प्रधानमंत्री के युरोप दौरे में भारत का प्रभाव अधोरेखित हुआ

नई दिल्ली – युक्रेन का युद्ध भड़का है, ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी का जर्मनी, डेन्मार्क और फ्रान्स का दौरा तूफ़ानी साबित होगा, ऐसी संभावना जताई जा रही थी। युक्रेन पर हमला करने वाले रशिया का निषेध करने की बात तो दूर ही रही, उल्टे रशियन ईंधन की खरीद करके भारत ने अमरीका समेत पश्चिमी देशों को झटका दिया था। इसकी गूंजे प्रधानमंत्री के युरोपीय देशों के दौरे में सुनाई देंगी, यह जताई जा रही चिंता वास्तविकता में नहीं उतरी। उल्टे युरोपीय देश भारत के साथ अपने संबंधों को अधिक महत्व दे रहे होने की बात प्रधानमंत्री के इस दौरे में अधोरेखांकित हुई है।

भारत का प्रभावजर्मनी और डेन्मार्क इन देशों के राष्ट्रप्रमुखों ने रशिया के विरोध में भूमिका अपनाई। उसी समय, रशिया से लोकतंत्रवादी देशों को खतरा है, ऐसा डेन्मार्क की प्रधानमंत्री ने कहा था। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट शब्दों में, चर्चा के सिवाय युक्रेन की समस्या का हल प्राप्त होना संभव नहीं है, इसका एहसास अपने इस युरोप दौरे में करा दिया। भारत रशिया अथवा युक्रेन के पक्ष में नहीं, बल्कि शांति के पक्ष में है, यह बात प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट की। इससे भारत की विदेश नीति संतुलित और सार्वभौम होने का अनुभव सारी दुनिया ने किया है।

कोरोना की महामारी, उसके बाद युक्रेन का युद्ध ऐसी चुनौती भरी परिस्थिति को मात देकर भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन कर रही है। ऐसी परिस्थिति में सारी दुनिया को यह संदेश मिला है कि भारत की विदेश नीति सातत्यपूर्ण है, उसमें आकस्मिक बदलाव नहीं किए जाते। खासकर रशिया के मुद्दे पर मतभेद होकर भी जर्मनी, डेन्मार्क इन देशों ने, भारत के साथ व्यापारिक और राजनीतिक सहयोग व्यापक करने के लिए हम प्राथमिकता देंगे, ऐसा घोषित किया था। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का महत्त्व बढ़ रहा है यह इससे स्पष्ट होता है, ऐसा कुछ विशेषक बता रहे हैं।

युक्रेन का युद्ध जारी रहते भी, चीन से होनेवाले खतरे को युरोपीय देश अनदेखा नहीं कर सकते। इसके लिए भारत के साथ सहयोग करने के सिवा युरोपीय देशों के पास और कोई चारा ही नहीं है, यह युरोपीय देशों के साथ ही भारत भी जानता है। इसी कारण भारत अपनी नीति पर अड़िग होने का दावा अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के विश्लेषकों ने किया है। आनेवाले समय में इसके बहुत बड़े राजनीतिक और व्यापारिक लाभ भारत को मिलेंगे, ऐसा इन विश्लेषकों का कहना है।

अमरीका जैसी महासत्ता से दबाव बनने पर भी भारत, अपना पारंपरिक मित्र देश होनेवाले रशिया के साथ बने सहयोग से किनारा करने के लिए तैयार नहीं हुआ । इसकी दखल, अन्यथा भारत का मजाक उड़ानेवाले चीन के सरकारी माध्यमों को भी लेनी पड़ी थी। भारत की विदेश नीति प्रशंसनीय होने का दावा चीन के मुखपत्र ने किया था। उसी समय अमरीका से चेतावनियाँ आने के बावजूद भी, लद्दाख का सीमा विवाद बाजू में रखकर सहयोग स्थापित करने का चीन ने दिया हुआ प्रस्ताव भारत ने दृढ़तापूर्वक नकारा था। यह बात अमरीका समेत चीन को झटका देनेवाली साबित हुई थी।

युरोपीय देशों ने भारत के साथ सहयोग को दी हुई अहमियत, आनेवाले समय पर प्रभाव डालने वाली बात साबित होगी। युरोपीय देशों को इसका अहसास हो चुका है। भारत में निवेश का अवसर अगर इस समय छोड़ दिया, तो बहुत कुछ गँवाने का खतरा है, यह बात प्रधानमंत्री मोदी ने अपने युरोप दौरे में जताई थी। इस दावे की युरोपीय देशों के उद्योग क्षेत्र द्वारा पुष्टि हो रही है, यह बात ग़ौरतलब साबित होती है।

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