क्रान्तिगाथा-४८

दिल्ली दरबार’ का आयोजन केवल सन १९११ में ही किया गया था, ऐसा नहीं, तो उससे पहले भी दो बार दिल्ली में इस प्रकार के दरबार का आयोजन किया गया था। ‘दिल्ली दरबार’-दिल्ली में ब्रिटन के राजा और रानी के सम्मान में आयोजित किया गया दरबार। ब्रिटन के राजा और रानी के द्वारा भारत की राजगद्दी सँभाले जाने के उपलक्ष्य में इस दरबार में उन्हें सम्मानित किया जाता था। इस तरह तीन बार भारत में दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया। सन १८७७, १९०३ और १९११ में इस दरबार का आयोजन किया गया। भारत के सिंहासन पर ब्रिटन के राजा और रानी के विराजमान होने की घोषणा इस दरबार में की जाती थी। लेकिन केवल सन १९११ में हुए ‘दिल्ली दरबार’ में ब्रिटन के राजा-पंचम जॉर्ज उपस्थित थे; और उससे पहले आयोजित किये गये दो दरबारों के समय उस समय ब्रिटन की राजगद्दी सँभालवाले शासक के प्रतिनिधी ही उपस्थित थे।

क्रान्तिगाथा, इतिहास, ग़िरफ्तार, मुक़दमे, क़ानून, भारत, अँग्रेज़इतिहासकारों ने इन दरबारों का बहुत ही दिलचस्प वर्णन किया है। जब लॉर्ड कर्झन भारत का व्हॉइसरॉय था, उस समय आयोजित किया गया दिल्ली दरबार अन्य दो दरबारों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली था, ऐसी इतिहासकारों की राय है।

यहाँ पर इन दरबारों के बारे में लिखने के पीछे मात्र यहीं उद्देश है की इससे पता चले के उस समय आम भारतीयों की हालत कैसी बुरी थी और उन्हीं के पैसों पर अँग्रेज़ भारत में स्वर्गीय सुख का अनुभव कर रहे थे।

सन १९०३ में आयोजित ‘दिल्ली दरबार’ के लिए लॉर्ड कर्झन ने बहुत ही ख़ास इंतजाम किये थे। पोस्ट ऑफीस, हॉस्पिटल, नया रेलमार्ग इन के साथ एक नया गांव ही दिल्ली में बसाया गया था। भारत के रियासतदार अपने रुतबे के अनुसार इस समारोह में उपस्थित थे। संक्षेप में इस दरबार में बड़ी मात्रा में पैसा खर्च किया गया और साथ ही आँखें चकाचौंध कर देनेवाला संपत्ति का प्रदर्शन इस समय देखा गया।

सोना, चांदी के साथ नायाब ऐसे रत्न पहने गये, नजराने के रूप में ब्रिटन के राजा को दिये गये। कई दिनों तक भोजन समारोह, नाच-गाना, खेल ऐसे कार्यक्रम होते रहे। दुनिया भर से कई मिडीया के रिपोर्टर्स खास तौर पर इस बात की खबर लोगों तक पहुँचाने के लिए उस वक्त दिल्ली में मौजूद थे।
१९११ साल के ‘दिल्ली दरबार’ का आयोजन ७ से १६ दिसंबर तक की अवधि में किया गया था। इसके लिए ब्रिटिश राजा पंचम जॉर्ज उनके रानी के साथ उपस्थित थे। उस समय भारत की राजगद्दी पर विराजमान होने के प्रतीक स्वरूप उन्होंने जो मुकुट पहना था, उसमें ६,१७० हिरें जडे हुए थे। साथ ही माणिक, पन्ना और नीलमणी जैसे रत्न जडे हुए थे।

इस दिल्ली दरबार में कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णयों की घोषणा की गयी। उनमें से पहला निर्णय था – १९०५ में लॉर्ड कर्झन द्वारा किये गये बंगाल के बँटवारे को ख़ारिज किया गया। दूसरा निर्णय था – ब्रिटिश सरकार की भारत में स्थित राजधानी को बदलने का। उस समय कलकत्ता (वर्तमान समय का कोलकाता) यह ब्रिटिशों की भारत में स्थित राजधानी थी; अब ‘दिल्ली’ को राजधानी का दर्जा दिया गया और साथ ही नयी दिल्ली के निर्माण की नींव भी रखी गयी।

इन दिल्ली दरबारों के आयोजन के पीछे ब्रिटिशों का एक छिपा हुआ उद्देश था। भारत में स्थित ब्रिटिश राज को यहाँ के रियासतदारों से मिलनेवाले समर्थन को अधिक से अधिक दृढ बनाना।

१९११ के दिल्ली दरबार में आकर ब्रिटन के राजा और रानी के द्वारा, वे ही भारत की जनता के रक्षक है, यह जताने कार्यक्रम बहुत ही अच्छी तरह संपन्न हो गया। लेकिन १९११ के बाद इस प्रकार के ‘दरबार’ का आयोजन नहीं किया गया। उसके कारण इस प्रकार बताये जाते है कि पहले महायुद्ध में दुनिया के अन्य देशों के साथ ब्रिटन भी कूद पडा था और इस वजह से ऐसे दरबार का आयोजन नहीं हो सका और दूसरा कारण यह था की अब भारत में आजादी के लिए हो रहीं गतिविधियों ने का़ङ्गी जोर पकड़ लिया था।

भारत के बाहर अन्य देशों में स्थित भारतीयों द्वारा स्वतन्त्रता प्राप्ती के लिए की जानेवाली कोशिशों में से एक थी, ‘गदर पार्टी’ की स्थापना।

अमरिका और कॅनडा में स्थित पंजाब के देशभक्तों द्वारा स्थापित किया गया यह संगठन था। २५ जून १९१३ को इसकी स्थापना की गयी। इसे ‘हिंदी असोसिएशन ऑफ पॅसिफिक कोस्ट’ इस नाम से भी जाना जाता है। इसकी स्थापना सॅनफ्रान्सिस्को स्थित एस्टोरिया में १९१३ को हुई और उसके संस्थापक थे – सरदार सोहनसिंह भाकना।

‘गदर’ शब्द का अर्थ ही ‘क्रान्ति’ है। इसलिए इस संगठन का उद्देश इसके नाम में ही है।

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