श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ३२)

चार स्त्रियाँ

हमें रात्रि के समय सोने से पहले आने वाले कल के सभी कामों की योजना, समय का नियोजन कर लेना सीखना चाहिए । ‘ऐन वक्त पर काम करते समय यदि ऐसा कुछ हुआ तो क्या करना पडे़गा, उसके लिए कितना समय देना पडे़गा’ इस बात का भी नियोजन कर लेना चाहिए, सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि सुबह उठने पर यदि साईनाथ का नाम मेरे मुख से अपने आप निकले ऐसा मैं चाहता हूँ, तो इसके लिए रात में सोते समय साई का नाम लेते लेते सोना चाहिए । सुबह के लिए नियोजन पहले रात्रि के समय ही कर लेना चाहिए, फिर  नींद खुलेगी वह साईस्मरण में ही ।

एक दिन सुबह के समय । बाबा करके दंतधावन ।
पूरा करके मुखप्रक्षालन । गेहूँ महीन पीसने बैठ गये ॥

‘समय का नियोजन’ इस तत्त्व का दिग्दर्शन साईनाथ हमें इसके माध्यम से कैसे कर रहे हैं, इस बात के अध्ययन का आरंभ हम कर रहे हैं । बाबा के आचरण से हमें क्या सिखना चाहिए, इस अध्ययन का यह प्रथम सोपान है । यदि कल सुबह उठकर निश्चित समय पर कुछ करना हो, तो निर्धारित समय के अंदर ही नित्य कर्म पूरा कर लेना चाहिए, यही ‘समय का नियोजन’ बाबा मानवी धरातल पर स्वयं के आचरण से हमें दिग्दर्शित कर रहे हैं ।

हम हमेशा यह निश्चय करते हैं कि आज मुझे इतना समय इस काम को देना है, फिर  उसके अनुसार मुझे समय का नियोजन पहले से ही करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर यदि मैंने तय किया है कि आज शाम को सेवा कार्य में एक घंटा दूँगा, मुझे अस्पताल में जाकर बीमारों की सेवा में एक घंटा रहना है,  फिर  इसके लिए पहले से ही समय निर्धारित कर लेना चाहिए । मेरा कचहरी का काम पूरा करके निश्चित समय पर मैं घर जाऊँगा, उसके पश्चात् शाम के समय आह्निक, रामनाम बही लेखन कार्य, चरखा आदि जो कुछ भी मेरा नित्यकर्म है अथवा बच्चों की पढाई लेनी है, घर का सामान लाना है आदि घर के अन्य आवश्यक काम हैं, उन्हें जो समय देना पडे़गा उसका हिसाब करके उसके अनुसार ही नियोजन कर फिर मुझे एक घंटा सेवाकार्य में देना चाहिए ।

वापस लौटने पर घर में रहनेवाले मेरे कामों को भी विशिष्ट समय पर पूरा करना चाहिए । आज इन कुछ विशेष कार्यों को समय देना है इसीलिए बिना नियोजन किये ही उस काम के लिए चल पड़ना और फिर  ‘जाने दो, आज आह्निक एक समय नहीं करूँगा, रामनाम वही भी कल ही लिखूँगा’ ऐसा कहकर नित्य कर्म में कटौती करना सर्वथा अनुचित ही है । आज वृक्षारोपण (पेड पौधे लगाना) के लिए जाना है इसीलिए सुबह बिना भोजन बनाये ही बाल-बच्चों को भूखा रखकर यदि कोई महिला वृक्षारोपण के लिए जाती है, तो यह बात साईनाथ को बिलकुल भी अच्छी नहीं लगेगी ।

मुझे यदि पता है कि कल सुबह सेवा-कार्य के लिए मुझे इतना समय देना है तो इसके लिए एक दिन पहले ही मुझे घर-गृहस्थी एवं पारमार्थिक नित्यकर्म करने के लिए जितना समय लगेगा उतने समय पहले उठकर अपने सभी कार्य पूर्ण करके फिर  ही नियत समय सेवाकार्य में देना चाहिए ।

अकसर हम यहीं पर ग़लती करते हैं। हमें लगता है कि आज इतना समय भजन करना है, जप करना है अथवा इतना समय सेवा में देना है, तो अपने नित्य कर्तव्य-कर्म आदि में कटौती करने में क्या हर्ज है? लेकिन ऐसा करना सर्वथा अनुचित है । हम गृहस्थाश्रमी हैं, हम पर घर की जिम्मेदारियाँ भी है और उसे पूरा करना भी उतना ही ज़रूरी है । यदि हमें भक्ति-सेवा में, परमार्थ में अधिक समय देने का मन होता है तो वह निश्चित ही अच्छी बात है, पर इसके लिए यदि मैं अपने कर्तव्य आदि को अनदेखा करता हूँ तो वह गलत है । घर पर वृद्ध माता-पिता को समय न देकर बाहर जाकर अपना समय कोई सेवा-कार्य आदि में व्यतीत करता है, तो इसका क्या फायदा है? कुछ भी नहीं।

