बड़ी मात्रा में सेना तैनात करके दुबारा हम युद्ध के लिए तैयार होने का संदेश एक दूसरे को दिया था। लेकिन, अब अतिरिक्त तैनाती बंद करने का ऐलान करके दोनों देश एक-दूसरे को हम युद्ध की तैयारी में जुटे ना होने के संदेश दे रहे हैं। यह बात संतोष दे रही है, ऐसा दावा ‘चेंगड़ू इन्स्टिट्यूट ऑफ वर्ल्ड अफेअर्स’ नामक अभ्यासगुट के अध्यक्ष लाँग शिंग्चून ने किया है और इस बात पर संतोष भी व्यक्त किया है। भारत को वर्ष १९६२ की हार की याद दिला रहे चीन की भूमिका में हुआ यह बदलाव अहम है। प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ होने के बाद भारत के रिस्पान्स का अंदाजा लगाने में की हुई गलती चीन को अब इस तरह से सम्मानजनक वापसी करने के लिए मज़बूर कर रही है।

लेकिन, चीनने यह समझदारी का निर्णय लेने में काफी विलंब किया है और अपना काफी बड़ा नुकसान किया है, यह बात भी सामने आ रही है। भारत का विश्‍वासघात करके फिरसे घुसपैठ करनेवाले चीन को भारत ने इस घुसपैठ की बड़ी कीमत चुकाने के लिए मज़बूर किया है। इसके साथ ही चीनी उत्पादनों के बगैर भारत रह नहीं सकता, ऐसे दावे करनेवाले चीन को भारत ने बड़ा तमाचा जड़ा है। गलवान वैली में हमला करने के बाद भारत से प्राप्त हुए कड़े लष्करी प्रत्युत्तर के साथ ही चीनी ऐप्स और कंपनियों पर पाबंदी लगाने जैसे सख्त निर्णय भी भारत कर सकेगा, यह बात चीन ने सोची भी नहीं थी। इसी कारण प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा पर गलत हरकत करने की बड़ी कीमत चीन को चुकानी पड़ रही है।

प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा

इसके बावजूद भारत की कड़ी भूमिका के सामने हमें झुकना पड़ा, यह संदेश ना दिया जाए, इसके लिए चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत संघर्ष कर रही है। खास तौर पर चीन की जनता में यह संदेशा पहुँचा तो इसके विपरित परिणाम सामने आएंगे, इसका अहसास राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग को हुआ है। इसी वजह से भारत के साथ जारी सीमा विवाद अब राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग की राजनीतिक प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है। इस बात का अहसास भारतीय कूटनीतिक दिला रहे हैं। इसी वजह से किसी भी स्थिति में चीन पर भरोसा करने की गलती भारत ना करे, यह बात वरिष्ठ कूटनीतिक ड़टकर कह रहे हैं।

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