अस्थिसंस्था भाग – ३६

पैर का पंजा

हमारे संपूर्ण शरीर की विभिन्न क्रियायें जैसे कि चलना, दौड़ना, छलाँग लगाना इत्यादि सभी अपने पैरों पर, ज्यादा तर पैर के पंजों पर निर्भर होती हैं। साथ ही साथ शरीर का वज़न उठाने का काम भी उन्हें ही करना पड़ता है। संक्षेप में अपने पैर के पंजे के दो प्रमुख कार्य हैं –

१)चल और अचल दोनों स्थितियों में शरीर को आधार देना।
२)चलना, दौड़ना, छलाँग लगाना इत्यादि के लिये गति प्रदान करना।

पहला कार्य पूरा करने के लिये पैर के पंजों का उतना सक्षम होना आवश्यक है। पूरा भार व तनाव पूरे पंजे पर समान रूप से पड़ना चाहिये। साथ ही साथ चल स्थिती में उनमें लचकता भी होनी चाहिये। ये तीनों गुणधर्म हमारे पैरों की अस्थियों में पाये जाते हैं। इसीलिये कारपल व मेटाकारपल अस्थि की अपेक्षा टारसल व मेटाटारसल अस्थियां ज्यादा मोटी व मजबूत होती हैं तथा आकार में भी बड़ी होती हैं।

दूसरी क्रिया पूरा करने के लिये पंजो की अस्थियों का किसी अ‍ॅडजस्टेबल उत्तोलक की तरह कार्य करना आवश्यक होता है। साथ ही साथ पैरों पर होने वाले सभी आघातों व तनावों का सफलतापूर्वक सामना करने की क्षमता भी इस में होनी चाहिए। यह उद्देश्य पूरा करने के लिये उत्तोलक का कमानी के आकार का तथा छोटे-छोटे टुकड़ों का बना होना आवश्यक है। हमारे पैर के पंजों की रचना में ये दोनों बातें पायी जाती है। पैर के पंजों की सर्वसाधारण रचना का अध्ययन करते समय हमने देखा था कि पैर के पंजों की अस्थियां कमानी अथवा आर्येस के आकार की होती हैं। जब हम अपने पैर के पंजों का निरिक्षण करते हैं तो हमारे ध्यान में आता है कि जब हम अपने पैर का पंजा जमीन पर रखते हैं तो पूरा पंजा जमीन के संपर्क में नहीं आता। पैर के पंजे का पूरा बाहरी किनारा, एड़ी चवड़ा पूरी तरह जमीन पर टिकता है तथा अंदरुनी किनारा पंजे के बीच में जमीन से ऊपर उठा रहता है। इसी कारण अपने पैर के पंजों के निशान ऐसे ही पड़ते हैं कि बीच का किनारा आधा ही दिखायी पड़ता है। ऐसा अस्थियों के गुड़े हुये आकार के कारण होता है। अब हम यह देखेंगे कि पैर के पंजे में मोड़ अथवा arches कहाँ व कितने होते हैं।

medial_footअपने पैर का पंजा तलुवे की तरफ concave  अथवा अंतर्वक्र होता है। पैर के पंजों की ऐसी रचना सिर्फ मानवों में ही दिखायी देती है। अन्य किसी भी प्राणी में यह रचना दिखायी नहीं देती। नवजात शिशु में पैर का पंजा सपाट दिखायी देता है परत्नु यह उस में फॅटी टिश्यु के कारण होता है। अन्य प्राणियों की तुलना में एक और भी बदलाव हमारे पैर के पंजो में हुआ वो हैं कि पैर का अंगूठा हाथ के अंगूठे की तरह दूसरी अंगुलियों तक नहीं पहुंचता।(lack of apposition)

पैर के पंजों का तलुवों की ओर का मोड़ दो प्रकार का होता है। खड़ा अथवा लॉन्जीट्यूडिनल     तथा बेड़ा अथवा ट्रान्सवर्स। पैर के पंजों की अस्थि का आकार, रचना, लिंगामेंट्स तथा पंजे के स्नायु इत्यादि सभी के कार्यों का इस मोड़ पर असर होता है।

जब हम स्थिर खड़े होते हैं तब लिंगामेंट्स कार्य करते हैं तथा जब हम चलने लगते हैं तब यहीं काम स्नायु करते हैं। पंजों की लम्बाई में दो अलग-अलग जोड़ ध्यान में आते हैं। पंजे के अंदर की तरफ और पंजों के बाहर की ओर, इन्हें क्रमश: मिडिअल व लॅटरल आर्चेस कहते हैं।

