क्रान्तिगाथा- ३९

३० अप्रैल १९०८ की शाम को हुई उस घटना के पीछे बहुत बड़ा इतिहास था। उस शाम मोतीझील में स्थित युरोपीय क्लब के मुख्य प्रवेशद्वार में से बाहर निकली घोड़े की बग्गी पर का़फ़ी क़रीब से फ़ेंके गये बम का लक्ष्य था, मुझफ़्फ़रपुर का मॅजिस्ट्रेट, किंग्सफ़ोडर्र्। लेकिन दुर्भाग्यवश वह बम अपना लक्ष्य साध्य कर नहीं सका और किंग्सफ़ोर्ड बच गया। इस निर्दय और ख़ूँखार किंग्सफ़ोर्ड का वध करने की योजना पहले ही बनायी गयी थी और उसकी जिम्मेदारी उठायी थी, छात्रदशा के दो नवयुवकों ने; उनमें से एक का नाम था, खुदीराम बोस और दूसरे का नाम था, प्रफ़ुल्ल चाकी।

दोनों भी बंगाल के रहनेवाले थे। ‘अनुशीलन’ और ‘युगान्तर’ के माध्यम से छात्रदशा में ही वे दोनों विभिन्न क्रान्तिकारी गतिविधियों में शामिल हो चुके थें। ‘मातृभूमि की स्वतन्त्रता’ यही उद्देश्य और सपना संजोये इन दोनों को किंग्सफ़ोडर्र् का वध करने का काम करना था।

क्या, कब और कैसे करना है, इसका बहुत पहले से ही अध्ययन शुरू हो चुका था। इसलिए वे दोनों मोतीझील में बहुत पहले ही जा पहुँचे थे और धर्मशाला में रहने लगे थे। खुदीराम बोस वहाँ हरेन सरकार इस नाम से रह रहा था। अब शुरू हुआ किंग्सफ़ोर्ड की दैनिक गतिविधियों का अध्ययन। उसके लिए किंग्सफ़ोडर्र् की रोज़मर्रा की गतिविधियों पर दोनों नज़र रखे हुए थे। वह कब, कहाँ जाता है, कितने समय के लिए जाता है, किस दिन जाता है इसका बारीकी से अध्ययन दोनों ने मोतीझील में रहकर किया और दिन निश्‍चित किया गया, ३० अप्रैल १९०८ का।

३ दिसंबर १८८९ के दिन मिदनापुर के पास के हबीबपुर नाम के गाँव में खुदीराम बोस का जन्म हुआ। छात्रदशा में ही वह मातृभूमि-भक्ति से इतना भारित था कि सशस्त्र संघर्ष करने के लिए उसने अपने अध्यापक से शस्त्र की माँग भी की थी। उम्र के महज़ १६ वें साल में ही उसने बम का इस्तेमाल भी किया था।

१० दिसम्बर १८८८ के दिन, उस समय के बांग्लादेश में स्थित एक गाँव में प्रफ़ुल्ल चाकी का जन्म हुआ। स्कूल में ही उसने विभिन्न क्रान्तिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू किया था। इसके परिणामवश उसके स्कूल के साथ साथ उसके अध्यापक भी उससे बहुत ही नाराज़ थें। आगे चलकर वह रंगपुर के स्कूल में दाख़िल हो गया। यहाँ पर उसकी मुलाक़ात हुई, कई समविचारी देशभक्तों से और आगे चलकर वह कोलकाता आ गया। एक अँग्रज़ अफ़सर का वध करने की ज़िम्मेदारी प्रफ़ुल्ल चाकी को निभानी थी, लेकिन किसी कारणवश यह बात हो न सकी, और फ़िर खुदीराम बोस और प्रफ़ुल्ल चाकी सिद्ध हो गये किंग्सफ़ोर्ड का वध करने के लिए। घोड़े की बग्गी पर बम ङ्गेंककर वे दोनों पल भर में ही वहाँ से चले गये। बाद में उन्हें पता चला की उस बग्गी में किंग्सफ़ोर्ड था ही नहीं और इसी कारण वह बच गया।

घटनास्थल से कुछ ही दूर जाकर दोनों अलग अलग रास्तों से आगे बढ़ गये। क्योंकि उन्हें अँग्रेज़ों के हाथ बिलकुल भी नहीं लगना था, क्योंकि इससे अन्य क्रांतिकारियों एवं देशभक्तों को बहुत बड़ा ख़तरा हो सकता था।

खुदीराम बोस से अलग होने के बाद प्रफ़ुल्ल चाकी पहुँचा, ठेंठ समस्तीपुर। थके भागे प्रफ़ुल्ल को वहाँ के एक रेल कर्मचारी ने कुछ समय तक के लिए आसरा दिया और आगे जाने के लिए रात की ट्रेन का टिकट भी खरीद कर दिया। वहाँ से आगे जाने के लिए प्रफ़ुल्ल ने उस रात ट्रेन पकड़ ली, लेकिन दुर्भाग्यवश उसी डिब्बे में था, एक सब-इन्स्पेक्टर। वह अपनी छुट्टियाँ खत्म करके फ़िरसे अपनी नौकरी की जगह जा रहा था। सबसे अहम बात यह थी की वह भारतीय था। अब तक मोतीझील में हुई घटना की खबर चारों ओर फ़ैल गयी थी। इस सब-इन्स्पेक्टर को उसके ड़िब्बे में दाखिल हुए इस लड़के पर शक हुआ। उसने तुरन्त ही टेलिग्राम करके उस लडके को गिऱफ़्तार करने की इजाज़त भी अपने वरिष्ठ अ़फ़सरों से माँग ली। एक स्टेशन पर काफ़ी भाग़दौड़ मच गयी थी। वह सब-इन्स्पेक्टर प्रफ़ुल्ल चाकी को पकड़ने ही वाला था कि तभी गोलियाँ चलने की आवाज़ आयी। दो गोलियाँ चलीथीं और खुद प्रफ़ुल्ल चाकी ने अपने पास रहनेवाली पिस्तौल में से खुद पर गोलियाँ चलायी थी और मौत को गले लगा लिया था, निर्भयता से, केवल अपनी मातृभूमि के लिए।

वहीं दूसरी तऱफ़ खुदीराम बोस रात भर चलकर एक स्टेशन पर पहुँचा। स्टेशन के एक स्टॉल पर उसने पीने के लिए पानी माँगा और इतने में बन्दूकधारी पुलिस उसके पास आ गयी। खुदीराम बोस के थके भागे होने से उन्हें उस पर शक करने का मौका मिला। मामूली पूछताछ करने के बाद उन्होनें खुदीराम को ग़िऱफ़्तार कर लिया। अँग्रेज़ पुलिस के हाथों में नहीं पड़ना है, यह तय करने के कारण खुदीराम ने उनकी गिऱफ़्त से छूटने की जी जान से कोशिश की, लेकिन वह असफ़ल साबित हुईं।

१ मई को खुदीराम को मुझफ़्फ़रपुर लाया गया। उस समय इस निर्भय क्रांतिकारी को देखने के लिए सारा गाँव इकठ्ठा हुआ था। यहीं से आगे शुरू हुआ अँग्रेज़ों का फ़ार्स- खुदीराम को क़ानून के आधार पर दोषी साबित करके उसे सज़ा सुनाने का।

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