सुरक्षा परिषद में वेटो का इस्तेमाल कर अमरीका का ‘डब्ल्यूएचओ’ के साथ चीन को झटका

न्यूयॉर्क, (वृत्तसंस्था) – संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद में ‘जागतिक स्वास्थ्य संगठन’ (डब्ल्यूएचओ) का समर्थन करनेवाला प्रस्ताव अमरीका ने नकाराधिकार (वेटो) का इस्तेमाल कर खारिज़ कर दिया। चीन की सहायता करनेवाले ‘डब्ल्यूएचओ’ का किसी भी प्रकार से समर्थन मुमक़िन नहीं है, ऐसा कहकर अमरीका ने सुरक्षा परिषद में आये प्रस्ताव पर वेटो का इस्तेमाल किया, ऐसा कहा है। इसके द्वारा अमरीका ने ‘डब्ल्यूएचओ’ के साथ साथ चीन को भी धक्का दिया दिखायी दे रहा है।

कोरोनावायरस के संक्रमण की पृष्ठभूमि पर दुनियाभर में सर्वत्र संघर्षबंदी लागू की जायें, ऐसा आवाहन संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव अँटोनिओ गुतेरस ने किया था। राष्ट्रसंघ के इस आवाहन के बाद अफगानिस्तान, इराक, सिरिया, येमेन ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में संघर्षबंदी लागू करने की कोशिशें हुईं थी। लेकिन संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद में इस संदर्भ का प्रस्ताव पारित नहीं हुआ था। गुरुवार को सुरक्षा परिषद में इस संदर्भ का प्रस्ताव रखकर उसपर मतदान लिया गया। संघर्षबंदी के इस प्रस्ताव का सभी देशों ने समर्थन किया तो सही, लेकिन अमरीका ने इस प्रस्ताव के कुछ मुद्दों पर ऐतराज़ जताकर उसके विरोध में वेटो का इस्तेमाल किया।

सुरक्षा परिषद में रखे गए इस प्रस्ताव में चीन ने ‘डब्ल्यूएचओ’ का समर्थन करने का मुद्दा घुसेड़ दिया। उसपर ऊँगली उठाकर अमरीका ने, ‘डब्ल्यूएचओ’ का किसी भी प्रकार से समर्थन मुमक़िन नहीं है, ऐसा स्पष्ट रूप से कहा। अमरीका ने नकाराधिकार का इस्तेमाल करने की वजह से यह प्रस्ताव ख़ारिज हुआ। कोरोनावायरस के संक्रमण को चीन के वुहान में ही रोका जा सकता था, लेकिन चीन ने वैसा ना करते हुए इस संक्रमण की जानकारी छिपाकर रखी, ऐसा आरोप अमरीका कर रही है। इसके लिए ‘डब्ल्यूएचओ’ ने चीन की हरसंभव सहायता की। यह संगठन चीन की पब्लिसिटी करनेवाली कंपनी जैसा काम कर रहा है, ऐसी तीख़ी आलोचना अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष ने की थी।

‘डब्ल्यूएचओ’ को अमरीका से मिलनेवाली अर्थसहायता रोकने का फ़ैसला भी अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने किया था। सुरक्षा परिषद में चीन ने ‘डब्ल्यूएचओ’ का समर्थन करके; वहीं, अमरीका ने उसके विरोध में नकाराधिकार का उपयोग करके, एक-दूसरे के ख़िलाफ़ राजकीय दाँवपेंचों का इस्तेमाल किया है। लेकिन इस राजकीय संघर्ष के कारण मूल मुद्दे को अनदेखा किया जा रहा है, ऐसी नाराज़गी संयुक्त राष्ट्रसंघ ने व्यक्त की है।

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