डॉ. होमी सेठना

स्वतंत्रता के बाद के छह दशकों में भारत में जो शैक्षणिक एवं वैज्ञानिक प्रगति हुई, उसका देश के विकास पर निश्‍चित ही अच्छा परिणाम हुआ है। यह सब साध्य हुआ है, केवल भारत को केन्द्रस्थान में रखकर भारत के विकास के लिए निरंतर प्रयास करते रहनेवाले संशोधनकर्ताओं (अनुसन्धानकर्ताओं) के ही कारण। संशोधनकर्ताओं की श्रृंखला की एक कड़ी हैं, भारत के मुंबई शहर के निवासी डॉ. होमी सेठना।

२४ अगस्त १९२३ के दिन एक पारसी परिवार में जन्मे होमी नौसेरवानजी सेठना ने अपनी स्कूली शिक्षा मुंबई के सेंट जेवियर्स विद्यालय से पूरी की। मुंबई एवं अन्य अनेकों महाविद्यालयों से उपाधि प्राप्त कर चुके डॉ. सेठना ये भारतीय संशोधन के अग्रसर डॉ. विक्रम साराभाई के समकालीन थे। एक वैज्ञानिक के रूप में उन्होंने अपना कार्य शुरू किया और स्वकर्तृत्व के बल पर ही अणुशक्ति मंडल के अध्यक्ष साथ ही देश के अणुसंशोधन विषय खाते के प्रमुख सचिव पद तक पहुँच गए।

आरंभ में एक फ्रेंच प्रकल्प के लिए काम करने का निर्णय उन्होंने किया। इस दरमियान विज्ञान के साथ साथ फ्रान्सिसी (फ्रेंच) भाषा पर भी उन्होंने प्रभुत्व प्राप्त किया। सन १९४९ में भारत में पुन: लौटकर केन्द्र शासन के ‘इंडियन रेअर अर्थस् लिमिटेड’ इस सार्वजनिक क्षेत्र से संबंधित कंपनी में वे काम करने लगे। इसके पश्‍चात् केरल के अल्वाई नामक स्थान पर अपने प्रकल्प के निर्माण का एवं निरंतर अणुक्षेत्र के लिए मूलद्रव्य का शोध करने की जिम्मेदारी डॉ. होमी सेठना को सौंप दी गई। इसके पश्‍चात् मुंबई वापस लौटने पर तुर्भे नामक स्थान पर थोरियम प्लॅन्ट एवं न्यूक्लिअर ग्रेड यूरेनियम के निर्माण हेतु उनके नेतृत्व मे प्रकल्प का निर्माण कार्य आरंभ हो गया। १९५९ में अणुशक्ति मंडल के कार्यालय में प्रमुख प्रोजेक्ट इंजिनियर के रूप में उनकी नियुक्ति हो गई। इसी संस्था का नाम आगे चलकर ‘डॉ. भाभा अणुसंशोधन केन्द्र’ रखा गया। १९६७ में तुर्भे के प्ल्युटोनियम प्रकल्प की रचना, निर्मिति करने की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी डॉ. होमी सेठना ने निभायी। इसके पश्‍चात् डॉ. होमी सेठना ने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अणुवैज्ञानिक के रूप में अपनी पहचान बनाई।

१९६६ में डॉ. भाभा के आकस्मिक निधन के पश्‍चात् भाभा अणु संशोधन केन्द्र एवं अणुशक्ति आयोग इन दोनों की जिम्मेदारी डॉ. होमी सेठना को सौंप दी गई। उम्र के ४३ वे वर्ष ही इतने उच्च पद पर आसीन होना यह डॉ. सेठना की बुद्धिमत्ता के साथ साथ उनकी प्रशासकीय कुशलता को भी उस समय सरकार की ओर से प्रदान किया गया पुरस्कार था। बिहार के जाड़गुड़ा नामक स्थान की यूरेनियम मिल डॉ. सेठना के मार्गदर्शन के अनुसार बनाकर पूर्ण की गई। १९५६-५८ के दरमियान कॅनडा इंडिया रिअ‍ॅक्टर नामक इस प्रकल्प के वे प्रमुख वैज्ञानिक थे। संयुक्त राष्ट्रों के शांतमय कार्य हेतु ही अणुशक्ति का उपयोग करने के संबंध में ही परिषद के उपाध्यक्ष के रूप में डॉ. सेठना ने कार्य किया है। पोखरण के प्रथम यशस्वी अणुस्फोट परीक्षण करने की ‘स्माईलिंग बुद्धा’ योजना के वे अध्यक्ष थे। और उनके साथ एक महत्त्वपूर्ण शास्त्रज्ञ डॉ. राजा रामण्णा एवं अनेको सहसंशोधकों की एक टीम थी।

‘इंडियन अ‍ॅकॅडमी ऑफ सायन्स’ नामक अपने देश के महत्वपूर्ण विज्ञान संस्था के वे संचालक थे। १९७६ में पुणे के ‘महाराष्ट्र अ‍ॅकडमी ऑफ सायन्स’ के वे प्रथम संचालक थे। १९७८ में ‘रेअर अर्थस् लिमिटेड’ नामक इस कंपनी के वे अध्यक्ष थे। १९७९ में इलेक्ट्रॉनिक्स कार्पोरेशन ऑफ इंडिया इस कंपनी के अध्यक्ष साथ ही ‘टाटा ऑईल मिल’ इस कंपनी के संचालक पद भी वे कुछ समय तक विराजमान रहे।

१९६० में वैज्ञानिक क्षेत्र के लक्षणीय कारीगिरी के प्रति दिए जानेवाले ‘डॉ. भटनागर’ पुरस्कार से भी उन्हें गौरावान्वित किया गया। इसके साथ ही भारत सरकार की ओर से पद्मश्री, पद्मभूषण एवं पद्मविभूषण ऐसे पद्म पुरस्कारों से उन्हें विभूषित किया गया। सन १९६७ में मिशिगन महाविद्यालय ने भी उन्हें पुरस्कार देकर सम्मानित किया है।

मुंबई के ‘इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी’, ओरिसा के कृषि एवं तकनीकी ज्ञान महाविद्यालय ने उन्हें सम्मानित किया है। सरकी, कर्नाटक, मैसूर, उत्कल, मराठवाड़ा आदि महाविद्यालयों ने उन्हें सम्माननीय डॉक्टरेट पद देकर गौरवान्वित किया है।

भारत यह शांतिप्रिय एवं संयमशील देश है। इस भारत भूमि को अधिक सबल बनाने हेतु प्रयत्नशील रहनेवाले एक विज्ञानविशारद है, डॉ. होमी सेठना।

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