एडवर्ड लॉरेंझ

बाष्प (भाप) के बल से थिरकनेवाली थाली देखकर जेम्स वॉट के मन में प्रश्‍न उठा और उनके द्वारा किए गए अनेक प्रयोगो के बाद स्टीम इंजन का अर्थात बाष्प से चलनेवाले इंजन का आविष्कार हुआ। सेब को गिरते हुए अनेक लोगों ने देखा होगा, किन्तु उससे गुरुत्वाकर्षण शक्ति की खोज करनेवाले एकमात्र न्यूटन ही थे। इसी तरह वातावरण का अनुमान करने का काम करते समय कुछ अलग निष्कर्ष पाये जाने पर, इस विषय में किये गये संशोधन से ‘केऑस’ नाम की गणित की शाखा का निर्माण हुआ।

एडवर्ड लॉरेंझ

कभी कभी वातावरण बिलकुल शांत रहता है। अचानक तूफ़ान आ जाता है। कभी कभी तूफ़ान के साथ वर्षा होने लगती है। हवा में उड़ने वाला जंबो जेट यह अकस्मात हवा के भँवर में फ़स जाता है और हवाई जहाज के लिए खतरनाक हालात बन जाते हैं। कुछ सेकंद पहले तक स्वस्थ रहनेवाला मनुष्य अचानक हृदय की क्रिया के बंद होने पर (हार्ट अटैक) ज़मीन पर गिर जाता है, क्योंकि हृदय पर नियंत्रण रखनेवाले स्पंदन अचानक अनियमित हो जाते हैं। इन सभी प्रसंगों में अचानक होनेवाली गडबड, दुरवस्था यह बात सब जगह एकसमान है। ‘केऑस’ यानी गडबडी, अनपेक्षित रूप से निर्माण होनेवाली दुरवस्था। ‘केऑस’ यानी अनुशासित सुव्यवस्था में अचानक गडबडी का निर्माण हो जाना।

२३ मई १९१७ के दिन व्हेस्ट हेवन में एडवर्ड नॉरटॉन लॉरेंझ का जन्म हुआ। आगे चलकर वे ‘केऑस’ नामक गणित की शाखा का निर्माण करने में सफ़ल हुए। न्यू हॅम्पस्फ़ीअर के डार्टमाऊथ कॉलेज और केंब्रिज के हॉवर्ड विश्‍वविद्यालय से उन्होंने गणित की उपाधि हासिल की। दूसरे महायुद्ध में युनायटेड स्टेटस् आर्मी एअरकॉर्पस् में वे हवामान विभाग में काम करते थे। युद्ध से वापस आने के बाद उन्होंने हवामान शास्त्र का अभ्यास शुरु किया। मासच्युसेट्स इन्स्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलॉजी (एम.आय.टी.) में से उन्होंने दो उपाधियाँ हासिल की। इसके बाद कई वर्ष इसी इन्स्टिट्यूट में उन्होंने प्राध्यापक के रूप में कार्य किया।

हवामान विशेषज्ञ एडवर्ड लारेंझ वातावरण के आकृतिबंध का अध्ययन करते थे। वातावरण की प्रतिकृति दिखानेवाले कुछ कठिन समीकरण संगणक की सहायता से हल करना यह उनके संशोधन का स्वरूप था। एक दिन संगणक की सहायता से वे यह काम कर ही रहे थे कि किसी कारणवश उन्हें संगणक पर का काम रोकना पड़ा। उन्होंने अपना किया हुआ काम, निष्कर्ष संगणक की मेमरी में नोट कर दिया। अन्य एक काम निबटाकर के वे फिर से संगणक पर चल रहा अपना पूर्वकार्य करने लगे, किंतु संगणक चालू रखकर प्राप्त उत्तर और बंद करने के बाद मिलने वाले उत्तर, इन दोनों में का़फ़ी फ़र्क है ऐसा उन्हें दिखायी पड़ा। दोनों प्रकारों में उनके द्वारा उपयोग में लाए सूत्र समान थे।

