जेम्स मॅक्स्वेल (१८३१-१८७९)

बुद्धिमान संशोधक न्यूटन का एक हृदयस्पर्शी वाक्य है- ‘मैं आनेवाले विश्‍व को जैसे भी देख सका, वह वैज्ञानिक महात्माओं के कांधे पर खड़ा होकर ही।’ यही वाक्य अक्षरश: सत्य साबित हुआ वह ‘जेम्स मॅक्स्वेल’ नामक इस संशोधक के संबंध में।

जेम्स मॅक्स्वेलजेम्स मॅक्स्वेल का जन्म स्कॉटलैंड के एडिंबरा नामक स्थान पर हुआ। मॅक्स्वेल घराना प्रतिक्षित एवं प्रसिद्ध था। केवल कर्तृत्व के ममले में ही नहीं बल्कि उस घराने के व्यक्तियों के अजीबो-गरीब मूड के कारण भी वे प्रसिद्ध थे। उनके पिता वकील थे परन्तु वकीली न करते हुए उन्होंने अपनी जायदाद पर अधिक ध्यान दिया। साथ ही बच्चों की शिक्षा पर भी ध्यान दिया। नन्हें जेम्स काफी जिज्ञासु थे। हर एक बातों के प्रति, यंत्रों के प्रति उनके मन में अनेक प्रश्‍न उठते रहते थे। आज कल बच्चों को यंत्र अथवा अन्य कुछ भी बनाने के लिए मेकॅनो अथवा तत्सम सामुग्री सहज ही उपलब्ध होती हैं। परन्तु जेम्स के समय ऐसा कुछ नहीं था। इसी लिए वे स्वयं ही सामग्री तैयार कर फिर उससे स्वयं ही यंत्र बनाते थे। स्कूल में बच्चे उन्हें ‘डॅफ्टि’ इस नाम से चिढ़ाते थे और वही नाम हमेशा उनके साथ रहा। बचपन से ही उन्हें कविता का शौक था। सोने की एवं जागने की उनकी एक विचित्र आदत थी। दिन के कुछ विशेष क्षण सोना और बाकी के समय जागना। परन्तु उनके जागने का समय कभी दिन में आता था तो कभी रात्रि के समय भी और फिर रात्रि के दो-ढ़ाई बजे भी सीढ़ियों से ऊपर नीचे करते हुए उनका अच्छा खासा व्यायाम हो जाता था और इससे अन्य विद्यार्थियों को तकलीफ होती थी।

उम्र के १४वें वर्ष में मॅक्स्वेल ने दीर्घवर्तुल (ellipse) निकालने की एक अलग ही कृति कर दिखाई, इसमें विशेष बात यह थी कि उनके प्राध्यापकों ने रॉयल सोसायटी के समक्ष यह एक छोटासा शोध निबंध पढ़कर दिखलाया।

१८५४ में मॅक्स्वेल ने प्रथम उपाधि प्राप्त की, इसके पश्‍चात् केंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज से उनका अगला अध्ययन कार्य चल ही रहा था। इस दौरान भूरा, हरा, जामुनी इन प्रमुख तीन रंगों के मिश्रण से जो चाहे वह रंग बनाया जा सकता है, इस बात का शोध भी उन्होंने ही किया। आज कल जिन यंत्रों में रंग मिलाना होता है, वहाँ पर मॅक्स्वेल के रंगसूत्रों का उपयोग प्रमुख तौर पर किया जाता है। इस शोध के लिए मॅक्स्वेल को रॉयल सोसायटी की ओर से रूम्फर्ड मेडल दिया गया।

