डॉ. राम ताकवले

बीसवीं शताब्दी के अंतिम चरण में भारत में ज्ञान का रूपांतरण संपत्ति में करने की क्षमता रखनेवाले विभिन्न क्षेत्र विकसित होने लगे थे। इस ज्ञानयुग में भारत प्राचीन काल से ही महत्त्वपूर्ण देश माना जाता है। विविध प्रकार की क्रांति के पीछे शैक्षणिक प्रगति का काफी बड़ा योगदान रहा है। अनेक वैज्ञानिकों ने अपने-अपने कार्यकाल में स्वयं के संशोधन को उत्तम प्रकार से सिद्ध तो किया ही परन्तु साथ ही साथ इस परंपरा का आगे बढ़ानेवाले युवा संशोधक भी तैयार किए। डॉ. राम ताकवले भी इसी प्रकार के शास्त्रज्ञ हैं।

ताकवलेजी पुणे के आसपास होनेवाले ओतूर नामक गाँव के रहनेवाले हैं। इस गाँव में साक्षरता का प्रमाण अधिक होने के साथ-साथ अधिकतर लोक शिक्षक वर्ग के हैं। डॉ. राम ताकवले के छोटे भाई भी रसायनशास्त्र शाखा के विद्यार्थी एवं शिवाजी महाविद्यालय के भूतपूर्व कुलगुरु थे। एक ही परिवार में दो कुलगुरु पैदा होना शायद उस मिट्टी का, वहाँ की संस्कृति का, शैक्षणिक वातावरण का एवं संस्कार का असर होगा।

डॉ. राम ताकवले का जन्म ११ अप्रैल, १९३३ में हुआ। उन्होंने एम.एस.सी., पी.एच.डी. की पढ़ाई पूरी की तथा वे रसायनशास्त्र के प्रसिद्ध प्राध्यापक हैं। महाविद्यालय में उनका अच्छा-खासा प्रभाव है। अंतरराष्ट्रीय कीर्ति व्याप्त संशोधक होने के साथ-साथ उच्च शिक्षा के विविध अंगों का अध्ययन कर अपना विचार विभिन्न स्तरों पर दृढ़ विश्वास के साथ प्रस्तुत करनेवाले एक शिक्षा शास्त्री के रूप में भी उनकी ख्याति है।

उत्तम वक्ता, उत्कृष्ट प्राध्यापक एवं संशोधक के रूप में भी राम ताकवले की अपनी पहचान है। १९५६ से रसायनशास्त्र का अध्ययन करते हुए आज भी वे कुछ महत्त्वपूर्ण विषयों पर व्याख्यान देते हुए दिखाई देते हैं। कुछ समय तक पुणे के फर्ग्युसन महाविद्यालय में भी उन्होंने अध्यापन का कार्य किया है। राज्य साथ ही केन्द्र सरकार के अनेक प्रकार की शि़क्षा संबंधित समितियों में काम करके उन समितयों के मूल्यवान मार्गदर्शक के रूप में भी उनकी अपनी पहचान है।

न्यूयॉर्क के यॉर्क महाविद्यालय में ‘अभ्यागत व्याख्याता’ के रूप में उनके व्याख्यान हुए हैं। हंगेरी के कुछ महाविद्यालयों में संशोधन करनेवाली संस्थाओं को भी उनका मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है। अनगिनत संशोधनात्मक निबंध, प्रबंध के साथ साथ कुछ ग्रंथों का संपादन भी उन्होंने किया है। वे स्वयं एक उत्तम लेखक हैं। तकरीबन संपूर्ण दुनिया की सैर करनेवाले इस शास्त्रज्ञ ने, शिक्षाशास्त्री ने इग्लंड, हंगेरी, जर्मनी, द.कोरिया आदि देशों का उन देशों के विशेष निमंत्रण पर दौरा किया है।

महाराष्ट्र में मुक्त महाविद्यालय की स्थापना करने की योजना जब सामने आई, तब उस योजना की पूर्णत: रूपरेखा बनाने की जिम्मेदारी डॉ. राम ताकवले ने सफलतापूर्वक निभायी। कै. यशवंतराव चव्हाण इस लोकनेता के नाम पर शुरु होनेवाले इस मुक्त महाविद्यालय का कारोबार बरगद के पेड़ की तरह फैला हुआ है। इससे उच्च शिक्षा से किसी कारणवश वंचित रह जानवालों को अपनी शिक्षा पूर्ण करने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के लिए डॉ. ताकवले ने और भी एक महत्त्वपूर्ण कार्य पूरा किया है। वह है राज्य की वैज्ञानिक क्रांति में सहयोग प्रदान कर उन्हें प्रोत्साहित भी किया कि सभी संशोधकों को एक साथ मिलकर कुछ ठोस ऐसे वैज्ञानिक कार्य करने चाहिए, इस हेतु उन्होंने आगे बढ़कर ‘महाराष्ट्र अ‍ॅकॅडमी ऑफ सायन्सेस’ नामक संस्था की स्थापना करने की जिम्मेदारी उठायी।

‘इंडियन सायन्स काँग्रेस’ नामक इस राष्ट्रीय स्तर पर होनेवाली संस्था के वे सदस्य हैं। बंगलुरु की ‘नॅक’ संस्था की कार्यकारी समिति के वे प्रमुख थे (२००३-२००४)। १९९४ में वे असोसिएशन ऑफ इंडियन युनिवर्सिटी (AIU) तथा १९९५-९८ के दौरान ‘एशियन असोसिएशन ऑफ ओपन युनिवर्सिटी’ (AAOU) के अध्यक्ष थे। २००१ में स्थापित होने वाले ‘महानॉलेज कॉर्पोरेशन’ MKCL के डॉ. राम ताकवले संचालनकर्ता थे।

विविध पुरस्कार, मान सम्मानों सहित अनेक शैक्षणिक संस्थाओं की ओर से उन्हें सम्मानार्थ डॉक्टरेट की उपाधि एवं डि. लिट उपाधियाँ प्राप्त हुई हैं।

‘ऑक्सफर्ड ऑफ द ईस्ट’ यह पहचान रखनेवाले पुणे विश्वविद्यालय के (१९७२-८४), यशवंतराव चव्हाण महाराष्ट्र ओपन यूनिवर्सिटी नासिक (१९८९-९५) तथा इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (दिल्ली) (१९९५-९८) ऐसे तीन शहरों के तीन विश्वविद्यालयों के कुलगुरु पद से विभूषित शास्त्रज्ञ डॉ. राम ताकवले ये एक अनोखे प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी हैं।

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