मिडिअल आर्च :- इसकी मुख्य हड्डियां निम्नलिखित हैं। टॅलस, कॅलकेनिअस, नेविक्युलर, क्युनिफॉर्म व अंदर की यानी पहली तीन मेटाटारसल हड्डियाँ। इस कमानी का सबसे ऊँचा बिंदु होता है, टॅलस का ऊपरी आर्टिक्युलर भाग, जो टिबिया के संपर्क में होता है। टिबिया के माध्यम से आने वाले सभी जोर व आघात सर्वप्रथम यहाँ पर इकठ्ठा होते हैं और फिर यहाँ से ही पैर की एड़ी की ओर कॅलकेनिअस में तहा आगे नेविक्युलर क्युनिफॉर्म के माध्यम से प्रथम तीन मेटाटारसल्स तक इसका व्यवस्थित वहन होता है। एड़ि की कॅलेकेनिअस की ट्युबरॉसिटी व पहली तीन मोटाटारसल के सिरे, इस कमानी के दो स्तंभ हैं। यह कमानी ज्यादा मुड़ी तथा ज्यादा चल अथवा mobile भी है।

लॅटरल आर्च :- इस में कॅलकेनिअस, क्युबॉइड, व बाहर की दो मोटाटारसल अस्थियों का समावेश होता है। इसका मोड़ मिडिअल आर्च की अपेक्षा कम होता है तथा इसकी मोबिलिटी भी कम होती है। इसका सर्वोच्च उच्च बिंदु सबटॅलर जोड़ में होती है। यह लम्बाई में भी मिडिअल आर्च की अपेक्षा छोटा होता है तथा यह नीचे की ओर होता है। जब हम पैर का पंजा जमीन पर रखते हैं तब इसका अधिकांश भाग जमीन में संपर्क में आता है। कॅलकेनिअस की ट्युबरॉसिटी व बाहर की दोनों मेटाटारसलों के सिरे, इसके दोनों बाजू के स्तंभ है।

लॅटरल आर्च उनकी रचना के कारण सिर्फ भार व आघात का वहन कर सकते हैं। परन्तु मिडिअल आर्च भार वहन के साथ-साथ शरीर के शॉक अ‍ॅबसार्बर का भी काम करता है।

हमारे पैर के पंजे तलुओं की तरफ आडवी रेखा में भी अंर्तवक्र होते हैं। फलस्वरुप हमारे तलुओं का बाहरी किनारा लगभग पूरी तरह जमीन पर टिकता था तथा अंदरुनी किनारा थोड़ा ही टिकता है।

पैरों के तलुओं की यह रचना पंजों को अर्ध गुवंदाकार (half dome) आकार देती है। यदि दोनों पैरों के पंजों को एक साथ जोड़े तो पूर्ण गुवंद बन जाता है।

जब हम जमीन पर स्थिर खड़े होते हैं तब पंजों के स्नायु शिथिल होते हैं तथा लिगामेंट्स मजबूत होते हैं अथवा तने हुये होते हैं। फलस्वरूप मिडिअल आर्च का मोड़ कम होता है। खड़े होने की स्थिती में शरीर का भार पंजों के ज्यादा से ज्यादा भाग से जमीन तक पहुँचाने में सहायता होती है। जब हम दोनों पंजों को जोड़ कर  (सावधान) स्थिती में खड़े होते हैं तब मिडिअल आर्च का मोड़ बदकरार रहता है। जैसे जैसे हम अपने पंजों को एक-दूसरे से दूर ले जाते हैं (wide stance) वैस-वैसे पंजों में इनव्हर्जन व सुपायनेशन  की क्रियाये बढ़ती है तथा पंजों का अंदरूनी किनारा जमीन पर, ज्यादा से ज्यादा टिकता हैं।

Lateral_footऐसी है इन पंजों की गाथा। शरीर स्थिर या चल, पैर के पंजों को सरल व स्थिर ही पड़ना पड़ता है। जिस तरह इमारत की नींव महत्त्वपूर्ण होती है उसी तरह पंजे शरीर के लिये महत्त्वपूर्ण होते हैं। यदि पंजा टेढ़ा पड़ जाये या फिसल जाये तो पंजे के साथ-साथ पूरे शरीर को  ही चोट पहुँचती हैं। यह है अपने शारिरीक पंजों की कथा।

हमारे जीवन में प्रत्येक घटना में हमारे पंजों को सीधा एवं स्थिर ही रखना पड़ता है, उचित दिशा में ही आगे बढाना पड़ता है। ऐसा करने पर हमारा संपूर्ण जीवन ही आनंदमयी हो जाता है। परन्तु इसके लिये हमारे जीवन में हमारे सद्गुरु के चरणों का सक्रिङ्म रहना आवश्यक होता है।

भक्ति और सेवा इन दो चरणों के द्वारा हमेशा अकारण कारुण्य से वे हमारा मार्गदर्शन करते रहते हैं। हमें सिर्फ इतना ही करना होता है कि हम उनके द्वारा दिखाये गये मार्ग पर अपने पैर (कदम)  मजबूती से आगे बढाते रहें। जब हम ऐसा करते हैं तो हमारे जीवन का सारा प्रवास सत्य एवं आनंद से भरा हुआ ‘प्रेमप्रवास’ बन जाता है।

(क्रमश:)

Leave a Reply

Your email address will not be published.