जोसेफ स्वान (१८२८-१९१४)

सार्वजनिक तौर पर सर्वप्रथम बिजली के दीप जगमगा उठे, वह केवल जोसेफ स्वान नामक एक असामान्य संशोधनकर्ता के ही कारण। स्कूली शिक्षा कुछ अधिक न होने के बावजूद भी स्वान अकसर आनंदित रहा करते थे। विशेष शिक्षित न होनेवाले स्वान के पास अनेक प्रकार की व्यावसायिक शिक्षा एवं कार्यों का तजुर्बा था। डोरियों में बल देना, कोयले का वायुनिर्मिति के लिए होनेवाला उपयोग, इलेक्ट्रिक काम, लुहार का काम इस प्रकार के अनेक काम उन्होंने सीखे थें।

स्वान की शिक्षा स्वशिक्षा पद्धति की थी। जो कला सीखनी हो उस स्थान पर जाकर, बैठकर निरीक्षण करना, कारीगरों के साथ बैठकर स्वयं की आशंका का निराकारण करना और अपनी जिज्ञासा की पूर्ति करना। एक औषधि के कंपनी में स्वान अपनी उम्र के १३ वें वर्ष में एक प्रशिक्षणार्थी के रूप में दाखिल हो गए। रसायनशास्त्र के पाठ के साथ विद्युत् घट, इलेक्ट्रोप्लेटिंग, अवकाश (स्पेस) निर्माण, फोटोग्राफी इस प्रकार के कार्यों को उन्होंने सीख लिया। १८४५ से स्वान के दिमाग में विद्युत् दीपों के प्रति अनेक विचार उठ रहे थे। १८६० में ऑक्सिजन विरहित वातावरण में कागज़ को उच्च तापमान में तपाकर जैसे उन्हें चाहिए थी, बिलकुल उसी प्रकार की कार्बन की पट्टियाँ उन्होंने तैयार कीं। परन्तु ये पट्टियाँ एवं बाहर से विद्युत् प्रवाह ले आनेवाले प्लॅटिनम के तारों को एक दूसरे के साथ जोड़ना यह देखा जाए तो एक सिरदर्द ही था। इन पट्टियों से तैयार किए गए दीप अधिक देर तक नहीं रह पाते थे। दीप के प्रकाशित हो जाते ही काँच के गोलक के भीतरी स्तर से उस पर कार्बन के जमा होनेवाले स्तरों के कारण वह अपारदर्शक हो जाता था और इसकी वजह उसके भीतर रहने वाला अवकाश यह हो सकता है। निर्वातीकरण के अंतिम पड़ाव में काफी अधिक दबाव का विद्युत प्रवाह कार्बन के साथ छोड़ा गया और यही यंत्र आज तक अकार्यक्षम साबित नहीं हुआ है।

१८७८ में जैसा वे चाहते थे वैसा ही दीप (लैंप) बनाने में उन्हें सफलता प्राप्त हुई। परन्तु स्वान के इस क्षेत्र में थॉमस एडिसन नामक प्रतिस्पर्धी आ खड़ा हुआ। स्वान ने दीपों की अवकाश निर्माण पद्धति का पेटंट लिया था। न्युकॅसल नामक स्थान पर स्वान ने अपनी कंपनी शुरू करके इंग्लैंड के सभी धनवानों के मकान, ब्रिटन में होनेवाली सार्वजनिक इमारतों, नौदल की इमारतों को विद्युत् दीपों से प्रकाशित कर दिया था।

बिजली के दीप लगाने के लिए उस समय विद्युत् जनित्र (जनरेटर) की आवश्यकता पड़ती थी। उस दौरान पैसे देकर भी बहुत बड़े पैमाने पर बिजली नहीं मिलती थी और सार्वजनिक विद्युत् निर्मिति होती नहीं थी। पर फिर भी दीपों की माँग बढ़ती ही रही थी। और यह विद्युत् जनित्र निर्मित बिजली अड़चनों में घिर गई। १८८२ में लंडन के एक उपनगर में एडिसन ने सर्वप्रथम बिजली निर्मिति गृह शुरू किया।

स्वान एवं एडिसन के बीच छिड़ा विवाद शांत होकर उनमें सुलह हो गई। इसके पश्‍चात् एडिस्वान कंपनी की स्थापना हुई।

१८८३ तक कपास के धागे सेल्युलोज फायबर के रूप में पहचाना जाता था। इसी दरमियान स्वान ने एक और भी बड़ी खोज की। स्वान ने सेल्युलोज प्लास्टिक का धागा तैयार किया। यह धागा पूरी तरह मजबूत होने के कारण टूटता नहीं था। इसी लिए काफी बड़े पैमाने पर विद्युत् दीपों का उत्पादन शुरु हो गया। १९०५ में टंगस्टन धातु की फिलॅमेंट अस्तित्व में आ गयी।

स्वान द्वारा बनायी गयी बाती में होनेवाले सेल्युलोज अ‍ॅसिटेट धागों का उपयोग स्वान की पत्नी कढ़ाई-बुनाई के काम में करती थी। यह खोज टेक्सटाईल क्षेत्र के लिए भी उपयोगी साबित हुई।

विद्युत् दीप के अलावा स्वान ने अन्य क्षेत्रों में भी नये-नये अनुसन्धान किए। १८५६ में कोलॉडियन का शोध १८६४ में कार्बन प्रोसेसिंग पेटंट प्राप्त कर लेने पर कॉपर प्लेट एचिंग पद्धति स्वान ने शुरु की। छायाचित्र के क्षेत्र में सुलभता लाने का काम भी उन्होंने किया। आज उपयोग में लाये जानेवाले ब्रोमाईड प्रिंटिंग पेपर की खोज १८७९ में स्वान ने ही की थी।

१८९४ में उम्र के ६६वें वर्ष उन्हें रॉयल सोसायटी की फेलोशिप प्राप्त हुई। अंतिम समय में भी उन्होंने अपने प्रयोग की क्रिया निरंतर बनाये रखी थी। उनकी खोजों को शतक से अधिक समय हो गया है, मगर फिर भी उनका महत्त्व आज भी कायम है। इससे ही जोसेफ स्वान की महानता साबित होती है।

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