डॉ. विठ्ठल नागेश शिरोडकर (१८९९-१९७१)

दिनरात जनहित की चिन्ता करनेवाले, उदार, संत-सज्जनों की तरह जीवन का ध्येय रखनेवाले मानवी मूल्यों के साथ निष्ठा रखने वाले संशोधक एवं स्त्रीरोगविशेषज्ञ डॉ. वि. ना. शिरोडकर की जानकारी प्राप्त करते हैं।

समर्थ संत श्री रामदास स्वामी जी की ‘माँ, चिन्ता करती हूँ विश्‍व की’ इस उक्ति के अनुसार डॉ. शिरोडकर ने विश्‍व के अनेक असहाय, निराश स्त्रियों को मातृत्व का सुख प्रदान किया। समृद्धभावी पिढ़ी और गृहिणियों के दोषों का निवारण करने का उन्होंने प्रण लिया था। इसी प्रण के द्वारा उन्होंने अपने वैद्यकीय ज्ञान की कसौटी के द्वारा विशिष्ट गर्भाशय विकार के कारण बीमार रहने वाले दंपती को जीवन में आनंद देने का उन्होंने निर्धार किया था।

डॉ. वि. ना. शिरोडकर

गोवा राज्य के शिरोडा गाँव में सन् १८९९ वर्ष में उनका जन्म हुआ था। उसके बाद वैद्यकीय क्षेत्र की ओर बढ़ने के बाद उन्होंने सन् १९२७ वर्ष में एम.डी. की पदवी हासिल करने के बाद सन् १९३१ वर्ष में इंग्लैन्ड में जाकर उन्होंने शल्यक्रिया में एफ़. आर. सी. एस. की पदवी प्राप्त की। इसके बाद सन् १९५५ तक लगभग बीस वर्ष तक उन्होंने ग्रँट मेडिकल कॉलेज में प्राध्यापक के पद पर काम करते हुए विद्यादान का कार्य किया।

इस दौरान फॉदर गिल ने मँचेस्टर शस्त्रक्रिया की खोज की थी। किंतु डॉ. शिरोडकर ने ‘मँचेस्टर शस्त्रक्रिया के कारण शरीर के भाग में फ़र्क पड़ता है और क्रिया में गड़बड़ी हो जाती है’, ऐसा मत व्यक्त किया। इसके लिए डॉ. शिरोडकर ने बहुत ही आसान, हितकारी एवं निर्दोष शस्त्रक्रिया की खोज की। दुनियाभर में अब इसी शल्य क्रिया का उपयोग किया जाता है। फॉदर गिल की शस्त्रक्रिया की अपेक्षा यह शस्त्रक्रिया पद्धति किस तरह से अच्छी है, यह सिद्ध करने के लिए डॉ. शिरोडकर को चुनौती दी गयी। इसके कारण वैद्यकीय क्षेत्र में एक द्वंद्व ही शुरु हो गया। डॉ.शिरोडकर ने स्वयं संशोधन करके निर्माण किए गए तंत्र के द्वारा इस शस्त्रक्रिया का प्रात्यक्षिक करके दिखाया। रजिस्ट्रार, असिस्टंट प्रोफ़ेसर्स, और नामवंत शल्यचिकित्सकों का समूह यह प्रात्यक्षिक देखने के लिए उपस्थित थे। इस शस्त्रक्रिया को देखने के बाद सारे लोग आश्‍चर्यचकित हो गए और उन लोगों ने डॉ.शिरोडकर का अभिनंदन किया। भारतीय संशोधकों की खोज का मकसद हमेशा ही मानवकल्याण के लिए और अपने मानवतावादी दृष्टिकोन का द्योतक होता है, इस सच्चाई को डॉ.शिरोडकर के प्रात्यक्षिक के कारण दृढ़ता प्राप्त हुई।

वॉशिंगटन के विख्यात डॉ.बार्टार को उनके पेशंट के बारे में होनेवाली समस्या को डॉ.शिरोडकर के संशोधन के कारण दूर करने में यश प्राप्त हुआ। डॉ. बार्टार के प्रयत्नों के कारण इस शस्त्रक्रिया को अमेरिका के साथ पूरे विश्‍व में प्रसिद्धि मिल गयी। सन १९५३ वर्ष में यह शस्त्रक्रिया देखने के लिए डॉ. ग्रीन आर्मिटाज लंडन से मुंबई में आये थे। उन्होंने भी अपने मरीजों के लिए इस शस्त्रक्रिया का उपयोग करने की शुरुआत की और इंग्लैंड में भी इस शस्त्रक्रिया को अपने आप ही प्रसिद्धि प्राप्त हो गयी। कॅनडा और यूरोप के देशों से भी डॉ. शिरोडकर को इस शस्त्रक्रिया के प्रात्यक्षिक दिखाने के लिए निमंत्रण आने लगे।

