समर्थ इतिहास-३

सम्राट समुद्रगुप्त ये पराक्रमी एवं रणनीतिनिपुण योद्धा तो थे ही, साथ ही वे श्रेष्ठ एवं कुशल शासक भी थे| उन्होंने जिते हुए प्रदेशों के सभी राजाओं को उनके राज्य सम्मानपूर्वक लौटाये, केवल समुद्रगुप्त की सार्वभौमता को मानने की शर्त पर| ऐसे हर एक सामंत राजा के यहॉं समुद्रगुप्त के अपने दूत होते थे और समुद्रगुप्त के दरबार में हर एक सामंत राजा का एक प्रतिनिधि होता था| हर एक राज्य की स्थिति के अनुसार समुद्रगुप्त के अधिकारी वार्षिक कर (टॅक्स) निश्‍चित करते थे, इस कारण सूखा, अतिवृष्टी आदि कारणों से भले ही कम कर प्राप्त हुआ हो, परन्तु उन मांडलिक (अधीन) राज्यों और सामंत राजाओं पर व्यर्थ भार नहीं होता था| साथ ही उन राज्यों के हर एक कठिन प्रसंग में समुद्रगुप्त उदारता से सहायता करते थे| इस कारण समुद्रगुप्त का यह अतिविशाल साम्राज्य लंबे समय तक कायम रह सका|

समुद्रगुप्त ने अपने साम्राज्य में स्थित खनिजों और धातुओं का संचय ढूँढने के लिए और खदानों के विकास के लिए एक अलग ही यंत्रणा का निर्माण किया और इस कारण भूगर्भ में छिपी हुई संपत्ति प्राप्त हो सकी|

समुद्रगुप्त द्वारा किया गया एक और सुंदर कार्य था, उन्होंने व्यापार को अधिकृत राजकीय मान्यता देने का उपक्रम आरंभ किया| विभिन्न प्रदेशों अथवा समुद्र के रास्ते जाने वाले व्यापारियों अथवा उनके काफ़िलों का राजदरबार में अधिकृत रूप से पंजीकरण किया जाता था| इस तरह पंजीकृत किये गये व्यापारियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए शासन वचनबद्ध होता था| समुद्रगुप्त के नियम के अनुसार जिस प्रदेश में व्यापारियों को लूटा जाता था, उस प्रदेश के सामंत राजा को व्यापारियों को क्षतिपूर्ति (हरज़ाना) देनी पड़ती थी| इस नियम के कारण सामंत राजा और उनके अधिकारी हमेशा दक्ष होते थे और व्यापारी निश्‍चिन्त होते थे| इस व्यवस्था के कारण व्यापार को बढ़ावा मिलकर समुद्रगुप्त का खज़ाना भी हमेशा भरा हुआ ही रहता था|

