भारतीय कंपनी ने किया ‘३ डी’ प्रिन्टेड रॉकेट इंजन का सफल परीक्षण

नई दिल्ली/बंगळुरू – तमिलनाडु की ‘अग्निकुल कॉसमॉस’ नामक ‘स्टार्टअप कंपनी’ विश्‍व की ‘३ डी प्रिन्टेड रॉकेट इंजन’ का परीक्षण करनेवाली पहली कंपनी होने का दावा किया जा रहा है। यह परीक्षण सफल हुआ है। वर्णित कंपनी ने मात्र चार दिनों में इस इंजन का निर्माण किया है और यह इंजन पृथ्वी की निचली कक्षा में १०० किलो का ‘पेलोड’ पहुँचाने के लिए सक्षम होने का दावा इस कंपनी ने किया है।

‘३ डी’ प्रिन्टेड रॉकेट इंजन

इस इंजन को ‘अगीलेट’ नाम दिया गया है। ‘३ डी प्रिन्टेड इंजन’ के इस परीक्षण का समाचार प्राप्त हो रहा था तभी ‘हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड’ (हल) और ‘विप्रो ३ डी’ कंपनी ने ‘३ डी प्रिन्टेड’ विमान इंजन का हिस्सा तैयार करने के लिए समझौता होने का वृत्त है।

भारत में अतंरिक्ष उद्योग क्षेत्र में नीजि कंपनियां तेज़ कदम उठा रही हैं। साथ ही इस क्षेत्र में विदेशी निवेश भी हो रहा है। केंद्र सरकार ने बीते वर्ष अतंरिक्ष क्षेत्र नीजि निवेशकों के लिए खुला करने का अहम निर्णय घोषित किया था।

‘३ डी’ प्रिन्टेड रॉकेट इंजन

‘अग्निकुल’ रॉकेट का निर्माण भारतीय स्टार्टअप कंपनी ने बीते वर्ष अमरिकी कंपनी अलास्का एरोस्पेस कॉर्पोरेशन के साथ समझौता किया था। अब इस कंपनी ने ‘३ डी प्रिन्टिंग’ तकनीक का इस्तेमाल करके रॉकेट इंजन का निर्माण किया है। यह ‘वन पीस इंजन’ होने की जानकारी इस कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्रीनाथ रामचंद्रन ने प्रदान की।

विश्‍वभर में ‘३ डी प्रिन्टेड इंजन’ तैयार करने के प्रयोग हो रहे हैं। इसके ज़रिये कुछ इंजन्स का निर्माण भी हुआ है। लेकिन, भारतीय कंपनी द्वारा किया गया यह परीक्षण विश्‍व में अब तक हुए ‘३ डी प्रिन्टेड रॉकेट इंजन’ का पहला परीक्षण है। इस वजह से ‘अग्निजेट’ इंजन का सफल परीक्षण इस क्षेत्र के नए दालन खुले करनेवाला साबित होगा।

यह इंजन १०० किलो पेलोड विमान या प्रक्षेपक के साथ उड़ान भरने की क्षमता रखता है। पृथ्वी की कक्षा में ७०० किलोमीटर तक १०० किलो भार यह इंजन पहुँचा सकता है। इस वजह से अगले दिनों में उपग्रह प्रक्षेपण के लिए भी इस इंजन का इस्तेमाल करना संभव होगा।

इसी बीच, ‘हल’ और ‘विप्रो ३ डी’ कंपनी ने ‘३ डी’ प्रिन्टेड विमान इंजन का हिस्सा तैयार करने के लिए अहम समझौता किया है। हल से निर्माण हो रहे हेलिकॉप्टर्स के लिए आवश्‍यक इंजन के लिए भी ‘३ डी’ प्रिन्टेड पुर्जों का इस्तेमाल किया जाएगा, ऐसी खबरें प्राप्त हुई हैं। ‘हल’ और ‘विप्रो ३ डी’ ने ऐसे पुर्जों का निर्माण करने में कामयाबी हासिल की है। यह समझौता इन्हीं पुर्जों के उत्पादन के लिए होने का वृत्त है।

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