कॉन्टॅक्ट लेन्स का संशोधक – ओट्टो विचटर्ले

दृष्टिदोष वालों के लिए चश्मा लगाना अपरिहार्य होता है। किंतु कुछ लोगों को अपने चेहरे का ‘ओरीजनल लूक’ न बदलते हुए इस दोष को दूर करना होता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो उन्हें चश्मा लगाना पसंद नहीं होता। ऐसे लोगों के लिए ‘कॉन्टॅक्ट आय लेन्स’ रूपी संजीवनी का जन्म हुआ। और चश्मा लगानेवाले अधिकतर लोगों ने इस लेन्स के पर्याय को बहुत पसंद किया, उसे प्राथमिकता दी और दे भी रहे हैं।

दृष्टिदोष

इस आधुनिक युग में उपयुक्त साबित होनेवाले इस तरह के लेन्सेस बनाने के लिए ओट्टो विचटर्ले ने बहुत परिश्रम किया। २७ अक्तूबर सन् १९१३ में ऑस्ट्रेलिया-हंगेरी के प्रोस्तेजोव्ह यह ओट्टो की जन्मभूमि है। प्रोस्तेजोव्ह में ही अपनी माध्यमिक शालेय शिक्षा (पढ़ाई) पूर्ण करने के बाद ओट्टो ने अपने शिक्षण की दिशा बदल दी और उन्होंने रसायनशास्त्र और तंत्रज्ञान को प्राथमिकता दी और सन् १९३६ में ओट्टो ने इस क्षेत्र में पदवी हासिल की।

इसके बाद ओट्टो ने झेलिन के बाटाज वर्क के संशोधन विभाग में काम करना शुरू किया और इसी दौरान ओट्टो का प्लास्टिक बनाने के लिए आवश्यक रहने वाले पॉलिअमाईट और कॅप्रोलॅक्टम पर भी संशोधन शुरू था। इस समय ओट्टो की टीम ने सन् १९४१ में पॉलिअमाईड के धागे का संशोधन किया और उसमें लचीलापन लाकर सिलॉन नाम के सिथेंटीक फायबर की खोज़ की। इस दौरान उन्हें कुछ समय तक जेल की सजा भुगतनी पड़ी किंतु थोड़े ही दिनों में ओट्टो को छोड़ दिया गया।

दृष्टिदोष

दूसरे महायुद्ध के बाद ओट्टो ने अपने विश्‍वविद्यालय में फिर से कदम रखा। इस समय ऑरगॅनिक केमिस्ट्री में विशेष प्रवीणता प्राप्त करनेवाले ओट्टो ने इस विषय को पढ़ाने की शुरुआत की और एक किताब भी लिखी। इसके बाद ओट्टो के जीवन में अनेक तीव्र उतार चढ़ाव आए। किन्तु किसी भी परिस्थिति में उन्होंने अपने संशोधन का काम नहीं छोड़ा। कुछ समय तक घर में ही संशोधन केन्द्र शुरु करनेवाले ओट्टो सन् १९६१ में पहले हायड्रोजेल कॉन्टेक्ट लेन्स का संशोधन करने में सफल हुए।

छोटे बच्चों के खिलौने की सहायता से ओट्टो ने यह प्रयोग यशस्वी किया जो कि इस प्रयोग के लिए आश्‍चर्य की बात थी।

दृष्टिदोष

लेन्स की खोज बहुत पहले ही हो चुकी थी। प्रसिद्ध शास्त्रज्ञ और संशोधक लिओनार्दो द विंची ने पहली बार लेन्स की १६वें शतक में खोज की थी, ऐसा कहा जाता है। इसके कुछ समय बाद ही अमेरिका में इस प्रकार के लेन्स बनाने का उपयोग बहुत बड़े प्रमाण में शुरु किया गया।

किन्तु ओट्टो ने इस कॉन्टॅक्ट लेन्स के दोष को दूर करके उसे एक आधुनिक रुप दिया।

किन्तु इतना महत्त्वपूर्ण संशोधन करने के बाद भी ओट्टो को वादग्रस्त जीवन ही जीना पड़ा। ओट्टो की कुशाग्र बुद्धी की उड़ान और उनके संशोधन का महत्त्व बहुत देर बाद लोगों ने महसूस किया।

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