जागतिक स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना के उद्गम स्थान की ठीक से जांच नहीं की है – तटस्थ संशोधकों का गंभीर आरोप

जागतिक स्वास्थ्य संगठन,जांच, टेड्रॉस घेब्रेस्युएस, वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनायझेशन, कोव्हिड-१९, लंडन, चीन, अमरीकालंडन – ३३ लाख से अधिक लोगों की जान लेनेवाली और दुनिया का लाखों करोड़ों डॉलर से नुकसान करके आम लोगों का जीवन ध्वस्त करनेवाले कोरोना की महामारी को रोका जा सकता था। लेकिन जागतिक स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनायझेशन-डब्ल्यूएचओ) ने इसके लिए समय पर ही कदम नहीं उठाए। इतना ही नहीं, बल्कि जागतिक स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना के उद्गम स्थान की भी ठीक से जांच नहीं की। यह वायरस लैब में से अपघात से बाहर नहीं आया है, ऐसा यकीन जागतिक स्वास्थ्य संगठन ने दिलाया था। लेकिन इस संभावना को हरगिज़ दुर्लक्षित नहीं किया जा सकता, इस बात को ‘डब्ल्यूएचओ’ ने मद्देनज़र नहीं रखा, ऐसा दोषारोपण तटस्थ संशोधकों ने किया है।

‘कोव्हिड-१९: मेक इट द लास्ट पॅनडेमिक’ नामक ८६ पन्नों की रिपोर्ट ‘डब्ल्यूएचओ’ ने तैयार की है। उसमें चिनी संशोधकों का भी समावेश था। इस रिपोर्ट की विश्‍वासार्हता पर गंभीर सवाल उपस्थित किए जा रहे हैं। एक तरफ सन २०१५ में ही चीन के लष्करी अधिकारियों ने, तीसरे विश्वयुद्ध में जैविक शस्त्र के तौर पर कोरोना की महामारी का इस्तेमाल करने की तैयारी की थी, ऐसीं खबरें सामने आईं हैं। वहीं, दूसरी तरफ ‘डब्ल्यूएचओ’ उसे पूरी तरह अनदेखा करके, चीन की रक्षा करने की कोशिश कर रहा दिखाई देता है। जल्द ही ब्रिटेन में होनेवाले ‘जी-२०’ सम्मेलन में ‘डब्ल्यूएचओ’ कोरोना के संदर्भ में अपनी रिपोर्ट जारी करनेवाली है। लेकिन यह महामारी कहाँ से और कैसे आई, वह स्पष्ट करने के बजाय इस रिपोर्ट में, इस महामारी का दुनिया भर में प्रसार कैसे हुआ, इसपर ही अधिक ध्यान केंद्रित किया गया होने का आरोप हो रहा है।

केंब्रिज इस विख्यात विश्वविद्यालय के क्लिनिकल मायक्रोबायोलॉजिस्ट रविंद्र गुप्ता ने ‘डब्ल्यूएचओ’ की रिपोर्ट को अधूरी बताकर, कोरोना के उद्गम के संदर्भ में अधिक जांच करना आवश्यक है, ऐसा कहा है। वहीं, फ्रेड हचिस्न कॅन्सर रिसर्च सेंटर के अभ्यासक जेसी ब्ल्यूम ने, रविंद्र गुप्ता ने दर्ज किए निष्कर्ष की पुष्टि की। लैब में से अपघात से कोरोना का फैलाव हुआ, इस संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता, उस पर अधिक जांच करने की आवश्यकता है, ऐसा अमरीका के स्टॅनफोर्ड विश्वविद्यालय के मायक्रोबायॉलॉजी विभाग के प्राध्यापक डेव्हिड रेल्मन ने कहा है।

इस कारण ‘डब्ल्यूएचओ’ की रिपोर्ट का स्वीकार करने के लिए संशोधक तैयार नहीं, ऐसा दिखाई दे रहा है। इससे पहले भी ‘डब्ल्यूएचओ’, चीन के समर्थन में पक्षपाती भूमिका अपना रहा होने के गंभीर आरोप हुए थे। कोरोना की महामारी को समय पर ही रोकना संभव था, लेकिन उसके लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए गए। वैसा करने में ‘डब्ल्यूएचओ’ असफल साबित हुआ, ऐसी आलोचना अमरीका के तत्कालीन राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने की थी। युरोपिय देशों ने भी ‘डब्ल्यूएचओ’ की चीनपरस्त भूमिका पर नाराज़गी ज़ाहिर की थी। इस रिपोर्ट के उपलक्ष्य में संशोधक भी, ‘डब्ल्यूएचओ’ ने कोरोना के उद्गम स्थान की जांच उचित तरीके से ना की होने की आलोचना कर रहे हैं।

कोरोना यह चीन ने छेड़ा जैविक युद्ध ही होने का आरोप ब्राज़ील के राष्ट्राध्यक्ष बोल्सोनारो ने किया था। ठेंठ नामोल्लेख टालकर राष्ट्राध्यक्ष बोल्सोनारो ने की आलोचना दुनियाभर में सनसनी मचानेवाली साबित हुई थी। कोरोना की महामारी आने के बाद ‘जी२०’ के किस सदस्य देश का जीडीपी बढ़ा? ऐसा सवाल करके ब्राज़ील के राष्ट्राध्यक्ष ने चीन की तरफ़ निर्देश किया था। साथ ही, सभी देशों के लष्करों को यह एहसास है कि जैविक और रसायनिक युद्ध शुरू हुआ है, ऐसा भी बोल्सोनारो ने कहा था।

वही, सन २०१५ में चीन के लष्करी संशोधक तथा स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने ‘द अननॅचरल ओरिजिन ऑफ सार्स ऍण्ड न्यू स्पेसीज् ऑफ मॅनमेड व्हायरसेस ऍज जेनेटिक बायोवेपन्स’ नामक रिसर्च पेपर तैयार किया था। इसमें, वायरस का इस्तेमाल करके दुनियाभर में महामारी फैलाने की और उसके जरिए चीन का वर्चस्व बढ़ाने की योजना प्रस्तुत की गई थी। ‘द ऑस्ट्रेलियन’ नामक अखबार ने इस बारे में खबर हाल ही में प्रकाशित की। उसके बाद, कोरोना की महामारी यानी चीन ने छेड़ा हुआ जैविक युद्ध होने का आरोप शुरू हुआ था। अब अमरीका के पूर्व लष्करी अधिकारी भी इस दावे की पुष्टि करते दिखाई दे रहे हैं।

चीन ने उस पर लगाए जानेवाले ये आरोप ठुकराए हैं। उसी समय, डब्ल्यूएचओ इस काम में चीन की सहायता कर रहा होने की बात भी सामने आ रही है। खासकर डब्ल्यूएचओ के प्रमुख टेड्रॉस घेब्रेस्युएस ये चीन के कट्टर समर्थक माने जाते हैं। डब्ल्यूएचओ के प्रमुखपद पर उन्हें बिठाने में चीन का ही हाथ था, ऐसा आरोप हो रहा है। इस कारण डब्ल्यूएचओ चीन का बचाव करने वाली रिपोर्ट जारी कर रहा होकर, चीन के विरोध में होनेवाली जानकारी दबाने की कोशिश कर रहा है, ऐसे आरोप कोरोना की महामारी आने के समय से ही शुरू हुए थे।

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