भारतीय विदेश मंत्री ने दिया यूरोपिय देशों को दो टूक जवाब

वियना – रशिया और भारत के सहयोग पर बयान करके भारत को नैतिकता के पाठ पढाने की कोशिश करने वाले यूरोपिय देशों को भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने तीखे बोल सुनाए। एक साक्षात्कार के दौरान भारतीय विदेश मंत्री ने यूरोप के लिए इशारे की घंटी बज रही है, ऐसी चेतावनी दी है। साल २००८ की आर्थिक मंदी के बाद यूरोपिय देशों ने रक्षात्मक भूमिका अपनाई और अपने ही कोश में अपनी प्रगति करने की नीति अपनाई। इससे बड़े अहम सुरक्षा के मुद्दों को यूरोपिय देशों ने नजरअंदाज किया और अंतरराष्ट्रीय समस्या से दूर रहने की कोशिश की, ऐसी आलोचना जयशंकर ने की। लेकिन, अमरीका को इन समस्याओं का अहसास हुआ और अमरीका ने भारत जैसे देश के साथ सहयोग के लिए समय के रहते कदम उठाए, इसका अहसास भी जयशंकर ने कराया।

फिलहाल हम घातक दौर से गूजर रहे हैं और वैश्विक व्यवस्था में बदलाव होने के लिए काफी समय लगेगा, इसका अहसास अमरीका को सबसे पहले हुआ। अमरीका के भूतपूर्व राष्ट्राध्यक्ष बराक ओबामा और उनके बाद सत्ता संभालने वाले डोनाल्ड ट्रम्प के बीच काफी बड़े मतभेद थे। लेकिन, अमरीका और भारत के सहयोग पर यह दोनों नेता कायम रहे, इस पर जयशंकर ने ध्यान आकर्षित किया। स्पष्ट तौर पर ज़िक्र किया न गया हो, फिर भी चीन से होने वाले खतरे के मद्देनज़र भारत के साथ सहयोग किए बिना विकल्प नहीं है, यह अमरीका के नेताओं को उचित समय पर समझ में आया, ऐसा विदेश मंत्री जयशंकर ने राजनीतिक भाषा में कहा। लेकिन, यूरोपिय देशों में अब भी यह स्पष्टता नहीं है, ऐसी फटकार जयशंकर ने लगाई।

वैश्विक व्यवस्था आज भी काफी हद तक पश्चिमी देशों पर निर्भर है। इसमें बदलाव करके यह व्यवस्था बहुपक्षीय हो, इसमें हर एक देश को विभिन्न स्तर पर अपनी नीति के अनुकूल देशों से सहयोग करने की आज़ादी होनी चाहिये, ऐसा विदेश मंत्री जयशंकर ने आगे कहा। भारत और रशिया के सहयोग का समर्थन करते हुए जयशंकर ने इस सहयोग के पीछे भी पश्चिमी देश होने के मुद्दे पर ध्यान आकर्षित किया। शीतयुद्ध के दौरान भारत को हथियार प्रदान करने से इन्कार करके अमरीका ने पाकिस्तान के तानाशाह को हथियारों की आपूर्ति की थी। इससे भारत को सोवियत रशिया से हथियार खरीदने पड़े और भारत ने यह हथियार अपनी सुरक्षा के लिए खरीदे थे, इसकी याद भी जयशंकर ने दिलाई।

इसका मतलब क्या भारत रशिया का सहयोगी देश है, ऐसा सवाल एक पत्रकार ने पूछने के बाद जयशंकर ने भारत का ऐसे सहयोग के गठबंधन पर भरोसा ना होने की बात स्पष्ट की। भारत स्वतंत्र तौर पर अन्य देशों से सहयोग करता है, किसी के गुट में शामिल नहीं होता, यह पश्चिमी संकल्पना है, ऐसा जयशंकर ने आगे कहा। इसी बीच, सायप्रस और बाद में ऑस्ट्रिया जैसे यूरोपिय देशों के दौरे पर होते हुए भारतीय विदेश मंत्री ने यूरोपिय देश भारत की ओर अब भी संकुचित मानसिकता से देखते हैं, इस पर ध्यान आकर्षित किया। लेकिन, सायप्रस और ऑस्ट्रिया जैसे छोटे यूरोपिय देशों के साथ भारत का सहयोग बढ़ रहा है, यह जयशंकर ने बड़े जोरों से स्पष्ट किया है।

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