समय की करवट (भाग २१)- अच्छी समूहप्रवृत्ति

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।

आज हम झुँड़ मानसिकता (हर्ड मेंटॅलिटी) के एक और पहलू का अध्यय यन करनेवाले हैं।

एक जगह से दूसरी जगह निकले प्राणियों के झुँड़ का अध्ययन करते समय वैज्ञानिकों के ध्यान में यह बात आ गयी कि उस झुँड़ में पहले स्थान (अग्रस्थान) पर रहनेवाला प्राणि यह भी उस झुँड़ के अन्य प्राणियों की तरह विशेषताएँ रहनेवाला ही होता है। यह ज़रूरी नहीं है कि वह अन्य प्राणियों की तुलना में हमेशा ताकतवर, बुद्धिमान् वगैरा हों और वह अन्य प्राणियों के आगे चलने का कारण भी केवल ‘संजोग’ के सिवाय अन्य कुछ नहीं होता है। यदि ऐसा है, तो फ़िर झुँड़ के अन्य सदस्य उसके पीछे पीछे क्यों चलते हैं? यही है वह झुँड़प्रवृत्ति! उस ‘पहले’ के तुरन्त पीछे होनेवाले, केवल वह चल रहा है इसलिए उसके पीछे पीछे चलते हैं। उनके पीछे रहनेवाले केवल ये सब उस दिशा में जा रहे हैं इसलिए उनके पीछे पीछे चलने लगते हैं। इस प्रकार वह झुँड़ चलते रहता है।

मनुष्यप्राणि का बर्ताव भी कई बार इसी प्रकार का होता है, यह हमने इससे पहले विभिन्न उदाहरणों के द्वारा देखा है। कोई भी नयी चीज़ ख़रीदते समय, निवेश के व्यवहार करते समय, या फिर जीवनावश्यक किसी भी चीज़ की क़िल्लत (कमी) पैदा होगी इस डर के कारण उनका संग्रह करते समय; दरअसल कही पर भी ‘क़तार’ (लाईन) लगाते समय अनजाने में हममें यह झुँड़प्रवृत्ति प्रवेश करती है और उसीका नाजायज़ फायदा उत्पादन बेचनेवालीं कंपनियों से उठाया जाता है।

यह झुँड़प्रवृत्ति मनुष्य में कैसे प्रवेश करती है, इसपर संशोधन करनेवालें एक युनिव्हर्सिटी के संशोधकों ने निरीक्षणों के द्वारा इस बात की खोज की कि किसी समूह का नेतृत्व करने के लिए केवल ५ प्रतिशत लोग काफ़ी होते हैं और ऐसा हरगिज़ ज़रूरी नहीं है कि ये ५ प्रतिशत लोग उन बाक़ी ९५ प्रतिशत लोगों से ज़्यादा बुद्धिमान् वगैरा हों; उनका केवल थोड़ासा बहुश्रुत होना पर्याप्त होता है! (यानी यहाँ पर यह बात ध्यान में आ जायेगी कि कितने अनजाने में हम – यदि उन ९५ प्रतिशत लोगों में से हों तो – अपनी अक्ल का इस्तेमाल न करते हुए दूसरे पर निर्भर रहते हैं।)

इस निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए उन संशोधकों ने किये हुए कई प्रयोगों (एक्सपरिमेंट्स) में से एक प्रयोग कुछ इस तरह था –
तक़रीबन दो सौ लोगों को एक बड़े हॉल में इकट्ठा किया गया और उस हॉल में ‘कैसे भी (रँडमली) चलना है’ ऐसी सूचना उन्हें दी। लेकिन उनमें से चन्द कुछ गिनेचुने लोगों को ‘कैसे चलना है’ इस बारे में कुछ विशिष्ट सूचनाएँ दी थीं। औरों को बस ‘आपको चलना है’ इसके अलावा अन्य कोई भी सूचना नहीं थी। थोड़ी देर बाद उन संशोधकों ने देखा तो नज़ारा कुछ इस प्रकार था कि उन ‘आपको इसी तरह चलना है’ ऐसी सूचनाप्राप्त उन गिनेचुने लोगों के पीछे पीछे, इस प्रकार की कोई सूचना न मिले हुए अधिकांश लोग चलने लगे थे और साँप के जैसे टेढ़ीमेढ़ी लाईन तैयार हो चुकी थी।

उन चलनेवालों की मनःस्थिति का यदि हमने विचार किया, तो ध्यान में आ जायेगा कि जिन्हें सूचनाएँ नहीं मिली थीं, उन्हें ‘उनको बस्स चलना है’ इतना ही मालूम था, लेकिन ‘कहाँ पर और कैसे जाना है’ यह मालूम नहीं था; वहीं, जिन्हें सूचनाएँ मिली थीं, उन्हें कहाँ और कैसे जाना है इसकी जानकारी होने के कारण, उनके बर्ताव में अनजाने में ही सही, मग़र एक किस्म की सहजता, एक किस्म का आत्मविश्‍वास था और उस आत्मविश्‍वास की बदौलत ही वे ‘नेता’ बन गये।

झुँड़ मानसिकता
संघप्रवृत्ति और अच्छी समूहप्रवृत्ति इनमें फर्क़ है। संघभावना से खेलनेवाला समूह किसी व्यक्ति का अनुसरण नहीं करता, बल्कि एक ध्येय की ओर जाता है। वहीं, अच्छी समूहप्रवृत्ति में मैं किसी व्यक्ति को ही ‘फ़ॉलो’ करता हूँ, लेकिन वह सोचसमझकर; उस व्यक्ति की जिन बातों को मैं ‘फ़ॉलो’ करने जा रहा हूँ, उनमें से कौनसीं बातें मुझे सूट करती हैं, यह देखकर ही मैं उतनी ही बातों को ‘फ़ॉलो’ करता हूँ।

