क्रान्तिगाथा- ४३

१ जुलाई १९०९ को लंदन में आयोजित किये गये ‘इंडियन नॅशनल असोसिएशन’ के वार्षिक समारोह में समारोह स्थल पर पहुँचते ही इंग्लैंड़ स्थित अँग्रेज़ अफ़सर कर्ज़न वायली पर गोलियाँ चलायी गयीं। गोलियाँ चलानेवाला युवक ख़ुद पर गोलियाँ चलाने ही वाला था कि उसे ग़िरफ्तार कर लिया गया।

उस युवक का नाम था, ‘मदनलाल धिंगरा’! सन १८८३ में पंजाब के एक समृद्ध खानदान में मदनलाल धिंगरा का जन्म हुआ था। उनके पिता सिव्हिल सर्जन थे। उन के परिवार पर अँग्रेज़ों की संस्कृति एवं विचारों का बहुत बडा प्रभाव था। मदनलाल धिंगरा की प्रारंभिक पढ़ाई भारत में ही हुई। अमृतसर में शुरुआती शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने अगली पढ़ाई लाहोर में की।

गोलियाँ चलायी

देश भर में इसी समय स्वतन्त्रताप्राप्ति की कोशिशें जोरों से चल रही थीं। मदनलाल धिंगरा इस विचारधारा से काफी प्रभावित हुए थे। देशप्रेम का जुनून मदनलाल धिंगरा पर सवार था और उन्होंने कॉलेज में विदेशी कपड़ों की होली जलाने में सहभाग भी लिया था। इससे कॉलेज प्रशासन उनसे बहुत नाराज़ हो गया था। यहाँ पर इस बात पर ग़ौर करना ज़रूरी है कि उस वक़्त जब देशप्रेम से भारित कोई छात्र स्वतन्त्रता आंदोलन में हिस्सा लेता था, तब स्कूल या कॉलेज प्रशासन की नाराज़गी का सामना उसे करना पड़ता था। ऐसे छात्रों को फिर स्कूल या कॉलेज प्रशासन स्कूल या कॉलेज में से रेस्टिकेट करने में बिलकुल भी हिचकिचाता नहीं था। मदनलाल धिंगरा के साथ भी ऐसा ही हुआ।

महज़ कॉलेज प्रशासन ही नहीं, बल्कि अँग्रेज़ संस्कृति से प्रभावित रहनेवाला उनका परिवार भी इस घटना से उनसे नाराज़ हो गया। परिणामवश छात्रावस्था में ही शिक्षाप्राप्ति और रोजीरोटी के लिए उन्हें अलग अलग काम करने पड़े। सन १९०६ में बड़े भाई से विचार विमर्श करके अगली पढ़ाई करने वे लंदन के लिए रवाना हो गये।

और यहाँ के वास्तव्य में उनके जीवन में एक नया मोंड़ आ गया। लंदन जाने के बाद उनका परिचय हुआ श्यामजी कृष्ण वर्मा और उनके इंडिया हाऊस से। ‘अभिनव भारत संगठन’ की स्थापना करनेवाले वीर सावरकर यानी विनायक दामोदर सावरकर भी उस व़क़्त वहीं पर थे।

अब तक अँग्रेज़ों के द्वारा भारत में भारतीयों पर किये जा रहे अत्याचारों की ख़बरें इन सब तक पहुँच ही रही थीं। लेकिन अब तो अँग्रेज़ बहुत ज्यादा कहर ढ़ा रहे थे। अँग्रेज़ उनके अफ़सरों का वध करने का इलज़ाम रखकर कई भारतीय युवकों को फाँसी पर लटका रहे थे।

और आख़िर १ जुलाई १९०९ को मदनलाल धिंगरा ने अपनी मातृभूमि की ख़ातिर अपना सर्वोच्च योगदान दिया। कर्ज़न वायली पर जब गोलियाँ चलायी जा रही थी, तब भारतीय मूल का एक डॉक्टर कर्ज़न वायली को बचाने बीच में आ गया और वह भी गोलियों से ढेर हो गया।

यहाँ पर इस बात पर ग़ौर करना आवश्यक है कि भारतीय क्रान्तिवीर जिन अँग्रेज़ अफ़सरों को मौत के घाट उतार रहे थे, वे सभी अँग्रेज़ अफ़सर बेहद ख़ूँख़ार और भारतीयों पर बेतहाशा ज़ुल्म ढानेवाले हैवान ही थे।

कर्ज़न वायली जब गोलियों से ढ़ेर हो गया, तब मदनलाल धिंगरा ने ख़ुद पर गोलियाँ चलाने की कोशिश की, लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो सके और उन्हें पकड़ लिया गया।

अँग्रेज़ों की सरज़मीन पर ही एक ख़ूँख़ार अँग्रेज़ अफ़सर का वध करने का साहस दिखाया था, एक बहादुर निडर भारतीय क्रान्तिवीर ने।

अँग्रेज़ इस घटना से सहम गये। हमेशा की तरह क़ानूनी कार्रवाई शुरू हो गयी। २३ जुलाई को लंदन स्थित पुराने बेली कोर्ट में केस की सुनवाई शुरू हो गयी। मदनलाल धिंगरा को अपने इस देशहितकारी कार्य पर नाज़ ही था।

घटित हुई घटना की हमेशा की तरह सुनवाई शुरू हुई, कोर्ट में। इस तरह की घटनाओं में यानी की भारतीय क्रान्तिवीरों द्वारा अँग्रेज़ अफ़सरों पर किये गये हमलों की जाँच जल्द से जल्द करके उस क्रान्तिवीर को अँग्रेज़ सजा सुनाते थे। इस मामले में भी ऐसा ही होनेवाला था, इसमें कोई आशंका नहीं थी। सबसे अहम बात यह थी की यह घटना अँग्रेज़ों की ज़मीन पर हुई थी और जो व्यक्ति प्रमुख था, वह भारतीय क्रान्तिवीर था।

और लंदन के पुराने बेली कोर्ट में इस मामले की सुनवाई शुरू हुई। महज़ ब्रिटन में स्थित भारतीय ही नहीं, बल्कि भारत में स्थित भारतीय भी इस पर अपनी आँखें लगाये हुए थे। मगर फिर भी हर एक भारतीय जानता था कि अंजाम क्या होनेवाला है।

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