१८६४ में ‘डु डायनॅमिकल थिअरी ऑफ दि इलेक्ट्रो मॅगनेटिक फिल्ड’ इस शास्त्रीय ग्रंथ के कारण ही वे विश्‍वप्रसिद्ध हुए। इस ग्रंथ के ही कारण रेडियो, टेलिव्हिजन, रडार साथ ही जिस क्षेत्र में रेडियो तरंग की निर्मिति होती है ऐसे क्षेत्रों के दरवाजे खुल गए। मॅक्स्वेल ने कुछ वर्षों तक प्राध्यापक का कार्य किया। सामान्य बच्चों की अपेक्षा होशियार बच्चों को उनके सिखलाने की पद्धति काफ़ी उपयोगी साबित होती थी। फॅरॅडे ने चुंबकीयत्व से बिजली निर्मिति की जो खोज की, उससे मॅक्स्वेल के विचारों को प्रेरणा मिली। चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव करने पर उसमें होनेवाले ऐसे ही किसी वाहक में विद्युत प्रवाह शुरु होता है, ऐसे फॅरॅड ने सिद्ध किया था, परन्तु बदलते रहनेवाले चुंबकीय क्षेत्रों के कारण अवकाश में विद्युत् परिणाम निर्माण होता है और विद्युत क्षेत्र में बदलाव आने पर चुंबकीय परिणाम निर्माण होता है ये दोनों एकत्रित होते हैं और प्रकाश की गति के साथ प्रवास करते हैं यह भी आगे चलकर मॅक्स्वेल ने सिद्ध किया। मॅक्स्वेल ने अपने जीवन के अंतिम दो वर्ष अपनी बीमार पत्नी की सेवा-सुश्रुषा में गुजार दिए। उन्हें भी कैंसर जैसे दुर्धर रोग ने ग्रसित कर रखा था। स्वभाव से प्रेमल, नि:स्वार्थी, दयालु, विनोदी, कवि का हृदय रखनेवाले ये शास्त्रज्ञ अपनी उम्र के ४८वें वर्ष ही इस दुनिया को छोड़ गये।

मॅक्स्वेल के मृत्यु के दस वर्ष पश्‍चात् उनके विद्युत चुंबकीय सिद्धांत की योग्यता हेनरिस हर्त्झ ने रेडियो प्रक्षेपक बनाकर सिद्ध कर दिखलाया। वैसे ही मॅक्स्वेल के मृत्यु के ७०-७५ वर्ष पश्‍चात् इलेक्ट्रॉनिक इंजिनियर्स रडार, मायक्रोवेव के स्पष्टीकरण के लिए उनके सूत्रों का उपयोग किया गया।

स्वयं की विलक्षण कल्पनाशक्ति, अपार बुद्धिमत्ता इससे मॅक्स्वेल ने जो शोध किया उसका अर्थ आज भी विज्ञान जगत को पूरी तरह से समझ में नहीं आया होगा। अभी भी भविष्य में ऐसे शोध किए जाएँगे, जिनका मूल यह मॅक्स्वेल के संशोधन में पाया जा सकता है। रेडियो तरंग, क्ष-किरण, गामा किरणों के समान संशोधनों की संभावना यह शोध लगने से कितने ही वर्षों पूर्व से ही मॅक्स्वेल के संशोधन में छिपी हुई थी। केवल प्रत्यक्ष में इसका शोध मॅक्स्वेल के पश्‍चात् ही प्राप्त हुआ।

हेन्री कॅव्होंडिश के शास्त्रीय लेख एकत्रित करके छापने का महत्त्वपूर्ण काम मॅक्स्वेल ने किया तथा विद्युत क्षेत्र के कॅव्होंडिश का संशोधन दुनिया के समक्ष प्रस्तुत किया।

आईनस्टाईन नामक संशोधनकर्ता के अभ्यासकों की दीवार पर उनके आदर्श के रूप में फॅरॅडे, न्यूटन आदि के साथ-साथ मॅक्स्वेल की तस्वीर भी लगाई गई थी। वैज्ञानिक जगत् में विज्ञान के विधाताओं में से एक महत्त्वपूर्ण स्थान मॅक्स्वेल ने बना रखा है।

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