जापान, फ्रान्स, ऑस्ट्रेलिया और अमरीका का संयुक्त अभ्यास

टोकिओ, दि. १२ (वृत्तसंस्था) – जापान के क्युशू भाग में पहली ही बार मेजबान जापान समेत फ्रान्स, ऑस्ट्रेलिया और अमरीका इन चार देशों का संयुक्त अभ्यास शुरू हुआ है। लष्कर, नौसेना और हवाई दल ऐसे तीनों लष्करी बलों का समावेश होनेवाला यह अभ्यास हफ्ते भर चलेगा। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चार लोकतांत्रिक देशों के बीच का यह अभ्यास, चीन की आक्रामक गतिविधियों का जवाब होने का दावा जापान के लष्करी अभ्यासगुट कर रहे हैं। यह जापान के पूर्व प्रधानमंत्री ऍबे शिंजो ने बनाईं आक्रामक रक्षा विषयक नीतियों का भाग है, ऐसा जापान के अभ्यास गुटों का कहना है।


Joint-war-execrise-01-300x200जापान के नैऋत्य ओर के क्युशू भाग में मंगलवार से ‘जीने डी’आर्क २१’ यह अभ्यास शुरू हुआ है। इस अभ्यास में ३०० जवान, लड़ाकू विमान, हेलिकॉप्टर्स, १० विध्वंसक और पनडुब्बियाँ सहभागी हो रहे हैं। इनमें अमरीका के ‘न्यू ऑर्लिन्स’ इस ऍम्फिबियस विध्वंसक का भी समावेश है। जापान ने इस सालभर में अलग-अलग देशों के साथ युद्धाभ्यासों का आयोजन किया है। ‘जीने डी’आर्क २१’ अभ्यास के साथ इसकी शुरुआत हुई है। इस साल के अंत तक, ब्रिटेन का विमानवाहक युद्धपोत ‘एचएमएस क्विन एलिझाबेथ’ और जर्मनी के युद्धपोत समेत जापान का संयुक्त युद्धाभ्यास संपन्न होगा। इससे यही स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि अगले कुछ महीनों में जापान की नौसेना इन अभ्यासों के जरिए अपनी युद्धसिद्धता और क्षमता बढ़ानेवाली है।

ईस्ट और साऊथ चाइना सी क्षेत्र में चीनी नौसेना की हरकतें चिंताजनक रूप में बड़ी है, ऐसे में जापान ने अपनी रक्षा विषयक नीति में आक्रामक बदलाव किए थे। पूर्व प्रधानमंत्री ऍबे शिंझो के कार्यकाल में ही योजना बनाई गई थी। जापान की नौसेना का युद्धाभ्यास इसके अनुसार ही संपन्न हो रहा है, ऐसे जापान के विश्लेषक बता रहे हैं। ‘ईस्ट और साऊथ चाइना सी के क्षेत्र में चीन के साथ बढ़ रहे तनाव की पृष्ठभूमि पर, जापान ने अपनी रक्षा नीति व्यापक की’, ऐसा जापान की ताकूशोकू यूनिवर्सिटी के ‘इन्स्टिट्यूट ऑफ वर्ल्ड स्टडिज्’ इस लष्करी अभ्यासगुट के प्रमुख तकाशी कावाकामी ने कहा।

‘जापान के पूर्व प्रधानमंत्री ऍबे ने कुछ साल पहले इंडो-पैसिफिक सहयोग के बारे में बात करते समय, जापान और नाटो के सदस्य देशों के लष्करी सहयोग की आवश्यकता जताई थी। उस पृष्ठभूमि पर, वर्तमान दौर में आयोजित किए युद्धाभ्यास, जापान और नाटो सदस्य देशों के बीच के सहयोग के लिए महत्वपूर्ण साबित होते हैं’, ऐसा दावा कावाकामी ने किया।

Joint-war-execriseदूसरे विश्वयुद्ध में परास्त हुए जापान ने अमरीका के सामने शरणागति मानते समय, अपनी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी अमरीका पर ही सौंपने की शर्त मान्य की थी। उसके बाद के दौर में, जापान ने बचावात्मक नीति अपनाई थी। लेकिन चीन की आक्रामकता से गंभीर खतरा निर्माण होने के बाद, ऍबे शिंझो के कार्यकाल में ही जापान की रक्षा विषयक नीति में आक्रमक बदलाव हुए। उसके अनुसार जापान ने अपने रक्षा खर्च में लक्षणीय बढ़ोतरी करके, शस्त्रास्त्र और रक्षा सामग्री की खरीद शुरू की। इतना ही नहीं, बल्कि अन्य देशों के साथ रक्षा विषयक सहयोग बढ़ाकर, जापान ने चीन को प्रत्युत्तर देने के लिए तेज़ी से कदम उठाए हैं।

फ्रान्स, अमरीका और ऑस्ट्रेलिया इन चीन के विरोध में डटकर खड़े रहे देशों के साथ जापान की नौसेना का युद्धाभ्यास, जापान के बदले हुए दाँवपेंचों का बहुत ही महत्वपूर्ण भाग साबित होता है। इससे चीन अधिक ही बेचैन हुआ होकर, अपना असंतोष साउथ और ईस्ट चाइना सी क्षेत्र में विभिन्न मार्गों से व्यक्त करने की तैयारी चीन ने की है। ये सारे देश अपने विरोध में एकत्रित आये हैं, ऐसे आरोप भी चीन करने लगा है। जापान के लष्करी विश्लेषक तकाशी कावाकामी भी यह बात मान्य कर रहे हैं कि चीन को आँखों के सामने रखकर ही इस अभ्यास का आयोजन किया गया है। ऐसा होने के बावजूद भी, इन देशों की एकजुट के लिए चीन की विस्तारवादी नीतियाँ ही ज़िम्मेदार हैं, ऐसा जापान और ऑस्ट्रेलिया के तटस्थ निरीक्षक स्पष्ट रूप में बता रहे हैं।

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