सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बनने के बाद सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता पर भारत की दावेदारी मज़बूत होगी – संयुक्त राष्ट्रसंघ के ‘पॉप्युलेशन डिवीजन’ के संचालक जॉन विल्मथ

संयुक्त राष्ट्रसंघ – अगले वर्ष चीन को पीछे छोड़कर भारत विश्व में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। संयुक्त राष्ट्रसंघ की रपट में यह संभावना जतायी गयी है। इसके बाद देश में जोरदार चर्चा शुरू हुई हैं और बढ़ती जनसंख्या की वजह से उभर रहे सवाल भी इस देश को सताएँगे, ऐसी चिंता व्यक्त की जा रही है। लेकिन, बढ़ती जनसंख्या के कुछ लाभ भी देश को प्राप्त होंगे, इस पर भी कुछ लोग ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। पहले क्रमांक की जनसंख्या वाले भारत की संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की दावेदारी अधिक मज़बूत होगी, ऐसा दावा भी किया जा रहा है।

जनसंख्याइस रपट में तैयार करनेवाले संयुक्त राष्ट्रसंघ के ‘पॉप्युलेशन डिविजन’ के संचालक जॉन विल्मथ ने सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का मुद्दा उठाया। सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश होने के बाद भारत का कुछ बातों पर दावा मज़बूत होगा। सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता भी इसी का हिस्सा होगा, ऐसा भारतीय नागरिकों को खुष करनेवाला बयान विल्मथ ने किया। साथ ही संयुक्त राष्ट्रसंघ में भारत को व्यापक भूमिका निभाने का अवसर प्राप्त हो सकता है, ऐसे संकेत विल्मथ ने दिए। इसी बीच भारत की मौजूदा जनसंख्या १.४१२ अरब है और चीन की जनसंख्या १.४२६ अरब है।

साल २०२३ में भारत इस मुकाम पर चीन को पीछे छोड़कर सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बनेगा, ऐसा संयुक्त राष्ट्रसंघ की रपट में दर्ज़ किया गया है। खास तौर पर भारतीय जनसंख्या में युवाओं का हिस्सा बड़ा है और यही निर्णायक बात साबित होगी। इससे भारत की अर्थव्यवस्था को काफी बड़ा लाभ होगा। साथ ही जनसंख्या बढ़ोतरी के साथ ही उभरनेवाली चुनौतियों का देश को सामना करना पडेगा। इसमें प्रचंड़ मात्रा में आर्थिक विकास को गति देकर रोजगार निर्माण गतिमान करने की चुनौती का समावेश है। इसके साथ ही जनसंख्या बढ़ोतरी के अलावा ज़रूरी शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी सेवाएं उपलब्ध कराने का ध्येय देश को सामने रखना होगा।

यह करते समय भारत को अपनी जनसंख्या नियंत्रित करनी होगी। जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए चीन ने कड़े कदम उठाए थे, इसके विपरीत परिणाम सामने आए हैं और चीन में वयोवृद्ध नागरिकों की संख्या विश्व की तुलना में काफी अधिक है, इस पर जॉन विल्मथ ने ध्यान आकर्षित किया। इसकी तुलना में भारत में यह प्रक्रिया आसानी से हो रही है और इस वजह से चीन को सता रही समस्याएँ भारत के लिए उस मात्रा में कठिनाई नही बनेंगीं, ऐसा विल्मथ ने कहा है।

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