सॅम पित्रोदा

वैज्ञानिक वर्तमानकाल में पूर्णता प्राप्त कर भविष्य की उड़ान भरते रहते हैं। यह दूरदृष्टि कुछ गिने-चुने लोगों को ही प्राप्त हुई होती है। ऐसे लोगों का द्रष्टापन यह सामान्य जनों की दृष्टि से कुछ भिन्न ही होता है। तकनीशन एवं वैज्ञानिक सॅम पित्रोदा इनके मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। इक्कीसवी सदी में प्रवेश करते समय दूरध्वनि की व्यवस्था यह अपनी पूर्णावस्था में थी। आज गाँव-देहातों में भी दूरध्वनि की सुविधा उपलब्ध है। हाल ही के कुछ वर्षों में इसमें काफ़ी बदलाव आया है और इसमें कुछ मूलभूत सुधार लाने का काम करने के संबंध में सॅम पित्रोदा का नाम सर्वोच्च स्थान पर है।

यह सारा चमत्कार कोई एक रात में ही नहीं हुआ है, बल्कि देश के दूरसंचार के क्षेत्र में क्रांति ले आने के लिए विविध शास्त्रों के शास्त्रज्ञों ने अपार परिश्रम किये हैं। दूरसंचार सेवा की ये सुविधाएँ उपलब्ध करके देनेवालों को विविध प्रकार के योजनाओं की रूपरेखा बनाने के लिए जिन लोगों ने महत्त्वपूर्ण योगदान किया, उनमें पिछले दशक के सॅम पित्रोदा का नाम महत्त्वपूर्ण माना जाता है। विज्ञान के मूलभूत संशोधन कार्य का भविष्यकाल की दृष्टि से उपयोग करने के लिए संशोधनकर्ता के पास दूरदर्शिता का होना आवश्यक होता है।

सॅम पित्रोदा अर्थात श्रीसत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा का जन्म सन १९४२ में ओरिसा के तितलागढ़ नामक गाँव में हुआ। यह पित्रोदा परिवार गुजरात से ओरिसा राज्य में स्थलांतरित हो गया था। महात्मा गांधी के विचार एवं उनके तत्त्वप्रणालि को उन्होंने अपनाया था। अपने बच्चे भी इन्हीं तत्त्वों एवं वातावरण में रहते हुए उनका आचरण करते हुए बड़े हों, इसी लिए उन्हें गुजरात के वल्लभनगर में पढ़ने हेतु रखा था। सॅम पित्रोदा ने पदार्थ विज्ञान और इलेक्ट्रॉनिक्स इन विषयों में महाराज सयाजीराव महाविद्यालय (वड़ोदरा) से उपाधि प्राप्त शिक्षा हासिल की। इसके पश्‍चात् अमरीका के शिकागो महाविद्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की उपाधि प्राप्त की। शिक्षा के पश्‍चात् जी.टी.ई. कंपनी में अपने काम की शुरुआत कर ‘वेसकॉम स्विचिंग’ यह पद्धति सन १९८० में विकसित की और इसी कंपनी में वे उपाध्यक्ष के रूप में काम करने लगे। यह कंपनी आगे चलकर ‘रॉकवेल इंटरनेशनल’ इस नाम से जानी जाने लगी। इस कंपनी के ‘टेलीकॉम बिझनेस’ इस विभाग की सारी ज़िम्मेदारी उनके पास थी। सन १९८४ में पित्रोदा भारत में पुन: लौट आये।

भारत आने पर टेलिमॅटिक्स के विकास हेतु स्वतंत्र संशोधन केन्द्र की स्थापना उन्होंने की। देशांतर्गत ही नहीं बल्कि विदेश में भी सड़कें एवं सुलभ तरीके से संपर्क साध्य करने हेतु उस काल में पीले रंग के टेलीफोन बूथ हमने देखे हैं (पी.सी.ओ.), जिस कारण एस.टी.डी., आय.एस.डी. इस प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध हुईं। १९८७ में प्रधानमंत्री के सलाहगार के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। टेलीकॉम विकास विषयक काम करनेवाले राष्ट्रीय तकनीशन विकास मंडल के प्रमुख पद का भार वे सँभाल लें यह योजना थी। परन्तु पित्रोदा एवं उनके मंत्रीपद के दर्जे के इस मेल-जोल में कहीं बात बिगड़ गई और वे पुन: अमरीका चले गए।

इस बीच का समय उन्होंने कम्प्यूटर एवं सॉफ्टवेअर तकनीकी ज्ञान इस व्यवसाय में व्यतीत किया। केवल मोबाईल की सहायता से सारा व्यवहार किया जा सके इसके लिए उन्होंने ‘वन वॅलेट’ नामक तकनीक विकसित की। उ-डअच के वे संस्थापक एवं प्रमुख बन गए। इस कंपनी के लंडन, टोकियो आदि में कार्यालय थे। साथ ही भारत में मुंबई एवं वड़ोदरा में भी उनकी उपशाखाएँ हैं। इससे पहले १९७५ में उनके द्वारा खोज़ की गई (आविष्कृत) इलेक्ट्रॉनिक्स डायरी जिसका उपयोग हाथ में पकड़ने के बजाय कम्प्यूटर के आरंभिक समय के दौरान का एक प्रकार था। टेलीफोन स्वीच में मायक्रोप्रोसेसर विकसित करने के उनके काम से ही वे आगे चलकर उन्होंने डिजिटल स्वीचिंग का आरंभ किया। आज सॅम पित्रोदा के नाम पर १०० (सौ) से अधिक पेटंट दर्ज हैं। १९९२ में ‘सॅम पित्रोदा अ बायोग्राफी’ नामक पुस्तक प्रसिद्ध की। जो ‘द इकॉनॉमिक टाईम्स’ के सर्वेक्षण के अनुसार एव बेस्ट सेलर थी। अनेक ज़िम्मेदारियों को निभानेवाले पित्रोदा ये एक ‘डेव्हलपमेंट गुरु’ हैं ऐसा कहा जाता हैं।

वैश्‍विक स्तर पर उल्लेखनीय कार्य करने के लिए दिया जानेवाला ‘कॅनडा इंडिया फाऊंडेशन’ का ‘चंचलानी ग्लोबल इंडियन’ पुरस्कार २००८ में पित्रोदा को कॅनडा के प्रधानमंत्री डॉ. अब्दुल कलाम की उपस्थिति में दिया गया। २००२ में ‘डाटाक्वेस्ट आय. टी. लाईफटाईम अचिव्हमेंट’ पुरस्कार, वहीं २००९ में ‘पद्मभूषण’ नामक इस सम्माननीय पुरस्कार से पित्रोदा को गौरवान्वित किया गया। भारत के सात महाविद्यालयों ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.