डॉ.हेलन टॉसिग (१८९८-१९८६)

Helen Brooke Taussig- हेलन टॉसिग‘डायस्लेक्सिआ’ (लिखे हुए शब्दों को समझने में, पढ़ने में आनेवाली अड़चनें) और खाँसी के कारण आनेवाला बहरापन। छोटी सी हेलन टॉसिग को आगे चलकर क्या करना है यह एक बड़ा प्रश्‍न उसके सामने खड़ा था। परन्तु हेलन के माता-पिता ने एवं स्वयं हेलन ने भी ज़िद नहीं छोड़ी। और केवल जिद के जोर पर ही डॉक्टर बनने का स्वप्न देखकर, उसे हेलन टॉसिग ने पूरा कर दिखाया। केवल डॉक्टर बनकर ही हेलन का ध्येय पूरा नहीं हुआ, बल्कि अपने संशोधन से लाखों लोगों को संजीवनी देकर उनकी जीवनदात्री बनने का सम्मान भी प्राप्त हुआ।

अमेरिका के केंब्रिज शहर में रहनेवाले टॉसिग परिवार में २८ मई १८९८ के दिन हेलन का जन्म हुआ। टॉसिग परिवार का चौथा अपत्य रनेवाली हेलन का स्वास्थ्य बचपन से यथातथा ही था। हेलन के पिता एवं प्रसिद्ध अर्थतज्ञ होनेवाले ब्रुक टॉसिग ने उस घर पर ही पढ़ाना आरंभ कर दिया। इस दौरान हेलन की माँ का देहान्त हो जाने की वजह से केवल ग्यारह वर्षीय हेलन को काफी बड़ा सदमा पहुँचा। माँ की बीमारी के दौरान उसकी सेवा शुश्रुषा करनेवाली हेलन ने उसी समय डॉक्टर बनने का निश्‍चय कर लिया था।

घर पर पिता के मार्गदर्शन में शिक्षित हेलन ने स्कूल में प्रवेश प्राप्त कर लिया। ‘डायस्लेक्सिआ’ की अड़चन होते हुए भी दिन में अधिकतर समय अध्ययन हेतु देते हुए हेलन ने क़ठोर परिश्रम करते हुए अपनी स्कूली शिक्षा पूरी कर ली। इसके पश्‍चात् रॅडक्लिफ  महाविद्यालय में दो वर्षों तक पढ़ाई करने के पश्‍चात् हेलन ने वैद्यकीय शिक्षा प्राप्त करने हेतु हार्वर्ड विश्‍वविद्यालय में प्रवेश लेने का निश्‍चय किया। लेकिन हार्वर्ड विश्‍वविद्यालय के प्रमुख ने यह कहा कि वह केवल सार्वजनिक आरोग्य विषय का ही अध्ययन कर सकती है, वह पदवी प्राप्त नहीं कर पायेगी। मगर हेलन ने इस बात से इंकार कर दिया।

हार्वर्ड में आये हुए अनुभव से निराश न होकर हेलन ने बोस्टन विश्‍वविद्यालय में शरीरशास्त्र के अध्ययन हेतु प्रवेश ले लिया। हेलन की डॉक्टर बनने की तड़प एवं ज़िद को देखते हुए बोस्टन विश्‍वविद्याल्य के डॉ. अलेक्झांडर बेग ने उन्हें बाल्टिमोर के हॉपकिन्स मेडिकल स्कूल में प्रवेश लेने की सलाह दी। नये सिरे से एवं कठोर नियम का पालन करने वाले हॉपकिन्स में प्रवेश मिलेगा, इस बारे में हेलन को कोई विशेष आशा नहीं थी। परन्तु डॉ. बेग की सिफारिश एवं हेलन कि कोशिशों को आखिरकार सफलता  मिल ही गयी और हेलन को हॉपकिन्स विश्‍वविद्यालय में प्रवेश मिल गया।

हॉपकिन्स में प्राप्त प्रवेश यह हेलन के लिए एक नये संघर्ष की सूचना थी। वैद्यकीय अध्ययन हेतु प्रवेश लेने वाली वही एकमात्र लड़की थी। साथ ही हेलन को बचपन से ही होनेवाले बहरेपन के कारण अकसर कक्षा के सभी बच्चों की नज़रें मानों उसे घूरती रहती थीं। लेकिन इन्हीं सभी बातों से हेलन को नई स्फूर्ति मिली और वह नई उम्मीदों के साथ संघर्ष करने लगी। रातदिन एक करके, साथ ही स्वयं ही अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखकर और कई मुसीबतों का सामना करते हुए हेलन ने आखिरकार ‘डॉक्टर’ बनने में सफलता  प्राप्त कर ही ली। हॉपकिन्स संस्था के प्रमुख के मुख से ‘हेलन बी. टॉसिग….डॉक्टर ऑफ़ मेडिसीन’ इन शब्दों सहित पदवी का स्वीकार करना, यह अपने जीवन के सर्वोच्च क्षणों में से एक होने का उल्लेख हेलन ने किया है।

