भारत-ऑस्ट्रेलिया का सहयोग तेज़ी से बढ़ रहा है – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

नई दिल्ली/कैनबेरा – भारत और ऑस्ट्रेलिया के सहयोग में तेज़ी से प्रगति हो रही है| खास तौर पर विरल खनिज, जल व्यवस्थापन और अक्षय ऊर्जा के क्षेत्रों में दोनों देशों का सहयोग काफी तेज़ी से बढ़ रहा है, ऐसा कहकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर संतोष व्यक्त किया| ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मौरिसन से वर्चुअल द्विपक्षिय चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री ने दोनों देशों के सहयोग की अहमियत रेखांकित की| साथ ही यूरोप में इन गतिविधियों की वजह से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की ओर अनदेखी नहीं होनी चाहिये, इस पर भारत और ऑस्ट्रेलिया के प्र्रधानमंत्रियों की सहमति होने का सूचक बयान भारत के विदेश मंत्रालय ने किया|

india-australia-cooperation-narendra-modiयूक्रैन में युद्ध के दौरान, अमरीका एवं विश्‍वभर के अन्य प्रमुख देशों की ‘इंडो-पैसिफिक’ क्षेत्र की ओर अनदेखी हो रही है| इसका लाभ उठाकर चीन इस क्षेत्र में विस्तार की हरकतें तीव्र करेगा और ताइवान पर हमला भी कर सकता है, ऐसा सामरिक विश्‍लेषकों का कहना है| अमरीका-नाटो यूक्रैन युद्ध में व्यस्त हैं और तभी ताइवान पर कब्ज़ा करने का सबसे बेहतर अवसर हमारी ओर चलकर आया है, इस सोच में चीन होने की बात पहले भी स्पष्ट हुई है| इस पृष्ठभूमि पर क्वाड के सदस्य देश भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने अपना सहयोग मज़बूत करने का निर्णय किया है|

शनिवार को जापान के प्रधानमंत्री फुमिओ किशिदा भारत के दौरे पर आए थे| इसके बाद अब भारत और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्रियों की वर्चुअल चर्चा हुई| इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की स्थिरता और शांति एवं सुरक्षा को इस चर्चा में विशेष अहमियत दी गई थी| प्रधानमंत्री मोदी ने प्रधानमंत्री किशिदा और प्रधानमंत्री मॉरिसन से हुई चर्चाओं में यही मुद्दा सबसे अहम था| यूरोप में जारी गतिविधियों की वजह से इंडो-पैसिफिक की ओर अनदेखी नहीं होनी चाहिये| फिलहाल यूरोप में जो कुछ चल रहा है वह इंडो-पैसिफिक में ना हो, इसके लिए सावधान रहने के लिए प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री मॉरिसन की चर्चा में सहमति हुई।

नाटो ने यूरोप में अपनाई विस्तारवादी नीति के कारण रशिया ने यूक्रैन पर हमला किया| अमरीका ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को लेकर ऐसी ही नीति अपनाई है जिसकी वजह से इस क्षेत्र में खतरा बढ़ा है, यह दावा चीन के उप-विदेशमंत्री ने हाल ही में किया था| दूसरे शब्दों में चीन ने ताइवान पर हमला किया तो इसके लिए अमरीका की नीति ज़िम्मेदार होगी, यही बात चीन के उप-विदेशमंत्री सूचित कर रहे हैं| इस पृष्ठभूमि पर भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया के सहयोग की अहमियत प्रचंड़ बढ़ती हुई दिख रही है|

इन तीनों देशों को इसका अहसास है और ताइवान की सुरक्षा एवं चीन की आक्रामक हरकतें रोकने के लिए अब अमरिका पर निर्भर नहीं रहा जा सकता| क्योंकि, अमरीका का ध्यान रशिया विरोधि हरकतों में लगा हुआ है, यह बात भारत-जापान और ऑस्ट्रेलिया ने ध्यान में रखी है| द्विपक्षीय चर्चा और नेताओं की मुलाकात से इसके स्पष्ट संकेत प्राप्त हो रहे हैं| इसी बीच, भारत और चीन के संबंध सामान्य होने के लिए पूर्व लद्दाख की सीमा पर शांति स्थापित होना बड़ा आवश्यक होने का बयान प्रधानमंत्री मोदी ने इस दौरान किया| दो दिन पहले भारत के विदेश मंत्रालय ने भी चीन को इसका अहसास कराया था|

जल्द ही चीन के विदेशमंत्री वैंग ई भारत के दौरे पर आ रहे हैं| यूक्रैन में जारी युद्ध की पृष्ठभूमि पर अमरीका ने रशिया और रशिया समर्थक देशों के खिलाफ सख्त भूमिका अपनाई है| ऐसे समय में भारत का सहयोग विश्‍व के प्रमुख देशों के लिए बड़ा ज़रूरी हो गया है और इससे चीन भी अलग नहीं है| इसी कारण पिछले कुछ दिनों से चीन ने लद्दाख के एलएसी पर तनाव को लेकर अपनी भूमिका सौम्य की है| इसके बाद चीन के विदेशमंत्री वैंग ई भारत दौरे पर आ रहे हैं और द्विपक्षीय संबंधों में सुधार करने के लिए चीन कोशिश कर रहा है, इससे यह बात फिर से स्पष्ट हुई| उनके इस दौरे से पहले भारत के प्रधानमंत्री ने एलएसी पर शांति स्थापित करने की पहले से रखी शर्त चीन के सामने स्पष्ट तौर पर रखी हुई दिख रही है|

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