हम ज़िन्दगीभर ऐसे कई ‘नेताओं’ के पीछे पीछे ही दौड़ते रहते हैं। फ़िर कभी वह बचपन में पढ़ाई में माहिर माना जानेवाला कोई सहाध्यायी हो, तो कभी ऑफ़िस का काम शीघ्र गति से निबटाने के लिए हमेशा सराहा जानेवाला कोई सहकर्मचारी (कलीग); कभी अपनी स्वतंत्र करतब के तेज से चमकनेवाला खिलाड़ी हो सकता है, तो कभी सर्वोच्च पद हासिल किया हुआ कोई गायक! ये हमें ‘रोल मॉडेल’ प्रतीत होते हैं और उनकी तरह ही आचरण करने का हम प्रयास करते रहते हैं। लेकिन यह अनुकरण यदि महज़ उनकी कॉपी करना हुआ, तो हम झुँड़ की मानसिकता में फँस सकते हैं। उस होशियार छात्र का अनुकरण करना चाहनेवाले कई लोग होंगे और ‘जितने व्यक्ति उतने स्वभाव’ इस न्याय से, उन सभी ‘अनुयायियों को’ उसकी पढ़ाई करने की पद्धति सूट हो ही जायेगी ऐसा नहीं है। इसलिए बिना सोचेसमझे उसकी कॉपी करने के बजाय, उल्टा उसकी पढ़ाई करने की पद्धति, नोट्स निकालने की पद्धति इनमें से मुझे क्या सूट होता है, इसका अध्ययन करना चाहिए। उसे शायद रेडिओ लगाकर पढ़ाई करने की आदत हो सकती है और वह शायद उसे सूट भी करती होगी। लेकिन मैंने यदि बिना सोचेसमझे यह आदत डालनी चाही, तो शायद अगले साल उसी क्लास में फिर से बैठने की नौबत मुझपर आ सकती है। यह सब सारासार विचार करके, किसी क्षेत्र के ‘नेता को फ़ॉलो करते समय भी’ यानी उसकी बातों का अनुकरण करते समय भी सोचसमझकर ही अनुकरण करें।

या फिर कई बार किसी हाऊसिंग सोसायटी वगैरा की मीटिंग में देखिए, सक्रिय सहभाग लेनेवाले सदस्य बहुत ही थोड़े होते हैं, इसकी या उसकी हाँ में हाँ मिलानेवाले ही बहुत सदस्य होते हैं। ये लोग ‘सोसायटी का हित’ इस ध्येय को अहमियत न देते हुए, अपने समय समय के फायदे के लिए या फिर उस उस समय की मेजॉरिटी के अनुसार इसका या उसका समर्थन करते रहते हैं। यह बुरी झुँड़प्रवृत्ति ही है।

संघप्रवृत्ति और अच्छी समूहप्रवृत्ति इनमें फर्क़ है। संघभावना से खेलनेवाला समूह किसी व्यक्ति का अनुसरण नहीं करता, बल्कि एक ध्येय की ओर जाता है और उस ध्येय को साध्य करने के लिए उस संघ (टीम) का हर एक सदस्य अपनी पूर्ण क्षमता का इस्तेमाल करता है। वहीं, अच्छी समूहप्रवृत्ति में मैं किसी व्यक्ति को ही ‘फ़ॉलो’ करता हूँ, लेकिन वह सोचसमझकर; उस व्यक्ति की जिन बातों को मैं ‘फ़ॉलो’ करने जा रहा हूँ, उनमें से कौनसीं बातें मुझे सूट करती हैं, यह देखकर ही मैं उतनी ही बातों को ‘फ़ॉलो’ करता हूँ।

बुरी झुँड़प्रवृत्ति के बारे में हमने इससे पहले के लेखों में जान लिया है और इस लेख में उस हॉल में चलनेवाले आदमियों के उदाहरण से भी देखा है। अब कोई यह पूछ सकता है कि चलने जैसी सीधीसादी अ‍ॅक्टिव्हिटी में भला क्या दिमाग लड़ाना है? और किसी के पीछे चलने से भला कौनसा इतना बड़ा पहाड़ टूटनेवाला है?

यहाँ सवाल केवळ किसी के पीछे चलने का नहीं है, यह तो मात्र एक प्रयोग (एक्सपरिमेंट) है। लेकिन चलने जैसी सीधीसादी क्रिया में भी जब धीरे धीरे अनजाने में यह ‘फ़ॉलो’ करना हो रहा है, इसका मतलब इस प्रयोग में से समझ में आनेवाली झुँड़ की मानसिकता उन आदमियों के जीवन में अन्य क्षेत्रों में भी यक़ीनन ही काम करती होगी और यह चिन्ता की बात है।

तो ऐसी यह झुँड़प्रवृत्ति! संघप्रवृत्ति (टीम स्पिरिट) तो चाहिए ही। लेकिन समाज में पेश आते समय यदि हममें रहनेवाली झुँड़प्रवृत्ति दिखायी देती हो, तो कम से कम वह अच्छी समूहप्रवृत्ति ही होनी चाहिए। इसीमें से आगे चलकर धीरे धीरे हमारा अनुशासनबद्ध समूह (टीम) बनेगा।

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