इन दोनों निष्कर्ष में फ़र्क क्यों आ रहा है इस पर लॉरेंझ ने सोचा। यदि दशांश अपूर्णांक में ०.८४९२९ ऐसी संख्या होगी, तो उत्तर चार दशांश तक अपेक्षित होने पर दो के आगे का ९ अंक ५ की अपेक्षा बड़ा होने पर दो की जगह तीन अंक ले सकते हैं और ०.८५९३ ऐसा उत्तर मिलता है। इस क्रिया को अंको में ‘राऊंड ऑफ़’ कहते हैं। संगणक के शुरू रहते गणना करना और उसे बीच में रोककर फ़िर से गणना करना इन दो प्रकारों में थोड़ा-थोड़ा फ़र्क होने लगता है और अंत में इस फ़र्क का स्वरूप प्रचंड हो जाता है।

शुरुआत में न के बराबर दिखाई देनेवाला फ़र्क कालांतर में बहुत अधिक हो जाता है, ऐसा ‘केऑस’ का स्वरूप है। समझो पृथ्वी के एक कोने में किसी तितली ने अपने पंख हिलाए तो जो फ़र्क निर्माण होगा, वह बढ़ते-बढ़ते इतना प्रचंड हो जाएगा कि उसके कारण विश्‍व के दूसरे कोने में तूफ़ान का निर्माण हो सकता है। इसका अर्थ ऐसा निकाल सकते हैं कि किसी विशिष्ट दिन किसी शहर का हवामान यह विश्‍व के संपूर्ण हवामान की स्थिति पर निर्भर रहेगा। अर्थात हवामान का अचूक अंदाज बताने के लिए पहले वातावरण की अनगिनत बिन्दुओं का अचूक मोजमाप लेना आवश्यक है।

काम करते समय केवल अपघात हो जाना वैसा ही लॉरेंझ का ‘केऑस’ थिअरी से संबंधित है। उस समय १९६१ के दरम्यान लॉरेंझ हवामान के संबंध में काम करते समय रॉयल एम सी बी ३३, एलपीजी-३० यह प्राथमिक स्वरूप का संगणक उपयोग करते थे। अनुशासित प्रणाली अचानक अनुशासनहीन कैसे हो जाती है, इसकी खोज करना ही ‘केऑस’ सिद्धांत का उद्देश्य है। यह ‘केऑस’ सिद्धांत जिन जिन स्थानों पर अचानक वातावरण में गंभीर परिस्थिति के निर्माण होने पर वहाँ पर इसके उपयोग द्वारा गडबडी का मुख्य कारण क्या है, इसकी खोज करता है।

एडवर्ड लॉरेंझ ने ‘डिटरमिनीस्टिक नॉनपिरीऑडीक फ्लो’ नामक लेख के द्वारा १९६३ में ‘जर्नल ऑफ़ अ‍ॅटमॉस्फ़िअरिक सायन्स’ प्रसिद्ध किया। यही लेख आगे चलकर ‘केऑस थिअरी’ के रूप में पहचाना जाने लगा। जीवशास्त्र से लेकर अर्थशास्त्र तक अनेक विषयों के संदर्भ में यह ‘केऑस सिस्टम’ उपयोग में लाया जाता है। आनेवाला कल का हवामान बताना आसान है किंतु अनेक महीने के बाद के हवामान का अंदाज अचूकता से बताना बहुत ही मुश्किल है।

लॉरेंझ ने हवामान के कुछ प्रकारों का अभ्यास किया, इनमें से ही उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि हमेशा बताये गये अनुमान के अनुसार हवामान बदलेगा ही ऐसा नहीं कहा जा सकता। बिलकुल छोटा-छोटा परिवर्तन बाद में बड़े परिवर्तन में रूपांतरित हो जाता है। केऑस थिअरी का मूल सन् १९०० में भौतिकशास्त्रज्ञ हेन्री पाईनकेअर के अभ्यास में दिखाई देता है। इसके बाद पचास वर्षों के बाद इस थिअरी का काफ़ी विकास हुआ। केऑस थिअरी का मुख्य उत्प्रेरक इलेक्ट्रॉनिक संगणक है। शुरुआत में इलेक्ट्रॉनिक डिजीटल संगणक (इएनआयएसी) हवामान का अनुमान करने के काम के लिए उपयोग में लाये जाते थे। उसके बाद अनेक शास्त्रीय विषयों के साथ गणित, भौतिकशास्त्र, इंजिनियरिंग, इकॉनॉमिक्स, मानसशास्त्र और साथ ही जनगणना के लिए भी ‘केऑस थिअरी’ अत्यंत उपयोगी साबित हुई।

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