प्रधानमंत्री मोदी युरोपीय देशों के दौरे पर

नई दिल्ली – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जर्मनी, डेन्मार्क और फ्रान्स जैसें युरोपीय देशों के दौरे पर जा रहे हैं| यूक्रैन युद्ध के कारण युरोप में उभरी स्थिति की पृष्ठभूमि पर प्रधानमंत्री का यह युरोप दौरा ध्यान आकर्षित कर रहा है| चुनौतियॉं और कई विकल्प युरोप के सामने खड़े हुए हैं और इसी संदर्भ में वे युरोप दौरे पर जा रहे हैं, ऐसा प्रधानमंत्री ने कहा|

pm-modi-europeप्रधानमंत्री मोदी अपने इस युरोप दौरे की शुरूआत जर्मनी से करेंगे| जर्मनी के चान्सलर शोल्झ के साथ प्रधानमंत्री मोदी की द्विपक्षीय चर्चा होगी| इसके बाद प्रधानमंत्री डेन्मार्क और फ्रान्स की यात्रा करेंगे| यूक्रैन युद्ध में भारत रशिया विरोधी भूमिका अपनाएँ, यह मॉंग अमरीका और कुछ युरोपीय देश कर रहे हैं| लेकिन, किसी भी स्थिति में भारत अपनी तटस्थता छोड़कर किसी एक देश का पक्ष नहीं लेगा, ऐसा विदेशमंत्री एस.जयशंकर बार बार जता रहे हैं| प्रधानमंत्री मोदी ने भी देश की यही भूमिका स्पष्ट शब्दों में बयान की थी|

यूक्रैन की समस्या का हल निकालने के लिए युद्ध को तुरंत रोककर बातचीत शुरू करना ही एकमात्र विकल्प है, ऐसा भारत का कहना है| इसके लिए भारत ने अपनाई तटस्थता ही बेहतर नीति है, इसका अहसास भी भारत ने कराया था| युरोपीय देशों के दौरे से पहले भी प्रधानमंत्री मोदी ने अपना पक्ष रखा| शांति और स्थिरता के मोर्चे पर भारत अपने साझेदार युरोपीय देशों से सहयोग प्राप्त करेगा, ऐसा बयान प्रधानमंत्री ने किया|

इसी बीच, रशिया और भारत के सहयोग पर आपत्ति जताकर अमरीका ने भारत पर दबाव बनाने की कोशिश शुरू की है| भारत ने अपनी भूमिका बार बार स्पष्ट करने के बावजूद अमरीका दबाव कम करने के लिए तैयार नहीं है| रशिया से भारत ने ईंधन खरीदने का मुद्दा अमरीका उठा रही है| इसी बीच रशिया से भारत की हथियार-खरीद का मुद्दा भी अमरीका के बायडेन प्रशासन ने उठाया है| साझेदार के तौर पर अमरीका भारत के लिए उपलब्ध नहीं थी, तब भारत की रशिया के साथ भागीदारी विकसित हुई, ऐसा दावा अमरिकी विदेशमंत्री एंथनी ब्लिंकन ने किया था| लेकिन, अब अमरीका सहयोग करने के लिए तैयार है, तो रशिया के साथ जारी सहयोग भारत तोड़ दें, ऐसा सुझाव अमरिकी विदेशमंत्री दे रहे हैं|

अमरीका भारत पर दबाव बना रही है और दूसरी ओर युरोपीय देश भी, रशिया के साथ जारी ईंधन सहयोग तोड़ने की मॉंग उठाई है| लेकिन, रशिया से प्राप्त हो रहें ईंधन के अलावा हमारें हाथों में अन्य विकल्प ना होने का बयान करके युरोपीय देशों ने अमरीका की मॉंग मानने से इन्कार किया हैं| इस वजह से भारत और युरोपीय देश एक ही समय पर अमरीका की अड़ियल नीति का सामना करते दिख रहे हैं| इसी कारण भारत और युरोपीय देशों का सहयोग रणनीतिक नज़रिये से अधिक अहम बन रहा है| खास तौर पर जर्मनी और फ्रान्स इन युरोप के प्रमुख देशों का भारत के साथ होनेवाला सहयोग अमरीका के दबाव को प्रभावी प्रत्युत्तर देनेवाला साबित होगा| इसी कारण प्रधानमंत्री मोदी का यह युरोपीय देशों का दौरा राजनीतिक एवं रणनीतिक नज़रिये से काफी अहमियत रखता है|

Leave a Reply

Your email address will not be published.