मेरे वृद्ध माता-पिता, मुझ पर निर्भर रहनेवाले मेरे छोटे बच्चे, मेरी सहधर्मचारिणी पत्नी आदि को रोज निश्चित समय देना यह सब मेरा कर्तव्य ही है । उनके प्रति होनेवाले कर्तव्य के प्रति कटौती करना और उनके लिए समय न देकर दूसरे स्थान पर जाकर उस समय को व्यतीत करना सर्वथा अनुचित ही है । मुझे यदि सेवाकार्य में समय देना है तो मुझे एक घंटा जल्दी उठकर समय का नियोजन करना चाहिए परन्तु नित्य कर्त्यव्य कर्म को छोड़कर उस समय का उपयोग दूसरी जगह पर नहीं करना चाहिए । हाँ, यदि कभी आपात्कालीन परिस्थिति निर्माण हो जाती है, उस समय की बात और है । उस समय मेरे साईनाथ की भक्ति और उनके बच्चों की सेवा हेतु मुझे आगे-पीछे सोचने की ज़रूरत नहीं है । परन्तु साईनाथ की इच्छा से मुझे जो गृहस्थाश्रम प्राप्त हुआ है, उसके प्रति अपना कर्त्यव्य निभाना, उसे समय देना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है । गृहस्थी का भार उठाते हुए परमार्थ करना चाहिए । घर पर माता-पिता, बीबी-बच्चों को भूखा छोड़कर कोई व्यक्ति बाहर कितनी भी सेवा क्यों न कर ले, वह सब व्यर्थ होता है ।

सुबह के समय हम घर पर यूँ ही देर तक आलस के कारण बिस्तर पर पडे रहते हैं । फिर  उठने में देर हो जाती है । फिर  दो घंटे खुद के लिए खर्च करते हैं और फिर  ‘आज देर हो गई अब आज का दिन पूजापाठ नहीं करूँगा, कल करूँगा’ ऐसा कहकर कचहरी आदि में मैं चला जाता हूँ और वहाँ पर भी देर से आने के लिए कुछ न कुछ बहाना बना ही लेता हूँ । फिर  ऑफिस  में थोडा बहुत काम करके उसी काम के समय में धीरे से समाचार पत्र पढ़ना शुरू कर देता हूँ, क्योंकि सुबह समय नहीं मिला होता है ।

ऑफिस  के समय में ऑफिस  का ही काम करना मेरा कर्तव्य है । फिर  सुबह साईसच्चरित पढ़ने का समय नहीं मिला इसलिए ऑफिस  के कार्य-समय में अखबार के साथ साथ साईसच्चरित भी पढ़ लिया तो वह मेरे साईनाथ को बिलकुल भी अच्छा नहीं लगेगा । यदि पढ़ना ही है तो मैं अपने दोपहर के भोजन के समय में जल्दी से भोजन करके, उस समय में साईसच्चरित पढ़ सकता हूँ । पर उस समय हम व्यर्थ की गॉसिप में वह समय व्यर्थ करते हैं । हमें एक बात याद रखनी चाहिए कि किसी भी काम का समय चुराकर दूसरे काम में व्यतीत करना यह भी समय की चोरी ही मानी जाती है और उसका परिणाम भुगतना ही पड़ता है । ऑफिस  में काम करते-करते मैं अपने साईबाबा का स्मरण, उनका नामस्मरण ज़रूर कर सकता हूँ । साथ ही अपना काम भी मैं पूरी ईमानदारी के साथ करूँगा परन्तु मेरे कर्तव्य में बाधा उत्पन्न हो ऐसा काम मुझे बिलकुल नहीं करना है ।

साईनाथ सुबह स्वयं समय पर उठकर दन्तधावन करके, मुखप्रक्षालन करके ही गेहूँ पीसने बैठते हैं । ‘क्यों मुँह धोऊँ पीसने के लिए? ऐसे ही बैठ जाऊँ तो भी चलेगा, थोडी देर और नींद पूरी कर लूँ । वैसे भी पीसते समय पसीना तो आने ही वाला है और मुँह धोऊँ या ना धोऊँ, पीसने के काम में क्या फर्क पड़ता है?’ परन्तु इसके लिए मूलभूत शरीर-शुद्धि का जो नित्य प्रातर्विधि मनुष्य के लिए करना ज़रूरी होता है, वह सब बाबा स्वयं करते हैं और फिर  ही गेहूँ पीसने बैठते हैं । इसके लिए बाबा समय का नियोजन करते हैं और उस विशेष समय पर उस विशेष काम को निश्चित रूप में करते हैं ।

इससे हमें सीखना चाहिए कि हर रोज रात्रि समय में सोने से पहले अगले दिन के सभी कामों का नियोजन, समय का नियोजन कर लेना चाहिए । ‘ऐन वक्त पर यदि कोई दिक्कत पेश आती है, तो क्या करना चाहिए, उस मुश्किल को हल करने के लिए कितना समय देना पडे़गा’ इन सब बातों का भी नियोजन करना चाहिए । सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सुबह उठने पर यदि इस साईराम का नाम मेरे मुख से अपने-आप निकले ऐसी मेरी इच्छा है, तो इसके लिए मुझे रात्रि सोते समय ही साई का नाम लेते लेते ही सोना चाहिए । सुबह के लिए नियोजन रात के समय ही करना चाहिए, फिर  उठते ही अपने आप नींद खुलेगी- साईनामस्मरण के साथ । सुबह समय पर उठने के लिए हम अलार्म रात को सोने से पहले ही निर्धारित करते हैं ना!

One Response to "श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ३२)"

  1. Arundel damoder tawde   June 16, 2016 at 7:00 pm

    Samay ki pabandhi. Honewale kamoka niyojan.

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published.