क्रान्तिगाथा- ४१

बंगाल के विभाजन के बाद ‘अनुशीलन’ और ‘युगान्तर’ बहुत बड़े पैमाने पर सक्रिय हो चुके थे। सशस्त्र संघर्ष के अन्तर्गत ही किंग्सफोर्ड के वध की योजना बनायी गयी। इसमें खुदीराम बोस के पकड़े जाने के बाद अँग्रेज़ तेज़ी से सक्रिय हो गये। गुप्त क्रान्तिकारी संगठनों का अतापता खोजना अँग्रेज़ों ने शुरू कर दिया। ‘माणिकतला’ में चल रहे शस्त्र-अस्त्रों के कारखाने की जानकारी अँग्रेज़ों को मिल गयी और फिर इस कार्य से संबंधित प्रत्येक को गिरफ्तार करने का सिलसिला शुरू हो गया।

अरविन्द घोष, बारीन्द्र घोष और उनके अनेक साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया। ‘अँग्रेज़ी हु़कूमत के खिलाफ षड्यन्त्र रचने की साज़िश करने का’ इलज़ाम उनपर रखकर मुकदमा दायर किया गया।

‘अपनी कलम और वाणी से सशस्त्र क्रान्ति को बढ़ावा देने का’ इलज़ाम अँग्रेज़ों ने अरविन्द घोष पर रखा था। अरविन्द घोष बंगाल के क्रान्तिकारियों का प्रेरणास्थान थे।

‘अनुशीलन’ और ‘युगान्तर’

२० वीं सदी के पहले दशक के अन्त में अरविन्द घोष का जीवन अध्यात्म की तरफ झुक गया। योग, दर्शनशास्त्र के मार्ग पर से उनके जीवन का सफर शुरू हो गया। अब वे दक्षिणी भारत में पाँडेचरी में रहते थे और यहीं पर से वे श्रीअरविन्द के रूप में जाने जाने लगे। ५ दिसंबर १९५० के दिन उन्होंने इस दुनिया से विदा ले ली।

अरविन्द घोष के भाई बारीन्द्र घोष पर अरविन्दजी के विचारों एवं कार्य का बहुत गहरा प्रभाव था। उनकी पढ़ाई भारत में ही हुई और वे कोलकाता आ गये। यहाँ पर युगान्तर के माध्यम से उनका कार्य शुरू हो गया। गुप्त रूप से कार्य करनेवाले क्रान्तिकारी संगठनों में से एक रहनेवाले युगान्तर से अनेक युवाओं को जोड़ने में बारीन्द्र घोष का अहम योगदान था। किंग्सफोर्ड के वध की कोशिश के बाद, माणिकतला के शस्त्र-अस्त्र के कारखाने के बारे में पता चलते ही अँग्रेज़ों ने बारीन्द्र घोष को ग़िरफ्तार कर लिया। उन्हें उमरकैद की सज़ा सुनायी गयी। १९०९ में अँग्रेज़ों ने अंदमान की उस सेल्युलर जेल में काले पानी की सज़ा भुगतने के लिए उन्हें भेज दिया।

‘युगान्तर’ के माध्यम से कार्य कर रहे बारीन्द्र घोष ‘युगान्तर’ नाम की ही एक पत्रिका का संचालन करने में अग्रसर थे।
१९२० में बारीन्द्र घोष को रिहा किया गया और वे कोलकाता लौट गये। उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में पुन: कार्य करना शुरू कर दिया, लेकिन महज़ कुछ ही वर्षों में उन्होंने वह कार्य रोक दिया।

अरविन्दजी के विचारों और कार्य का प्रभाव बारीन्द्र घोष पर शुरूआत से ही था, इसलिए वे अरविन्दजी से मिलने पाँडेचरी गये। वहाँ से लौटने के बाद काफी समय तक उन्होंने समाचार पत्रों का संपादन आदि कार्य किये। उन्होंने अनेक क़िताबें भी लिखीं, आख़िर १८ अप्रैल १९५९ को वे इस दुनिया को छोड़कर चले गये।

अरविंद घोष और बारीन्द्र घोष के साथ साथ भारत को स्वतंत्रता दिलाने की कोशिशों में अग्रसर रहनेवाले व्यक्तित्वों में से एक व्यक्तित्व था, भूपेन्द्रनाथ दत्त का।

भूपेन्द्रनाथ का परिवार कोलकाता एवं पूरे बंगाल में पहले से ही सुविख्यात एवं जाना माना परिवार था। भूपेन्द्रनाथजी ये स्वामी विवेकानंदजी के छोटे भाई थे।

ऐसे इस परिवार में ४ सितम्बर १८८० को भूपेन्द्रनाथ का जन्म हुआ। युवावस्था में ही ‘युगान्तर’ आंदोलन से उनका परिचय हो गया और युगान्तर के माध्यम से वे देश की स्वतंत्रता-प्राप्ति के लिए किये जानेवाले प्रयासों में सक्रिय हो गये। ‘युगान्तर’ इस नाम से ही प्रकाशित होनेवाली पत्रिका के संपादन का कार्य भी उन्होंने किया। लेकिन इसके कारण १९०७ में अँग्रेज़ों ने उन्हें ग़िरफ्तार करके बंदी बना दिया। सज़ा काटने के बाद फिर एक बार वे मातृभूमि को आज़ाद करने की कोशिशों में जुट गये।

अँग्रेज़ों की ग़ुलामी से मुक्त हुई अपनी मातृभूमि को देखने का सौभाग्य भारतमाता की स्वतंत्रता के लिए लड़नेवाले जिन क्रांतिवीरों को प्राप्त हुआ, उनमें से एक थे- भूपेन्द्रनाथजी। २५ दिसंबर १९६१ को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा।

सशस्त्र क्रान्ति की ज्वाला अब तेज़ी से फैलने लगी थी। अब भारतीयों के बाज़ू स्फुरित होने लगे थे और उनका ख़ून खौलने लगा था, अपने मातृभूमि को दास्यत्व से जल्द से जल्द मुक्त करने के लिए। ये क्रान्तिवीर मौत से बिलकुल भी नहीं डरते थे; क्योंकि उनकी दृष्टि से उनकी मृत्यु यह उनकी प्रिय भारतमाता के लिए किया जानेवाला बलिदान था।

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