Helen Brooke Taussig- हेलन टॉसिग

बोस्टन में अध्ययन करते समय डॉ. बेग ने हेलन को हृदय का अध्ययन करने की सलाह दी थी हॉपकिन्स के डॉक्टर की पदवी प्राप्त हेलन को प्रथम ज़िम्मेदारी सौंपी गई, वह थी ‘पेडिअ‍ॅट्रिक कार्डिऑलॉजी’ विभाग की। दूसरों के लिए तकलीफदेह रहनेवाले एवं पूर्णत: नया क्षेत्र होने के कारण इस विभाग की ज़िम्मेदारी हेलन ने बड़े ही आनंद के साथ स्वीकार  कर ली। उस समय हृदयरोगपीडित छोटे बच्चों को इससे बचाने वाला अन्य कोई भी उपाय उपलब्ध नहीं था। इसी कारण इस विभाग में दाखिल होनेवाले अधिकतर बच्चे मृत्यु की ही छाया में रहते थे।

कुछ नया करने की जिद से वैद्यकीय व्यवसाय का स्वीकार करने वाली डॉक्टर हेलन ने इस चुनौती का स्वीकार करने का निश्‍चय कर लिया। ‘ब्ल्यू बेबी सिंड्रोम’! हृदय रोग रहनेवाले बच्चों का रंग नीला पड़ जाने के कारण इस बीमारी को ‘ब्ल्यू बेबी सिंड्रोम’ इस नाम से जाना जाता था। डॉक्टर हेलन ने अविश्रांत परिश्रम करके ‘ब्ल्यू बेबी सिंड्रोम’ के पिछे होनेवाले कारणों का पता लगाने की कोशिश की और इस पर उपाय ढूँढ़ने की दृष्टि से प्रयत्न आरंभ कर दिया।

‘ब्ल्यू बेबी सिंड्रोम’ पर कुछ उपाय ढूँढ़ा जाय इससे संबंधित हॉपकिन्स के अनेक डॉक्टरों को आशंका ही थी। मात्र हृदयरोग पर शस्त्रक्रिया करनेवाले डॉ. ब्लॅलॉक ने डॉ. हेलन की मदद करने का निश्‍चय किया। लगातार दो वर्षों के संशोधन के पश्‍चात् २९ नवम्बर १९४४  के दिन डॉक्टर हेलन टॉसिग एवं डॉ. ब्लॅलॉक ने विवियन थॉमस इस तकनिकी विशेषज्ञ की सहायता से ‘ब्ल्यू बेबी सिंड्रोम’ के शिकार हुए एक बच्चे पर नयी पद्धति से शस्त्रक्रिया की।

बर्हीत घंटों तक चली इस शस्त्रक्रिया के पश्‍चात् उस बालक को मृत्यु के मुख से निकालने में डॉक्टर हेलन टॉसिग एवं डॉक्टर ब्लॅलॉक इन दोनों को सफलता  प्राप्त हुई। देखते ही देखते इस यशस्वी शस्त्रक्रिया का वृत्तांत तेज़ी से वैद्यकीय क्षेत्र में  फ़ैल  गया। कानों में स्टेथोस्कोप न लगाकर हृदय की जाँच करने वाली डॉक्टर हेलन टॉसिग द्वारा की गयी यशस्वी शस्त्रक्रिया ने वैद्यकीय क्षेत्र में कुछ खलबली मचा दी। कुछ समय के पश्‍चात् डॉक्टर हेलन टॉसिग द्वारा किए गए कार्य पर ध्यान दिया गया।

छोटे बच्चों के हृदय पर डॉक्टर हेलन टॉसिग एवं डॉक्टर ब्लॅलॉक द्वारा विकसित की गई पद्धति ‘ब्लॅलॉक-टॉसिग शन्ट’ इस नाम से प्रसिद्ध हुई। अपनी कमज़ोरियों एवं व्याधियों पर मात करके दूसरों को नवजीवन देनेवाली डॉक्टर टॉसिग को सचमुच ‘संजीवनी’ के रूप में गौरवान्वित करना चाहिए।

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