अस्थिसंस्था भाग – २५

अब तक हम ने हाथों की अस्थियों के बारे में जानकारी प्राप्त की। अब इसके बाद हम अपने पैरों की अस्थियों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगें।
अपने पैरों के कार्यों के अनुसार उनकी अस्थियों में आवश्यक बदलाव होते गये। पैरों के दो प्रमुख कार्य हैं शरीर का भार उठाना तथा शरीर को विविध गतियाँ प्रदान करना, जैसे चलना, दौड़ना, कूदना इत्यादि।

dehgramइसके साथ-साथ मानवों का द्विपाद होना व उसके परिणाम स्वरूप दो पैरों पर सीधा खड़ा हुआ शरीर। इन सबके लिये आवश्यक बदलाव पैरों की अस्थियों में होते गये। पैरों के विभिन्न जोड़ों में आवश्यक बदलाव पैरों की अस्थियों में होते गये। पैरों के विभिन्न जोड़ों में आवश्यक बदलाव होते गये। हाथों की अस्थियों की तुलना में पैरों की हड्डियाँ ज्यादा मोटी, ज्यादा मजबूत और ज्यादा स्थिरता प्रदान करने वाली होती हैं। इसके लिये जोड़ों में शक्तिशाली लिंगामेंट्स होते हैं। हड्डियों की आंतरिक रचना (ट्रॅब्यॅक्युली)इस प्रकार की होती हैं कि जिससे वह हड्डियों पर पड़ने वाले सभी तनावों का वहन अच्छीतरह से कर सकें। स्त्रियों में बच्चे के जन्म को सुलभ बनाने के लिये कमर की इॅनॉमिनेट व जाँघों की हड्डियों में योग्य बदलाव हो गये हैं।

हम मानव दो पैरों पर खड़े रहते हैं तथा चलते हैं। फलस्वरूप  हमारे शरीर का गुरुत्वाकर्षण केन्द्रबिंदु (Centre of gravity) पीछे मणकों के स्तंभ की ओर सिसक गया हैं। इसके कारण शरीर का कमर के ऊपर का भाग सामने की ओर खीचे जाने की संभावना कम हो गयी हैं। दोनो पैरों में गुरुत्वाकर्षीय रेखा अथवा केन्द्रबिंदु, दोनो घुटनो के सामने होती हैं। गुडदों के बाहरीय ओर से व  घुटनों के अंदर की ओर यह बिंदु सरकता जाता है। इसके लिये अनुकूल पावों की हड्डियों की व जोड़ों की रचना होती है।  फलस्वरूप  जब हमारे चलते समय जो पैर स्थिर होता है उसी पर सारी की सारी गुरुत्वीय शक्ती को एकत्र करने के लिये शरीर को ज्यादा श्रम नहीं करना पड़ता है। स्थिर पैर पर शरीर का संतुलन रखना संभव होता है। तथा दूसरे पैर को आगे रखने के लिये ज्यादा समय मिलता है। इसके कारण भागते समय अथवा जल्दी-जल्दी चलते समय लम्बे-लम्बे कदम रखना संभव होता है।

मानव के विकास के दौरान जो-जो बदलाव शरीर के अवयवों में एवं अस्थि-पंजर में होते गये, उनमें से सबसे ज्यादा बदलाव अथवा विकास पैरों का हुआ है। अन्य प्राणियों में पैरों का उपयोग स्पर्शज्ञान व पकड़ने के लिये प्रमुखता से होता है। परन्तु मानवों में सभी प्रकार की गतियाँ ही प्रमुख उद्दीष्ट है। इसी लिये पाँवों के सांधो के दरम्यान की गतिविधियाँ कम हो गयी। ङ्गलत: जमीन पर चलना आसान हो गया। चलते समय पैर एक प्रकार से पतवार का काम करते हैं। इससे पैर के आगे रखने की क्रिया की अधिक शक्ती मिलती हैं। पैरों की अस्थियों की रचना कमानी जैसी होती है। इनें arches of the foot कहते हैं। ये किसी स्प्रिंग की तरफ  काम करती हैं। यदि हम अपने चलने की क्रिया को ध्यान से देखे तो हमारे ध्यान में आयेगा कि अपना ऊपर उठाया गया पैर हम आगे बढ़ाकर जमीन पर रखते हैं। यह क्रिया चलने के वेग पर नियंत्रण रखती हैं। जमीन पर पैर रखते समय हम पहले अपनी ऐड़ी रखते हैं व बाद में पैर का अगला भाग यानी पंजा स्थिर होता है। फिर से उठाते समय हम पहले अपनी ऐडी उठाते है तथा पंजे से जमीन पर जोर देते हैं। इससे पैरो को आगे जाने की शक्ती व गती प्राप्त होती है। इसे propulsive force कहते हैं। इन सभी क्रियाओं कें पैरों की कमानी महत्त्वपूर्ण काम करती है। रचना के दृष्टिकोण से पैरों की हड्ड्इयों की कमानी को दो भागों में बांटा गया है। बाहर की ओर की कमानी (lateral arch) व अंदर की ओर की कमानी अर्थात (medial arch) बाहरी कमान पैर को स्थिर करने काम करती है तथा अंदर की कमान पैर को आगे जाने की गति देती हैं। इसका फायदा चलने की क्रिया को होता है। इस क्रिया के लिये बिल्कुल कम शक्ति खर्च करनी पड़ती है तथा चलना आसान हो जाता है। ये हमारे शरीर के शॉक अ‍ॅबसॉरबर्स है।

कमर की हड्डियों की रचना को पेलविक गर्डल कहते हैं, यह हमने पहले देखा है। कमर की दोनों ओर की हड्डियाँ सामने प्युबिक सिमफायसिस में जुड़ती हैं। उसी तरह पीछे की ओर सॅकरल कशेरुकाओं से जुड़कर एकसंघ पेलवीस बनाती हैं। यहाँ पर पैरों का पंजर ऑक्सियल पंजर से जोड़ा जाता है। इस जोड़ को सक्रोआयलियाक सांधा कहते हैं। द्विपाद परिस्थिति से जुड़ने के लिये इस सांधे ने दो चीजें छोड़ दीं और दो चीजे स्वीकार कर लीं। स्थिरता के लिए गति एवं मुक्तता छोड़ दी और शरीर का वजन पैरों पर वहन करने के लिये अपनी सख्ती कम कर दी।

अब हम कमर की अस्थियों का अध्ययन करते हैं।
(क्रमश:)

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