इंडो-पैसिफिक के लिए ब्रिटेन भी भारत के साथ सहयोग बढ़ाएगा

नई दिल्ली – इंडो-पैसिफिक क्षेत्र क्षेत्र में अपनी विस्तारवादी हरकतों के जरिए अस्थिरता मचानेवाले चीन को रोकने के लिए सहयोग करने पर ‘क्वाड’ देशों का एकमत हुआ है। भारत, अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के नेताओं की इस मामले में बैठक संपन्न होने के बाद, यह सहयोग अधिक व्यापक बनने के संकेत मिल रहे हैं। अपने हितसंबंधों की रक्षा के लिए ब्रिटेन भी चीनविरोधी मोरचा बनाने के लिए भारत से सहायता ले सकेगा, ऐसे स्पष्ट रूप में संकेत मिल रहे हैं। खासकर युरोपीय महासंघ से एक्झिट करने के बाद ब्रिटेन के लिए, भारत तथा आसियान देशों का सहयोग बहुत महत्वपूर्ण साबित होगा, ऐसे दावे विश्लेषक कर रहे हैं।

इंडो-पैसिफिक

अप्रैल महीने के अंत में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन भारत के दौरे पर आने वाले हैं। इस दौरे से पहले प्रधानमंत्री जॉन्सन ने भारत के प्रधानमंत्री मोदी के साथ फूल पर चर्चा की थी। इस चर्चा में, दुनिया को कोरोना प्रतिबंधक टीकों की सप्लाई करनेवाला भारत ‘दुनिया की फार्मसी’ बना है, ऐसी सराहना प्रधानमंत्री जॉन्सन ने की थी। अप्रैल महीने के अपने इस दौरे में, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री अपने देश की इंडो-पैसिफिक नीति घोषित करेंगे कमा ऐसे दावे किए जा रहे हैं। चीन के विरोध में अमारिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का सहयोग प्राप्त करने में सफल हुए भारत के लिए यह बात बहुत ही महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। क्योंकि ब्रिटेन की नई नीति में भारत के साथ के सहयोग को सर्वाधिक महत्व होगा।

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के कारनामें खतरनाक स्तर तक पहुँचे हैं, इसपर दुनिया के प्रमुख देशों का एकमत हुआ है। क्वाड का सहयोग दुनिया के सामने आ रहा है, ऐसे में युरोपीय देश भी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की गतिविधियों की ओर बहुत ही गंभीरता से देख रहे हैं। फ्रान्स ने इस क्षेत्र में गश्ती के लिए अपने युद्धपोत भेजे होकर, यातायात की स्वतंत्रता के लिए यह गश्त होने की घोषणा फ्रान्स द्वारा की जा रही है। फ्रान्स तीनों सेना का विलोम शब्द विध्वंसक वियतनाम के दौरे पर होकर, उसके पीछे भी यही हेतु होने का दावा फ्रान्स द्वारा किया जा रहा है।

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थित अपने द्वीपों को चीन से होनेवाले खतरे की पृष्ठभूमि पर फ्रान्स ये एहतियात बरत रहा है। साथ ही, फ्रान्स ने भारत से सहयोग प्राप्त करके चीन के इस खतरे का सामना करने की पूरी तैयारी की है। ऐसी स्थिति में, ब्रिटेन ने भी अपनी इंडो-पैसिफिक विषयक नीति बनाने की तैयारी करने के संकेत मिल रहे हैं। प्रधानमंत्री जॉन्सन के भारत दौरे में इसकी घोषणा की जाएगी, ऐसा माध्यमों का कहना है। इन दिनों ब्रिटेन के चीन के साथ संबंध विभिन्न कारणों से तनावग्रस्त है। चीन का वर्चस्व ठुकरा देने की माँग करनेवाले हांगकांग स्थित लोकतंत्रवादियों पर चीन कर रहा दमनतंत्र का इस्तेमाल ब्रिटेन को मान्य नहीं। हांगकांग को चीन के कब्जे में देते हुए, यहाँ की जनता पर जुल्म नहीं किया जाएगा, इसका यकीन दिलाने वाला समझौता चीन ने ब्रिटेन के साथ किया था, इसकी याद ब्रिटेन करा रहा है ।

इसीके साथ चीन की इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिए होने वाली विस्तारवादी नीति अपने लिए भी उतनी ही खतरनाक होने का एहसास ब्रिटेन को हुआ है। इसी कारण भारत के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए ब्रिटेन तेजी से कदम उठाता दिख रहा है। इसके अनुसार, ब्रिटेन ने अपने देश में होनेवाली जी-७ की बैठक के लिए भारत को आमंत्रित किया है। उसी समय, भारत ने दुनिया को कोरोना प्रतिबंधक टीके की सप्लाई करने के लिए की पहल की ब्रिटेन द्वारा तहे दिल से प्रशंसा की जा रही है। इससे पहले, चीन के कारण ही दुनिया में कोरोना की महामारी फैल गई, ऐसी तीखी आलोचना ब्रिटेन ने की थी। ब्रिटेन में कुछ लोगों ने, यह संक्रमण फैलानेवाले चीन से मुआवजा वसूल करने की माँग की थी। इस पृष्ठभूमि पर, ब्रिटेन के भारत के साथ होनेवाले सहयोग का महत्व नए सिरे से अधोरेखांकित किया जा रहा है।

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