समय की करवट (भाग ७१) – क्युबन मिसाईल क्रायसिस

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।

इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं।
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‘यह दोनों जर्मनियों का पुनः एक हो जाना, यह युरोपीय महासंघ के माध्यम से युरोप एक होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। सोव्हिएत युनियन के टुकड़े होना यह जर्मनी के एकत्रीकरण से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है; वहीं, भारत तथा चीन का, महासत्ता बनने की दिशा में मार्गक्रमण यह सोव्हिएत युनियन के टुकड़ें होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।’
– हेन्री किसिंजर
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इसमें फिलहाल हम पूर्व एवं पश्चिम ऐसी दोनों जर्मनियों के विभाजन का तथा एकत्रीकरण का अध्ययन कर रहे हैं।

यह अध्ययन करते करते ही सोव्हिएत युनियन के विघटन का अध्ययन भी शुरू हो चुका है। क्योंकि सोव्हिएत युनियन के विघटन की प्रक्रिया में ही जर्मनी के एकीकरण के बीज छिपे हुए हैं, अतः उन दोनों का अलग से अध्ययन नहीं किया जा सकता।

सोविएत युनियन का उदयास्त-३१

अमरीका और रशिया में अब क्या प्रत्यक्ष रूप में परमाणुयुद्ध होगा, ऐसा साधार डर दुनिया को जिस पेचींदा हालातों के कारण लग रहा था, वह यानी ‘क्युबन मिसाईल क्रायसिस’! इसकी पूर्वपीठिका हमने देखी ही है।

जब क्युबा में फिडेल कॅस्ट्रो का त़ख्ता पलटने के अमरीका के ‘बे ऑफ पिग्ज’ जैसीं कोशिशें ज़ाहिर होकर नाक़ाम हुईं, तब कॅस्ट्रो ने सचेत होकर, इस प्रकार की पुनरावृत्ति न हों इसलिए कदम उठाये।

ठीक उसी समय अमरीका की तुलना में क्षेपणास्त्रप्रतिस्पर्धा में पिछड़ गया सोव्हिएत रशिया, अमरीका को मात देने का मौक़ा ही ढूँढ़ रहा था। वह उसे इसके ज़रिये मिला।

क्युबा अमरिकी हमले से बचने के लिए सुरक्षा चाहता था; वहीं, अब तक दीर्घ टापू के क्षेपणास्त्र विकसित न कर सके सोव्हिएत को, उनके मध्यम टापू के क्षेपणास्त्र तैनात करने के लिए ऐसी जगह चाहिए थी, जहाँ से उनकी क्षेपणास्त्रों की पहुँच में पूरी अमरीका आ सकें।

उसके लिए क्युबा यह सर्वोत्तम विकल्प था।

क्युबा में इस प्रकार सोव्हिएत ‘सरफेस-टू-एअर मिसाईल्स’ (‘सॅम’) तैनात किये गए थे।

‘क्युबा की सुरक्षा के लिए अपरिहार्य होनेवाली’ ख्रुश्‍चेव्ह की योजना कॅस्ट्रो को पसन्द आयी। सोव्हिएत ने फिर और समय न गँवाते हुए, ज़मीन पर से हवा में दागे जा सकनेवाले (‘सरफेस-टू-एअर’) क्षेपणास्त्रों के खुले (स्पेअर) पार्ट्स जहाज़ों में से क्युबा में ले जाने की शुरुआत की। उन पार्ट्स को कहाँ इकट्ठा करना है, कहाँ और कैसे क्षेपणास्त्रों को तैनात करना है, यह पहले ही तय हो चुका था।

बिलकुल गुप्तता से यह गतिविधि चल रही थी।

क्युबा की ओर क्षेपणास्त्रों का वहन कर ले आनेवाला सोव्हिएत जहाज़….

लेकिन क्युबा की भेंट करनेवाले सोव्हिएत जहाज़ों की अचानक बढ़ी हुई संख्या अमरिकी गुप्तचरयंत्रणा की नज़र से छूटी नहीं थी। लेकिन वह संख्या बढ़ क्यों रही है, यह उनके लिए अभी तक अनसुलझी पहेली थी। उन जहाज़ों पर प्रायः हथियार ही होने चाहिए, ऐसा मानकर चलते हुए केनेडी प्रशासन ने सोव्हिएत के पास उसके बारे में अपनी नापसन्दगी दर्ज की थी। साथ ही, सन १९६२ के सितम्बर महीने में पत्रकार परिषदें आयोजित कर, ‘क्युबा आक्रामक क्षेपणास्त्र तैनात ना करें, अन्यथा परिणाम गंभीर होंगे और क्युबा में से हुआ इस प्रकार का क्षेपणास्त्रों का हमला यह सोव्हिएत रशिया द्वारा किया हुआ हमला माना जायेगा और अमरीका उसका उसी भाषा में जवाब देगी’ ऐसे आशय की चेतावनियाँ भी दीं थीं।

