‘वीटो’ को दुरुपयोग करके दूसरों के अधिकार अनदेखा कर र हे ‘पी ५’ देशों पर भारत ने की कड़ी आलोचना

संयुक्त राष्ट्र संघ – अपने राजनीतिक स्वार्थ प्राप्त करने के लिए बेझिझक ‘वीटो’ यानी नकाराधिकार का इस्तेमाल कर रहे अमरीका, रशिया, ब्रिटेन, फ्रान्स और चीन आदि ‘पी ५’ देश दूसरें देशों को यह अधिकार देने से इन्कार कर रहे हैं। यह दोगलापन हैं औड़ यह बात संयुक्त राष्ट्र संघ के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ जाती है, ऐसी फटकार भारत ने लगाई। सुरक्षा परिषद का विस्तार करें और हमें स्थायि सदस्यता प्रदान करें, ऐसी मांग भारत लगातार कर रहा हैं। इसपर भारत को स्थायि सदस्यता बिना ‘वीटो’ से प्रदान करने का प्रस्ताव ‘पी ५’ देश पेश करते हुए दिख रहे हैं। इसपर भारत ने ऐसी तीखी प्रतिक्रिया दर्ज़ की है। नकाराधिकार सीर्फ पांच देशों तक सीमित नहीं रखा जा सकता। या तो सभी की ‘वीटो पॉवर’ हटाए या सुरक्षा परिषद के नए स्थायी सदस्यों को भी ‘वीटो पॉवर’ देने की तैयारी रखे, ऐसा इशारा भारत ने दिया है। 

‘वीटो’संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा में बुधवार को ‘युज ऑफ द वीटो’ यानी नकाराधिकार के इस्तेमाल के मुद्दे पर चर्चा हुई। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पश्चिमी देशों ने सुरक्षा परिषद में रशिया के विरोधी कई प्रस्ताव पेश किए थे। लेकिन, ‘वीटो’ का प्रयोग करके रशिया ने अपने खिलाफ जाने वाले यह प्रस्ताव नाकाम किए। इसके बाद पश्चिमी देशों ने ‘वीटो’ को लेकर आम सभा में चर्चा का आयोजन किया। बुधवार को हुई इस चर्चा में भारत के राजनीतिक अधिकारी प्रतिक माथूर ने सख्त और स्पष्ट शब्दों में भारत की भूमिका पेश की। ‘वीटो’ के बारे में अलग अलग टुकड़ों में सोच नहीं सकते, इसके लिए अधिक व्यापक नज़रिये की ज़रूरत है, ऐसी फटकार माथूर ने लगाई। १९३ सदस्य देशों के संयुक्त राष्ट्र संघ का कारोबार सीर्फ सुरक्षा परिषद के पांच स्थायि सदस्य ही कैसें चला सकते हैं, यह सवाल माथूर ने इस दौरान किया।

संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में पांच स्थायि सदस्य देश हैं। अन्य दस अस्थायी सदस्यता के लिए अन्य देशों को निर्धारित क्रम के अनुसार अवसर प्राप्त होता है। उनकी सदस्यता के लिए दो साल का कार्यकाल निर्धारित किया गया है। साथ ही इन देशों को ‘वीटो’ यानी कोई भी प्रस्ताव ठुकराने का अधिकार नहीं होता। लेकिन, ‘पी ५’ देशों को प्राप्त ‘वीटो पॉवर’ के विरोध में पुरी दुनिया में आवाज़ उठायी जा रही हैं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद की स्थिति में संयुक्त राष्ट्र संघ की ऐसी रचना की गई थी। अब ७५ वर्ष बीतने के बावजूद वहीं रचना कायम हैं, इसपर भारत कड़ी आलोचना कर रहा हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता भारत का अधिकार हैं और राष्ट्र संघ यह अधिकार ठुकरा नहीं सकता, इसका अहसास भारत लगातार करा रहा हैं। इस वजह से भारत को ‘वीटो’ के बगैर स्थायी सदस्यता प्रदान करने का प्रस्ताव पेश करने की तैयारी शुरू थी। सुरक्षा परिषद के नए स्थायी सदस्य देशों को ‘वीटो पॉवर’ बाद में बहाल करने पर सोचा जाएगा, ऐसा ‘पी ५’ देश सूचित कर रहे थे। इसका भारत ने तीव्र विरोध किया है और इन ‘पी ५’ देशों की ‘वीटो पॉवर’ ही हटाने की मांग भारत ने उठायी हैं। किसी को भी ‘वीटो पॉवर’ ना प्राप्त हो और मतदान के माध्यम से सुरक्षा परिषद के निर्णय किए जाए, नहीं तो नए स्थायि सदस्यों को भी ‘वीटो पॉवर’ प्रदान हो, ऐसी भारत की मांग प्रतिक माथूर ने ड़टकर रखी। साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ का कारोबार पुराना एवं अप्रचलित रचना के अनुसार चलाया जा रहा हैं और इसके लिए ‘वीटो’ का अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहे देश ज़िम्मेदार हैं, ऐसा आरोप भी माथूर ने इस दौरान लगाया।

भारत की इस भूमिका का अफ्रीकी एवं लैटिन अमरिकी देशों ने समर्थन किया हैं। ग्लोबल साउथ का हिस्सा होने वाले विकासशील देश भारत के पक्ष में खड़े हुए हैं और ऐसे में भारत की मांग को अनदेखा करना विकसित देशों के लिए भी कठिन हो रहा हैं। इस वजह से रशिया ने इस्तेमाल किए ‘वीटो’ के खिलाफ राष्ट्र संघ की आम सभा का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे पश्चिमी देशों की स्वार्थांध नीति पर भारत ने की हुई आलोचना को भारी समर्थन प्राप्त होता दिख रहा हैं।

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