क्रान्तिगाथा-८९

अल्लुरि सीताराम राजु का जन्म इस आदिम जनजाति में नहीं हुआ था, लेकिन इन लोगों की तकलीफें, दुख और अँग्रेज़ों द्वारा उनका किया जानेवाला शोषण इन सभी बातों को उन्होंने करीब से देखा और उन्होंने राम्पा लोगों मे चेतना जगायी। एक अभूतपूर्व ब्रिटिश विरोधी संषर्घ की शुरुआत हुई।

दर असल इन पहाड़ों और जंगलों से अँग्रेज़ परिचित नहीं थे, जिससे की उन्हें तकलीफ में लाना राम्पा लोगों के लिए आसान हुआ।

अल्लुरि सीताराम राजु का जन्म ४ जुलाई १८९७ में आंध्रप्रदेश में हुआ। उनके पिताजी ने उनमें क्रांतीकार्य का बीज बोया, लेकिन दुर्भाग्यवश उन्हें उनके पिता का सहवास बहुत ही अल्प समय के लिए प्राप्त हुआ। उनके पिता की मृत्यु के पश्‍चात् उनका पालन उनके चाचाजी के घर हुआ।

बताया जाता है कि अल्लुरि सीतारामजीने शालेय और महाविद्यालयीन शिक्षा के साथ वैद्यकशास्त्र और ज्योतिष विषय का परंपरागत रूप में उपलब्ध ज्ञान भी प्राप्त किया था। एक पहाड़ी इलाके में उन्होंने २ सालों तक अध्यात्म और योग पर चिंतन किया। इसी दौरान राम्पा जनजाति की जीवनशैली का उन्हें करीब से दर्शन हुआ और उनकी पीडाओं, तकलीफों और अँग्रेज़ों द्वारा उनके हो रहे शोषण से अल्लुरि सीतारामजी परिचित हो गये।

बंगाल के क्रान्तिवीरों की क्रान्तिकारी गतिविधियों से प्रभावित होकर अल्लुरि सीतारामजी ने राम्पा जनजाति के लोगों को प्रशिक्षित करना शुरू किया। उन लोगों के पास रहनेवाले तीरकमान का इस्तेमाल करके ही उन्हें प्रशिक्षित किया गया।

बीरैय्या दोरा, गाम मल्लु दोरा और गन्तम दोरा नामक तीन क्रान्तिकारी, जो राम्पा जनजाति में ही जन्मे थे, वे उनकी जनजाति के साथ अँग्रेज़ों के खिलाफ़ लड़ रहे ही थे। अल्लुरि सीतारामजी से इन तीनों का संपर्क स्थापित हुआ और वे सब एक साथ मिलकर अँग्रेज़ों के खिलाफ़ लड़ने लगे।

अब अँग्रेज़ों के खिलाफ राम्पा जनजाति के संघर्ष ने अधिक तीव्र रूप धारण कर लिया।

बीरैय्या दोरा राम्पा जनजाति का सदस्य था। अँग्रेज़ों के खिलाफ़ उसके द्वारा छेडे गये संघर्ष में अँग्रेज़ों ने उसे एक बार गिरफ़्तार किया और उसे कैद में रखा; लेकिन अँग्रेज़ों की कैद से भाग निकलने में वह सफ़ल हो गया। दूसरी बार जब बीरैय्या दौरा को अँग्रेज़ों द्वारा पकडा गया, तब उसे फाँसी पर चढाने का निर्णय अँग्रेज़ों द्वारा लिया गया।

लेकिन इस समय अल्लुरि सीतारामजीने अँग्रेज़ों को खुली चुनौती दी कि वे अँग्रेज़ों की कैद से बीरैय्या दोरा को छुडायेंगेही। अब तक अँग्रेज़ अल्लुरि सीतारामजी के पराक्रम को देख चुके थे और उनके साथ लडने का डर भी उनके मन में बस गया था।

पुलिस जब बीरैय्या दोरा को न्यायालय में ले जा रही थी, तब अल्लुरि सीतारामजी की अगुवाई में राम्पा जनजाति के लोगों ने पुलिस पर धावा बोला और उसमें दिन दहाडे पुलिस के हाथों से बीरैय्या दोरा को छुडाकर ले जाने में राम्पा लोग सफ़ल हुए।

अब अँग्रेज़ काफ़ी बिगड गये और अल्लुरि सीतारामजी को खोजना उन्होंने तेज़ी से शुरू किया। सन १९२२२४ के दौरान अल्लुरि सीतारामजी को पकड़ने के लिए अँग्रेज़ों द्वारा १०,००० रुपयों का इनाम रखा गया था।

राम्पा जनजाति जिन पहा़ड़ों और जंगलों में बसती थी, उस क्षेत्र से अँग्रेज़ और उनकी सेना परिचित नहीं थी। अल्लुरि सीतारामजी ने अपने सहकर्मियों के साथ अँग्रेज़ों के खिलाफ़ गुरिला पद्धति से युद्ध प्रारंभ किया था। अल्लुरि सीतारामजी को पकडना यह अँग्रेज़ों के लिए अब महत्त्वपूर्ण बन गया था, साथ ही यह आसान काम नहीं था। कई अँग्रेज़ अफ़सरों की और अँग्रेज़ों की सेना की उनके हाथों पीटाई हो चुकी थी।

आखिरकार अँग्रेज़ों ने केरल स्थित मलबार प्रांत के पुलिसों को अल्लुरि सीतारामजी को पकडने की जिम्मेदारी सौपी। क्योंकि मलबार प्रांत की पुलिस को जंगल और पहाड़ी इलाके में खोज करने का तथा काम करने का अनुभव प्राप्त था। लेकिन यह पुलिस दल भी इस कार्य में नाकाम हुआ।

अल्लुरि सीतारामजी के नेतृत्व में राम्पा जनजाति के लोगों ने अँग्रेज़ों की सेना पर हमले किये और इन हमलों में कई अँग्रेज़ अफ़सरों को मौत के घाट उतारने में ये लोग कामयाब हुए।

अंततः अँग्रेज़ोंद्वारा उनकी सुसज्जित आसाम रायफ़ल्स की सेना को बुलाया गया। इस आसाम रायफ़ल्स की सेना को अल्लुरि सीतारामजी और उनके सहकर्मियों को लगभग एक साल तक कई जंगलों में खोजना पडा। इस दौरान अल्लुरि सीतारामजी को तो वे खोज नहीं पाये, लेकिन उनके कुछ सहकर्मियों को खोजने में सफल हुए और अल्लुरि सीतारामजी के वे सहकर्मि शहीद हो गये।

एक दिन अल्लुरि सीताराम राजु चिंतापल्लि के जंगल में अकेले ही थे। अब उन्हें पकडने के लिए अँग्रेज़ों द्वारा व्यूह रचा गया। आसाम रायफ़ल्स के अफ़सर उनका पीछा करने लगे। अल्लुरि सीतारामजी को देखने के बाद एक अफ़सर ने उनका पीछा करना शुरू किया और आखिरकार उन्हें पकड़ने में अँग्रेज़ कामयाब हुए।

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