इन जहाज़ों पर शस्त्रास्त्र होंगे, ऐसा सूचित करनेवाली और भी जानकारी अमरिकी अमेरिकी गुप्तचर विभाग के पास आयी थी। क्युबा में कार्यरत होनेवाले एक सीआयए एजंट ने, ‘क्युबा के पास भी अब परमाणुअस्त्र हैं’, ऐसा कॅस्ट्रो के निकटवर्तियों में से एक को एक बार में उसके दोस्त को चुपके से बताते हुए सुना था। वैसे अमरिकी सेना के विमान क्युबा के टोह में रहते ही थे। उन्हें कुछ स्थानों पर अलग ही ‘गंध’ आने लगी थी, लेकिन अभी तक निश्‍चित् रूप से कुछ ठोस सबूत हाथ नहीं लगा था।

क्युबा आनेवाले सोव्हिएत जहाज़ों की संख्या क्यों बढ़ी थी, यह पहेली अचानक सन १९६२ के अक्तूबर महीने में सुलझ गयी।

१५ अक्तूबर १९६२ को अमेरिकी सेना के ‘यू-२’ टोह विमान ने खींची एक जासूसी तस्वीर में, क्युबा में एक स्थान पर सोव्हिएत क्षेपणास्त्र तैयार होकर तैनात हो रहे होने की बात स्पष्ट रूप में दर्ज हुई।

दूसरे दिन यानी १६ अक्तूबर १९६२ को भोर में ही अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष केनेडी को इसकी इत्तिलाह कर दी गयी।

केनेडी अब बहुत ही दुविधा में फँस गये। एक तो, नाक़ाम हुए ‘बे ऑफ पिग्ज’ ऑपरेशन को लेकर केनेडी प्रशासन अमरिकी नागरिकों द्वारा आलोचना का शिकार हो चुका था और केनेडी की व्यक्तिगत लोकप्रियता धीरे धीरे कम होती जी रही है, ऐसा कई ‘ओपिनियन पोल्स’ में सामने आ रहा था। उन ‘ओपिनियन पोल्स’ में, क्युबा प्रश्‍न पर केनेडी प्रशासन ठीक तरह से कार्यवाही नहीं कर रहा है, ऐसी भावना होनेवाले नागरिकों की संख्या बढ़ती चली जा रही थी।

साथ ही, उनके सत्ताग्रहण के पहले दो सालों में ही विरोधी पार्टी रिपब्लिकन्स ने, डेमोक्रॅटिक पार्टी के केनेडी के विरोधकों के साथ मिलीभगत कर, इस क्युबा मसले पर और अन्य भी मुद्दों पर, केनेडी को अमरिकी संसद (अमेरिकन काँग्रेस) में कई बार मुश्किल में फँसा दिया था। उसीके साथ, कुछ राज्यों में चुनावों की तैयारियाँ शुरू हो चुकी थीं।

ऐसी परिस्थिति में क्युबा मोरचे पर के इस नये घटनाक्रम से केनेडी अच्छेख़ासे चिंतामग्न हुए।

अगर क्युबा को ज़मीन पर से हवा में दागे जानेवाले क्षेपणास्त्र मिल गये हैं, तो वे हमारे टोह विमान भी मार गिरा सकते हैं यह ध्यान में लेकर, यदि वैसा हुआ तो ख़ामख़ाँ विरोधकों के हाथ में मशाल न आयें, इस कारण टोह विमानों को क्युबा से दूर रहने के आदेश दिये गए।

इस क्रायसिस पर चर्चा करने के लिए केनेडी ने अपने अतिविश्‍वसनीय सलाहगारों का एक कार्यगुट तैयार किया था।

उसीके साथ केनेडी ने अपने चौदह अतिमहत्त्वपूर्ण सलाहगारों का कार्यगुट तैयार किया और अगले सात दिन उनके बीच इस घटनाक्रम पर सर्वंकष चर्चाएँ होते समय, परिस्थिति पर बारिक़ी से नज़र रखने के आदेश दिये। इस कार्यगुट में अमरिकी सेना के प्रतिनिधि, लॅटिन अमरीका के अभ्यासक, सीआयए के प्रतिनिधि ऐसीं उच्चपदस्थ हस्तियाँ थीं।

अमरीका द्वारा कौनसे कदम उठाये जाने पर उसके तात्कालिक और दीर्घकालीन परिणाम क्या होंगे, इस मुद्दे को लेकर इस गुट की दिनरात चर्चाएँ शुरू थीं। कई विकल्पों पर चचाएँ हो रही थीं। ‘कुछ भी ना करें और क्युबा पहला कदम उठाने तक इन्तज़ार करें’ से लेकर ‘सोव्हिएत रशिया के साथ चर्चा करें और सोव्हिएत रशिया के पास के तुर्कस्तान-इटली इन जैसे देशों में तैनात होनेवाले अमरिकी क्षेपणास्त्र हटा देने के बदले क्युबास्थित ये सोव्हिएत क्षेपणास्त्र हटा देने का सौदा करें’; ‘क्युबा पर हमला करें’; ‘क्युबा को घेर लें’; ‘इन क्षेपणास्त्रों के स्थानों पर हमलें कर उन्हें नाक़ाम कर दें’ तक काफ़ी सारे विकल्पों पर चर्चा की गयी।

अभी तक उलझा हुआ मसला सुलझ नहीं रहा था….

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