प्रचंड विस्तृत साम्राज्य और आंतरराष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय धरातल पर चल रहा इतना प्रचंड व्यापार, इन दोनों बातों को सुव्यवस्थित रूप से सँभालने के लिए ज़ाहिर है कि एक समर्थ एवं प्रभावी गुप्तचर यंत्रणा की आवश्यकता होती है और इस तथ्य को अच्छी तरह जानकर समुद्रगुप्त ने अत्यंत व्यापक गुप्तचर यंत्रणा का निर्माण किया था| समुद्रगुप्त की पटरानी दत्तदेवी ही इस गुप्तचर यंत्रणा की प्रमुख थीं| दत्तदेवी कौटिल्य की नीति की विशेषज्ञ मानी जाती थीं| इन दत्तदेवी ने संपूर्ण भारत में और भारत के बाहर के साम्राज्यों में रहने वाले प्रदेशों में और व्यापारी जहॉं जहॉं जाते थे, उन साम्राज्य के बाहर रहनेवाले देशों में भी अपना जाल बुना था| दत्तदेवी ने साम्राज्य के छह विभाग किये थे| १) मध्यप्रदेश से ऊपर हिमालय तक उत्तराखंड २) गुजरात और राजस्थान में शक-क्षत्रपों के राज्यों का पश्‍चिमखंड ३) पूर्व में रहनेवाले गणराज्य यह पूर्वखंड ४) कुशाणों के राज्य रहनेवाला कुशाणखंड ५) दक्षिण के कुल १२ राज्यों का एकत्रित दक्षिणखंड और ६) हिमालय से परे रहनेवाले राज्यों का सिंधुखंड| इस हर एक खंड पर दत्तदेवी के तीन-तीन अधिकारी होते थे और केवल ये अधिकारी ही दत्तदेवी से मिल सकते थे| लेकिन ये तीनों अधिकारी एक-दूसरे को नहीं पहचानते थे और इस कारण अपने आप ही समाचारों की विश्‍वसनीयता को समझना आसान हो जाता था| दत्तदेवी की मुख्य दासी और सचिव भद्राकुमारी की देखरेख में गणिकाओं की (कलावतियों की) एक यंत्रणा बनायी गयी थी| गणिकाओं को उनके हुनर का उत्तम प्रशिक्षण दिया जाता था (गायन, वादन, नर्तन, प्रसाधन) और साथ ही उन्हें राजकीय दृष्टि से भी प्रशिक्षित किया जाता था| स्वयं दत्तदेवी ऐसी महिलाओं में से कुछ विशेष एवं गुणवान महिलाओं का चयन कर उनके द्वारा भी अन्य राज्यों में बड़ी बड़ी घटनाओं को अंजाम देती थीं| इनके बारे में एक आख्यायिका बतायी जाती है कि इन्होंने राजधानी में और जहॉं जहॉं समुद्रगुप्त जाते थे, वहॉं वहॉं हूबहू समुद्रगुप्त जैसे ही दिखनेवाले एवं बर्ताव करनेवाले पुरुषों का निर्माण कर रखा था और इसी कारण समुद्रगुप्त का घात करने की सारी कोशिशें नाक़ाम हो गयीं| इन दत्तदेवी ने एक बार स्वयं का एक ऐसा पुतला बनवाया था कि स्वयं समुद्रगुप्त ने भी जब तक उस पुतले को नहीं छुआ, तब तक उन्हें भी वास्तविकता का एहसास नहीं हुआ| ऐसे पुतलों का इस्तेमाल शायद राजघराने के व्यक्तियों का अता-पता किसी को न हो, इसलिए किया जाता होगा|

दत्तदेवी की दूसरी एक विशेषता यह थी कि वे अत्यंत निपुण रत्नपारखी (रत्नों की परख करनेवाली) थीं और आयुर्विद्या विशेषज्ञ भी थीं| यह माना जाता है कि समुद्रगुप्त का खज़ाना कुल नौ स्थानों पर रखा जाता था और उनमें से केवल दो विभाग ही हमेशा के कामकाज़ के लिए उपयोग में लाये जाते थे| इन दो कोषों में स्वर्ण और चांदी के सिक्के और सोने के छड़ होते थे, वहीं, बाकी के सात विभागों में हीरे और रत्नों के भंडार होते थे और उनका इस्तेमाल केवल पहले दो विभागों के कोषों के घट जाने पर ही किया जाये, यह आज्ञा थी| इनमें से हर एक दालान (विभाग) आज के परिमाण के अनुसार पच्चीस हज़ार वर्ग फीट का था, इस पर ग़ौर करने पर यह पता चल सकता है कि भारत के पास कितनी अनगिनत संपत्ति थी| इन खजानों में रहनेवाले सभी हीरों और रत्नों को परखकर उनका वर्गीकरण करने का काम भी दत्तदेवी की देखरेख में चलता था|

यह सारी संपत्ति गयी कहॉं?

(क्रमशः)

(यह अग्रलेख मूलत: मराठी में प्रकाशित किया गया और अब हिन्दी में अनुवादित और पुन:प्रकाशित किया गया है।)

सौजन्य : दैनिक प्रत्यक्ष

 

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