राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन के दबाव के कारण तुर्की के प्रधानमंत्री अहमत दावुतोग्लु का इस्तीफ़ा

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तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष रेसेप तय्यप एर्दोगन की तानाशाही एवं दबाव के कारण नाराज़ हो चुके तुर्की के प्रधानमंत्री अहमत दावुतोग्लु ने अपने इस्तीफ़े की घोषणा की है । ‘मेरा इस्तीफ़ा यह मेरे द्वारा चुना हुआ विकल्प नहीं, बल्कि वह हालातों से मजबूर होकर उठाना पड़ा कदम है’ इन शब्दों में दावुतोग्लु ने, उनके इस निर्णय के पीछे राष्ट्राध्यक्ष एवं पक्ष सहकर्मियों का दबाव होने के संकेत दिए ।

प्रधानमंत्री दावुतोग्लु के इस्तीफ़े के बाद तुर्की की विरोधी पार्टियों ने तीव्र प्रतिक्रिया दी होकर, ‘यह राष्ट्राध्यक्ष के राजमहल से करायी गयी बग़ावत’ होने का आरोप किया है । वहीं, युरोपीय महासंघ के सूत्रों ने, प्रधानमंत्री दावुतोग्लु के इस्तीफ़े के बाद तुर्की के साथ रहनेवाले संबंधों के बारे में पुनर्विचार करने की संभावना ज़ाहिर की है ।

‘देश में आये बहुत ही मुश्किल हालातों में पार्टी तथा सरकार में एकता बनाये रखने में मैंने क़ामयाबी हासिल की । एकेपी पार्टी की अगुआई में सरकार  इसके आगे भी अपनी मज़बूत मार्गक्रमणा  क़ायम रखेगी। लेकिन विद्यमान परिस्थिति में, पार्टी सदस्यों में मेरे नाम को लेकर एकमत न रहने के कारण मैं नेतृत्वपद के लिए अगला चुनाव नहीं लड़ूँगा। यह निर्णय मैं अपनी मर्ज़ी से नहीं, बल्कि हालातों से मजबूर होकर ले रहा हूँ’ इन शब्दों में दावुतोग्लु ने पार्टी के प्रमुख पद से एवं प्रधानमंत्रीपद से इस्तीफ़ा दे रहे होने की घोषणा की।

दावातोग्लु ने अगस्त २०१४ में हुए पार्टी अधिवेशन में प्रधानमंत्रीपद की बाग़ड़ोर सँभाली थी। राष्ट्राध्यक्ष रेसेप एर्दोगेन के मंत्रीमंडल में विदेशमंत्री के तौर पर काम करने के बाद उनपर यह ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी। एर्दोगन के विश्वसनीय जाने जानेवाले दावुतोग्लु ने प्रधानमंत्री के रूप में अपनी अलग से पहचान बनाने के प्रयास किये थे। लेकिन गत २० महीनों में उनकी राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन के साथ कई मुद्दों पर अनबन हो चुकी होने की जानकारी सामने आयी है।

इनमें सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय, गुप्तचरयंत्रणाओं  की कार्यपद्धति, पार्टी तथा सरकार में की जानेवालीं नियुक्तियाँ, पारदर्शकता, नये संविधान की प्रक्रिया, आतंकवाद की व्याख्या इन जैसे मुद्दों का समावेश है। राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन, फिलहाल तुर्की में जारी रहनेवाली संसदीय जनतंत्र व्यवस्था को मिटाकर उसकी जगह पर राष्ट्राध्यक्ष पद्धति लागू करना चाहते हैं। इसके पीछे देश तथा पक्ष इन दोनों यंत्रणाओं पर अपना एकछत्री कब्ज़ा रहें, यही भावना है, ऐसा बताया जा रहा है। इसके लिए एर्दोगन ने विद्यमान व्यवस्था में भारी मात्रा में दख़लअंदाज़ी करना तथा उसमें काफ़ी बदलाव करना शुरू किया है।

एर्दोगन की इस तानाशाही प्रवृत्ति की, देश-विदेश से बड़े पैमाने पर आलोचना की जा रही है। युरोपीय देश तथा अमरिकी नेताओं ने भी एर्दोगन की कार्यपद्धति पर नाराज़गी ज़ाहिर की है। इस पार्श्वभूमि पर दावुतोग्लु ने दिया हुआ इस्तीफ़ा, तुर्की में फिलहाल उबल रहे राजनीतिक असंतोष के संकेत देनेवाला साबित हो रहा है। इससे पहले एर्दोगन को, विरोधी पार्टी  तथा लष्कर से भी चुनौती देने के प्रयास किये गये होकर, ये सारीं चुनौतियाँ ताकत के बलबूते पर मिटा दी गयी थीं। लेकिन दावुतोग्लु के इस्तीफ़े की घटना से राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन को पार्टी से भी चुनौती दी जा रही होने की बात स्पष्ट हो चुकी है।

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