रशिया, चीन और भारत अफ्रीका में फ्रान्स की कमी दूर करेंगे – तुर्की के विश्लेषकों का दावा

अंकारा/पैरिस – मोरोक्को के भूकंप पीड़ितों के लिए फ्रान्स ने मानवीय सहायता भेजने की तैयारी की थी। मोरोक्को की हुकूमत और सरकार तैयार हैं तो फ्रान्स अपना दल रवाना करेगा, ऐसा ऐलान राष्ट्राध्यक्ष इमैन्युएल मैक्रॉन ने किया था। लेकिन, मोरोक्को ने फ्रान्स की यह सहायता ठुकराई है। पिछले दो महीनों से नाइजर और गॅबॉन के बाद फ्रान्स का विरोध कर रहा मोरोक्को तीसरा अफ्रीकी देश बना है। अफ्रीकी देशों में फ्रान्स के विरोध में बढ़ रही नाराज़गी इससे स्पष्ट हो रही हैं और फ्रान्स इस क्षेत्र में अपना प्रभाव खो रहा है, ऐसा दावा भी किया जा रहा है। ऐसे में रशिया, चीन और भारत अफ्रीका में फ्रान्स की कमी दूर कर सकते हैं, ऐसा दावा तुर्की के विश्लेषकों ने किया है। 

चीन और भारतमोरोक्को के भूकंप में करीबन ४,००० लोग मारे गए हैं और हजारों बेघर हुए हैं। इन भूकंप पीड़ितों के लिए सहायता की आवश्यकता है और मोरोक्को ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहायता पाने के लिए गुहार लगाई है। इस भूकंप का संज्ञान लेकर भारत ने शीघ्रता से मोरोक्को के लिए राहत सहायता रवाना की है और इसके लिए भारत के प्रति आभार व्यक्त किया जा रहा है। पश्चिमी देश भी मोरोक्को के लिए सहायता रवाना कर रहे हैं।

लेकिन, मोरोक्को ने फ्रान्स की सहायता स्वीकारने से इनकार करने का दावा किया जा रहा हैं। फ्रान्स के राष्ट्राध्यक्ष मैक्रॉन ने मोरोक्को के राजा मोहम्मद चौथे के सामने भूकंप पीड़ितों के लिए सहायता रवाना करने के मुद्दे से जुड़ा प्रस्ताव रखा था। राजा मोहम्मद ने अपना प्रस्ताव स्वीकारने पर मोरोक्को के लिए तुरंत ही सहायता रवाना होगी, ऐसा फ्रान्स के राष्ट्राध्यक्ष ने कहा था। लेकिन, चार दिन बाद भी मोरोक्को ने इसपर जवाब नहीं दिया है। इस वजह से नाइजर, गॅबॉन के बाद अब मोरोक्को भी फ्रान्स के विरोध में होने की चर्चा शुरू हुई है। 

चीन और भारतवर्ष १९७६ तक अफ्रीका के अधिकांश देश फ्रान्स की कालनी थे। इन देशों में अल्जेरिया, बुर्किना फासो, माली, सेनेगल, नाइजर, चाड़, टोगो, बेनिन, गॅबॉन, कैमेरून, काँगो, मोरोक्को, ट्युनिशिया, गिनी, मदागास्कर, आइवरी कोस्ट, सेंट्रल अफ्रीकीन रिपब्लिक और जिबौती का समावेश था। आज़ाद होने के बाद भी इन अफ्रीकी देशों पर फ्रान्स की ही पकड़ रही थी। वहां के सियासी नेता फ्रान्स के मर्जी में थे। इन अफ्रीकी देशों में मौजूद खनिज संसाधन फ्रान्स की प्रगति के लिए सहायक बने थे। साथ ही आतंकवाद विरोधी कार्रवाई के लिए फ्रान्स ने इन देशों में अपने सैन्य अड्डे स्थापीत करके सैन्य तैनाती भी की थी।

लेकिन, पिछले कुछ सालों से इन अफ्रीकी देशों में सत्तापरिवर्तन और विद्रोह हो रहा हैं और फ्रान्स के मर्जी में रहने वाले नेताओं की हुकूमत का तख्तापलट किया जा रहा है। बुर्किना फासो, माली जैसे देशों की सैन्य हुकूमतों ने स्पष्ट तौर पर फ्रान्स के सैनिकों को देश छोड़ने की चेतावनी दी थी। वहीं, पिछले दो महीनों में नाइजर और गॅबॉन इन अन्य दो देशों में भी सेना ने विद्रोह करके राष्ट्राध्यक्ष मोहम्मद बझूम और राष्ट्राध्यक्ष अली बोंगो को सत्ता से हटाया है।

नाइजर की सैन्य हुकूमत ने फ्रान्स के राजदूत को देश छोड़ने की चेतावनी दी है और फ्रेंच सेना को वापस लौटने की सूचना की है। गॅबॉन में भी फ्रान्स या अन्य पश्चिमी देशों के प्रभाव में न होने वाले नेता का जनतंत्र के अनुसार चयन किया जाएघा, यह घोषित किया गया है। वहीं, पिछले हफ्ते भूकंप के झटके का सामना कर रहे मोरोक्को ने फ्रान्स की सहायता स्वीकारने से इनकार किया है। इस वजह से अफ्रीका में फ्रान्स का खत्म हुआ है, ऐसा दावा अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक कर रहे हैं।

रशिया, चीन, भारत एवं तुर्की अफ्रीका में फ्रान्स की कमी दूर कर सकते हैं, ऐसा दावा ‘अंकारा सोशल साइंसेज युनिवर्सिटी’ में स्थित अफ्रीका विभाग के प्राध्यापक एवं विश्लेषक एलेम इरिस तेपचिक्लीओग्लू ने किया। फ्रेंच सेना के लौटने के बाद बुक्रिना फासो, माली ने आतंकवाद विरोधी कार्रवाई के लिए रशिया के ‘वैग्नर मर्सिनरीज्‌’ की तैनाती की है, इसपर इन विश्लेषकों ने ध्यान आकर्षित किया है। शीत युद्ध के दौर में भी उस समय के सोवियत रशिया ने अफ्रीकी देशों में काफी निवेश किया था, इसकी याद एलेम ने ताज़ा की।

इस बीच पिछले कुछ महीनों से भारत ग्लोबल साउथ के तहत अफ्रीकी देशों की आवाज़ बनने की कोशिश कर रहा हैं। ‘जी २०’ की बैठक में भारत ने अफ्रीकी महासंघ को सदस्यता बहाल करने में सबसे अहम भूमिका निभाई हैं, इसे भूला नहीं जा सकता, ऐसा कुछ अन्य अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक कह रहे हैं। अफ्रीकी महासंघ के साथ अन्य अफ्रीकी देशों ने भी भारत की इस भूमिका के प्रति आभार व्यक्त किया था।

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