डॉ. रघुनाथ अनंत माशेलकर

उत्तम संगठनकर्ता, प्रशासक एवं विख्यात आंतरराष्ट्रीय खोजकर्ता

स्कूल में बिना चप्पल पहने पैदल चलकर जानेवाला एक छात्र, जिसके लिए मैट्रिक की परीक्षा में बोर्ड की बुद्धिमान बच्चों की सूचि में नाम होने के बावजूद भी अधिक पढ़ पाना असंभव था। परन्तु इस कठिन परिस्थिति में हार न मानते हुए अत्यधिक परिश्रम करने से ही भारत के डॉ. रघुनाथ माशेलकर ने विख्यात संशोधनकर्ता का स्थान प्राप्त किया। डॉ. माशेलकर ये राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर की अनेक विज्ञान, तकनीकी ज्ञान योजनाओं के अग्रगण्य शिल्पकार माने जाते हैं।

१ जनवरी १९४३ के दिन जन्मे डॉ. माशेलकर मूलत: गोवा के माशेल नामक गाँव के निवासी हैं। सन १९६६ में मुंबई युनिर्व्हिसिटी से केमिकल इंजिनियर की उपाधि अर्जित करने वाले माशेलकरजी ने १९६९ में डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की। आज लगभग २० से २५ महाविद्यालयों ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की है। इनमें बनारस, पुणे, दिल्ली, चेन्नई, कानपूर, इंग्लैंड, अफ्रीका, अमरीका के महाविद्यालयों का समावेश है।

वे आज के दौर के सुपरिचित, जन-मित्र वैज्ञानिक हैं। डॉ. माशेलकर केवल वैज्ञानिक ही नहीं हैं, बल्कि वे एक उत्तम संगठनकर्ता और प्रशासक भी हैं। अपने साथ के तथा उच्च एवं कनिष्ठ पद पर काम करनेवाले सभी लोगों को साथ लेकर चलना, यह गुण भी डॉ. माशेलकर में हैं।

अमरिका जैसे बलशाली माने जानेवाले राष्ट्रों के साथ हल्दी, नीम, बासमती चावल जैसी वस्तुओं के पेटंट से संबंधित लड़ाई जीतकर भारत का नाम दुनिया भर में प्रसिद्ध करने का श्रेय (क्रेडिट) भी इसी संशोधक को जाता है। देश के ३८ संशोधन एवं विकास प्रयोगशालाओं का कामकाज संभालनेवाली ‘कौन्सिल ऑफ सायन्टिफ़िक अ‍ॅण्ड इन्डस्ट्रिअल रिसर्च’ संस्था के वे जनरल डायरेक्टर हैं। पुणे की राष्ट्रीय रसायन प्रयोगशाला के वे संचालक थे।

डॉ.माशेलकर ये एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के रसायन अभियांत्रिकी विशेषज्ञ हैं। ‘पॉलिमर’ यह उनके संशोधन का विशेष विषय हैं। विकसनशील देशों के लिए उन्होंने पारंपारिक ज्ञान का संरक्षण एवं संवर्धन किया है (उदा. हल्दी)। इन कोशिशों का रूपांतर ही TKDL (Traditional Knowledge Digital Library) में हुआ है। पॉलियर विज्ञान एवं पेट्रोकेमिकल्स इन विषयों में उन्होंने २३० से अधिक निबंध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत किए हैं। इन विषयों से संबंधित २० पुस्तकें लिखकर प्रकाशित की हैं। डॉ.माशेलकर के समान वैज्ञानिक के ३० वर्षों के कार्यों के फलस्वरूप भारतीय एवं वैश्‍विक उद्योग बढ़ाने के लिए संशोधन विषयी यंत्र विकसित करने में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

पिछले १०-१२ वर्षों से डॉ. माशेलकर विशेषकर ज्ञान एवं जानकारी की धरोहर मानकर उसकी सुरक्षा करने के कानून का निर्माण करने के लिए कार्यरत हैं। प्रधानमंत्री की वैज्ञानिक सलाहगार समिति के सदस्य होने के साथ साथ कॅबिनेट की वैज्ञानिक समिति के सदस्य के रूप में उन्होंने काम किया है। इंग्लैंड की रॉयल सोसायटी का सदस्यत्व सम्मान भी उन्हें प्राप्त हुआ है।

‘पंडित जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार’, ‘डॉ. शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार’, ‘विश्‍वकर्मा पुरस्कार’, जी.डी.बिर्ला पुरस्कार’, ‘जे. आर. डी. टाटा कॉर्पोरेट लिडरशिप अ‍ॅवॉर्ड १९९८’, १९९१ में ‘पद्मश्री’, २००० में ‘पद्मभूषण’ इस प्रकार के महत्त्वपूर्ण पुरस्कारों से उन्हें गौरवान्वित किया गया है। ‘स्टार्स ऑफ एशिया’ यह बिझनेस विक (यू.एस.ए.) अ‍ॅवॉर्ड जॉर्ज बुश द्वारा प्रदान किया गया है। वे इस अ‍ॅवॉर्ड को प्राप्त करनेवाले एशिया खंड के प्रथम संशोधनकर्ता हैं।

इतना मान-सम्मान, विज्ञान का ज्ञान-भंडार होकर भी वे नम्र, आश्‍वासक, दूसरों के साथ प्रेमपूर्वक एवं मैत्रीपूर्ण संबंध बनाये रखनेवाले वैज्ञानिक हैं।

डॉ.माशेलकर के कार्य की व्यापकता को देखते हुए उन्हें प्राप्त उच्च पद, पुरस्कार, पदक, उपाधि, सदस्यत्व एवं मान-सम्मान यह सब प्राप्त होना यह तो केवल औपचारिकता ही थी। वे इन सबसे कहीं अधिक महान हैं।

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