सन् १९६१ वर्ष में तीसरी जागतिक परिषद में विशेषज्ञों ने इस शस्त्रक्रिया पर लिखा निबंध पढ़ा। इसी विषय पर डॉ.शिरोडकर ने अपना निबंध पढ़ा। उसके बाद वहाँ पर उपस्थित लगभग दो हजार विशेषज्ञों ने खड़े होकर, तालियाँ बजाकर इस निबंध का सम्मान किया।

जैसे-जैसे गर्भ के बच्चे का वजन बढ़ते जाता है, वैसे-वैसे कुछ स्त्रियों के गर्भाशय के स्नायु शिथिल होने लगते हैं, जिसके कारण निरोगी बालक का वजन गर्भाशय नहीं झेल पाता और गर्भपात हो जाता है। इस गर्भपात को टालने के लिए उन्होंने नई शस्त्रक्रिया की खोज की। ‘शिरोडकर स्लिंग ऑपरेशन’ (Dr.Shirodkar sling operation) vaginal RING-Pesscy और शिरोडकर वन स्टिच ऑपरेशन इस भिन्न प्रकार की किन्तु आसान शस्त्रक्रिया को उन्होंने ढूँढ़ निकाला। शिरोडकर स्टिच यह उनकी संकल्पना जगप्रसिद्ध है। इस शस्त्रक्रिया में उपयोग में लाये जानेवाले उपकरणों को भी डॉ.शिरोडकर का ही नाम दिया गया है। कुटुंब नियोजन के लिए फ़ेलोपियन ट्यूब्ज पर उनके द्वारा की गई विभिन्न प्रकार की शस्त्रक्रिया के व्हिडिओज़ विकासशील देशों में भी दिखाए जाते हैं। प्रोलॅप्स युटरस की उपाययोजना में भी उनकी कुशलता जगन्-मान्य थी।

कई वर्षों तक डॉ. शिरोडकर ने एक स्त्री-रोग विशेषज्ञ के रूप में काम किया। अनेक स्त्री मरिजों का जीवन बचाने की उन्होंने गैरंटी (विश्‍वास) दी और ‘एक देवदूत’ के रूप में विश्‍वास संपादन किया। अपने संशोधन के कौशल्य का लाभ भारत की स्त्रियों को मिलना चाहिए, यही उनकी प्रबल इच्छा थी।

विख्यात स्त्रीरोग-विशेषज्ञ प्रो.साँडेक ने व्हिएन्ना के वैद्यकीय परिषद में कहा, ‘डॉ. शिरोडकर की यह शस्त्रक्रिया बिलकुल आसान है, किन्तु इतनी आसान कल्पना हम में से किसी को भी नहीं सूझी, इसका हमें खेद है।’ किंतु यह वक्तत्व सुनकर डॉ. शिरोडकर और भी अधिक नम्र हो गए।

सन् १९६७ वर्ष में पुणे के मराठी विज्ञान परिषद के दूसरे सम्मेलन के वे अध्यक्ष थे। सन् १९६० में उन्होंने लिखी हुई ‘कॉन्ट्रिब्युशन टू ऑबस्ट्रेट्रिकल अ‍ॅन्ड गायनॉकॉलॉजी’ यह पुस्तक प्रसिद्ध हुई। स्त्रीरोग के विषय में विशेष संशोधन करनेवालों को मिलनेवाला एफ़. आर. सी. जी. ओ. सम्मान उन्हें मिला।

कला, क्रीडा, विज्ञान आदि से संपन्न, बहु आयामी व्यक्तित्ववाले डॉ. शिरोडकर ने अपने वैद्यकीय संशोधन के द्वारा अपने देश की कीर्ति बढ़ाने में बहुमूल्य योगदान दिया है। इस विश्‍वप्रसिद्ध स्त्रीरोगविशेषज्ञ और शल्यचिकित्सक का भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ देकर गौरव किया।

शल्यचिकित्सा क्षेत्र के संशोधन की जानकारी सामान्य जनता की समझ में नहीं आती, किंतु जब विश्‍व में उसकी स्तुति, गौरव होता है, तब भारत के लोगों की अस्मिता बढ़ जाती है और संशोधन करनेवाले छात्रों का आत्मविश्‍वास भी बढ़ जाता है।

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