‘लॉ ऑफ डिस्प्लेसमेंट’

जहाज़ के प्रयोग से प्रभावित हुए हिरो राजा ने आर्किमिडिज पर एक विशेष ज़िम्मेदारी सौंप दी। उस समय में हिरो राजा ने एक प्रसिद्ध सुनार से अपने लिए एक विशेष सोने का मुकुट बनवाया था। वह मुकुट शत प्रतिशत सोने का ही है अथवा उसमें कोई मिलावट की गई है, इस बात का पता राजा लगाना चाहता था। आर्किमिडिज को यह विशेष कार्य सौंपते हुए राजा ने एक शर्त भी रखी थी। और वह शर्त यह थी कि इस मुकुट पर किसी भी प्रकार की खरोच आदि नहीं आनी चाहिए। आने वाले कुछ दिनों तक आर्किमिडीज इस प्रश्‍न को लेकर व्यस्त रहे।

Archimedes - आर्किमिडिज

आर्किमिडीज पर सौंपा गया यह काम जितना चुनौती पूर्ण था उतना ही नाजुक भी था। मिलावट, और वह भी राजा के मुकुट में इतना साहस भला कौन कर सकता था? इस विकल्प ने राजा को पूरी तरह से घेर लिया था और आर्किमिडीज के अलावा और कोई भी मेरी शंका का समाधान कर ही नहीं सकता था यह विश्‍वास राजा के मन में दृढ़ था। उस समय के दौरान सोने का वजन देखने का कार्य अथवा उसकी शुद्धता के बारे में जाँच करने के लिए उसे पिघलाना भी ज़रूरी था, इसके अलावा और कोई विकल्प भी उपलब्ध न था और दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि राजा ने अन्य सुनारों से इस विषय पर चर्चा करने पर उन्होंने भी यही बताया था कि बगैर तोड़-फोड़ किए इसके बारे में कोई भी जानकारी नहीं दी जा सकती है।

इसमें भी आर्किमिडीज कोई सुनार न होकर एक संशोधन कर्ता थे। वे भला कैसे ढूँढ़ सकते थे इस मिलावट के प्रकार को, इस बात के प्रति अनेक लोगों की ओर से आलोचनाएँ शुरु हो चुकी थीं। लेकिन आर्किमिडीज को अपनी सूझबूझ एवं ज्ञान पर पूरा विश्‍वास था और इसी आत्मविश्‍वास के बलबूते पर उन्होंने इस ज़िम्मेदारी का स्वीकार किया था। इस मिलावट के बारे में पता लगाने का काम स्वीकार करने के पश्‍चात् आर्किमिडीज निरंतर जो भी कोई कार्य कर रहे थे उस दौरान अथवा वह कार्य करते समय वही विचार उनके मन में चलते रहता था।

एक दिन इसी जोश में आर्किमिडीज सार्वजनिक स्नानगृह में गए, वे वहाँ पर स्नान के लिए पानी भरे हुए टब में बैठ गए। आर्किमिडिज के बैठने पर उस टब का काफी पानी नीचे गिर पड़ा। निरंतर उस मिलावट पर उपाय ढूँढ़ने की धुन में मगन रहने वे उस पानी की ओर बड़ी ही बारीकी से देख रहे थे। देखते ही देखते अचानक वे उठ खड़े हुए और उसी अवस्था में ‘यूरेका, यूरेका’ चीखते हुए दौड़ते हुए बाहर आ गए। पानी के हौद टब में बैठते समय आर्किमिडीज को पता चल गया था कि मैं जैसे-जैसे मेरा शरीर पानी में प्रवेश कर रहा है, उसी प्रमाण में उस टब का पानी बाहर निकल रहा है।

इसके पश्‍चात् बस कुछ ही समय के अन्तर्गत ही प्लावकता (ऊपर तैरने की शक्ती) एवं अपसरण (डिस्प्लेसमेन्ट) इन तत्त्वों के आधार पर मुकुट में मिलावट का प्रमाण ढूँढ़ने में आर्किमिडीज को सफलता प्राप्त हुई। आर्किमिडीज के समान केवल एक संशोधक ने अपनी सूझबूझ के आधार पर एक मालदार सुनार की चोरी को पकड़ लेना यह उस समय के अनुसार एक काफी महत्त्वपूर्ण घटना थी। मूलत: जिस समय के दौरान विज्ञान को इस प्रकार से कोई विशिष्ट स्थान प्राप्त न होते हुए भी आर्किमिडीज ने अपने ही बलबूते पर दूसरी बातों के प्रति होनेवाली गलतियों को ढूँढ़ने में भी सफलता प्राप्त की थी।

आर्किमिडीज के समान संशोधकों के महत्त्व को ध्यान में रखकर सिरॅकस के हिरों राजा ने उन्हें राज्य के सर्वोत्तम श्रेष्ठ व्यक्ति के सम्मान से सम्मानित किया। इतना ही नहीं बल्कि उनके संशोधन द्वारा उन्हें कोई भी विचलित न कर पाये इसलिए उन्हें विशेष सुरक्षा व्यवस्था भी प्रदान की गई थी।

अपने मृत्यु समय के दौरान भी आर्किमिडीज अपने संशोधन कार्य में मग्न होने का वर्णन भी आर्किमिडीज के चरित्रकारों ने किया है। ‘खुद को विचलित नहीं करना’ इस प्रकार से एक सैनिक को की गई विनति उस सैनिक को अपमानदेह लगी थी। गुस्से में आकर उस सैनिक ने अपनी तलवार उठाकर उस श्रेष्ठ संशोधक पर वार कर दिया और पल भर में एक असामान्य संशोधक को अपना प्राण गँवाना पड़ा था।

आर्किमिडीज के काल पर नजर डालें तो इस तरह से उनके अचानक चले जाने से विज्ञान एवं संपूर्ण मानवजाति को कितनी क्षति पहुँची है, इस बात को हम जान सकते हैं। आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व के समय में आर्किमिडीज ने अपने पास होनेवाले ज्ञान को अपनी सूझबूझ का साथ देकर प्रयोगान्वित किया था। जिस समय में विज्ञान, प्रयोग, प्रयोगशाला जैसे शब्दों के बारे में सोचा भी नहीं जाता था ऐसे समय के दौरान ‘जहाज को उठाकर रख देना’ ‘शत्रु-सैनिकों’ को आइने के बल पर भगा देना, सोने के मुकुट में होने वाली मिलावट को ढूँढ़ निकालना इस प्रकार के महत्त्वपूर्ण प्रयोग किए थे। आज इन प्रयोगों को विभिन्न शास्त्रीय सिद्धांतों की नींव के रूप में जाना जाता है।

प्रतिभा एवं अखंड संशोधन के बल पर आर्किमिडीज़ के द्वारा किए गए प्रयोगों से आगामी समय के अन्तर्गत गणित एवं पदार्थ विज्ञान इन जैसे विषयों को एक शास्त्र के रूप में मान्यता प्राप्त करवाने में काफी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। आज के युग में मनुष्य ने विज्ञान के बलबूते पर व्यावहारिक क्षेत्रों में जो कुछ भी प्रगति की है, उसकी नींव आर्किमिडीज ने दो हजार वर्षों पूर्व ही डाल रखी थी, ऐसा कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

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