जॉर्ज क्लाऊड (१८७०-१९६०)

‘ग्रँड पॅलेस’, पॅरिस, हर साल की तरह १९१० में भी ग्रँड पॅलेस में बड़ी-बड़ी गाड़ियों की प्रदर्शनी लगी हुई थी। इस बार के प्रदर्शनी की विशेषता केवल गाड़ियाँ ही नहीं थीं बल्कि कुछ और भी था, जो विशेष था। प्रदर्शनी के स्थान पर दोनों ओर बड़े स्तंभ लगाये गए थे। इन स्तंभों में चालीस फ़ीट लंबाई वाली दो नलियाँ जोड़ी गईं थी। सुबह के समय इस प्रदर्शनी के लिए आनेवाले लोगों को इन नलियों के संबंध में कोई भी जानकारी नहीं थी। मग़र शाम होते ही अचानक प्रदर्शनी का वातावरण जगमगा उठा। उन चालीस फीट नलियों का रहस्य अब खुल चुका था। वह शुरुआत थी दुनिया के प्रथम निऑन साईन्स की, एक अद्भुत जगमगाती हुई दुनिया की।

Georges Claude

फ्रान्स में चौबीस सितंबर, १८७० में जन्म लेनेवाले जॉर्ज क्लाऊड ने शास्त्र एवं अभियांत्रिकी इन दोनों विषयों में उपाधि प्राप्त कर अपना संशोधन कार्य आरंभ कर दिया था। विल्यिम रॅम्से एवं रॅले इन्होंने १८९७ में आरगॉन, निऑन, हेलियम इनके समान निष्क्रिय वायु की खोज की थी। इन वायुओं का अनेक प्रकार से उपयोग एक के बाद एक पड़ाव के अनुसार दुनिया के सामने आ रहा था। अनेकविध शास्त्रज्ञ उनकी उपयुक्तता से संबंधित संशोधन कर रहे थे।

इस संबंध में अध्ययन करते समय जॉर्ज क्लाऊड को डॅनियल मूर द्वारा विकसित किये गये दीपक की जानकारी हासिल हुई। उस समय के अनुसार विकसित किए गए दीपक में उत्पन्न वायु का उपयोग तुरंत ही किये जाने के कारण उसकी उम्र कम हो जाती है, वहीं मूर ने स्वयंचलित रिफिलिंग वॉल्व्ह विकसित करके उन दीपकों के यांत्रिक ज्ञान में बदलाव लाने की कोशिश की। इस वॉल्व्ह से दीपक की वायु के कम होनेवाले दबाब को पुन: पूर्ववत किया जा सकता था। इसके लिए लगनेवाले उपकरण बड़े होने के कारण मूर के प्रयोग को काफी हद तक सफलता नहीं मिली। लेकिन जॉर्ज क्लाऊड जैसे कई लोगों को इस प्रयोग से प्रेरणा मिली।

मूर के प्रयोग से प्रेरित होनेवाले जॉर्ज क्लाऊड के दिलो-दिमाग में ‘इस दीपक के लिए क्या ‘निष्क्रिय’ वायु का उपयोग किया जा सकता है’ इस संबंध में विचारों के बादल मंडराने लगे। इसी संबंध में संशोधन करते समय क्लाऊड को वायु और दीपक के लिए उपयोग में लाये जाने वाले इलेक्ट्रोड का संबंध आने पर वायु का दबाव कम होने की बात का पता चल गया। प्रयोग करते समय निष्क्रिय वायुओं का समूह उनमें होने वाले विशेष गुणधर्म के कारण उपयुक्त साबित हो रहा है ऐसा दिखाई दिया।

इस निष्कर्ष से उत्साहित होनेवाले क्लाऊड ने एक-एक निष्क्रिय वायु पर अलग-अलग प्रयोग करना शुरु किया। इस प्रयोग में निऑन वायु अधिक आकर्षक ढंग से प्रकाश उत्सर्जित करते हुए दिखाई दे रही थी। निऑन वायु का उपयोग करने पर उत्सर्जित होनेवाले गेरुए रंग का प्रकाश दैनिक रूप में उपयोग में लाये जाने के संबंध में क्लाऊड ने अपना प्रयोग कार्य आरंभ कर दिया। उसी समय क्लाऊड के मित्र दैनिक रुप में उपयोग में लाये जाने की अपेक्षा गेरुए रंग के प्रकाश का उपयोग विज्ञापन हेतु अधिक लाभदायी साबित होगा ऐसी सलाह दी। इसी के अनुसार जॉर्ज क्लाऊड ने पॅरिस के प्रदर्शनी में अपना पहला यशस्वी प्रयोग किया और यहीं से निऑन साईन्स के युग का आरंभ हुआ।

पॅरिस के यशस्वी प्रयोग के पश्‍चात् जॉर्ज क्लाऊड ने १९ जनवरी १९१५ के दिन अमेरिका में निऑन साईन्स का पेटंट लिया। पेटंट दाखिल करने के पश्‍चात् क्लाऊड ने व्यावसायिक स्तर पर निऑन साईन्स का उत्पादन करने का निर्णय किया एवं ‘क्लाऊड निऑन’ नामक कंपनी की स्थापना की। बिलकुल दो दशकों की कालावधि में ही क्लाऊड निऑन कंपनी ने अमेरिका एवं यूरोप में होनेवाली ९० प्रतिशत से अधिक कंपनियों के लिए निऑन साईन्स उपलब्ध करवाते हुए अनेक प्रकार के शहरों में भी जगमगाहट लाने में अपना योगदान दिया।

कालांतर में नये-नये निष्क्रिय वायुओं का शोध करने के पश्‍चात् एवं अत्याधुनिक यांत्रिक ज्ञान के आधार पर आकर्षक रंग के ट्युब के लिए विभिन्न घटकों का उपयोग शुरू हो गया। उसके साथ होने वाले ‘निऑन साईन्स’ इस नाम में कोई परिवर्तन नहीं आया। आज का युग यह विज्ञापन युग नाम से जाना जाता है। ये विज्ञापन विविध प्रकार के चैनलों द्वारा लोगों तक पहुँचाये जाते हैं। वे आकर्षक ढंग से कहीं पर भी दिखाये जाने के लिए निऑन साईन्स का ही उपयोग किया जाता है। आँखों को चकाचौंध कर देने वाले रंग-बिरंगी विज्ञापन लोगों को और भी अधिक आकर्षित करते हुए अकसर दिखाई देते हैं। आज दुनिया के विविध शहरों में होनेवाले जगमगाहट की विशेषता कहकर इसका उल्लेख किया जाता है। इस जगमगाहट के पिछे जॉर्ज क्लाऊड नामक इस फ्रेंच संशोधन कर्ता का योगदान भला कैसे भूला जा सकता है।

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