संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद में युक्रेन की स्थिति पर भारत ने जतायी गंभीर चिंता

संयुक्त राष्ट्रसंघ – युक्रेन के क्रेमेन्चुक शहर के एक मॉल पर रशिया ने किए मिसाइल हमले में १८ लोग मारे जाने का दावा किया जा रहा है। युक्रेन समेत पश्चिमी देश इसकी कड़ी आलोचना कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद में भी इसकी गूंज सुनाई दी। भारत ने भी युक्रेन की स्थिति पर गंभीर चिंता जतायी है और युद्ध में आम नागरिक और बुनियादी सुविधाओं को लक्ष्य ना किया जाएँ, ऐसी उम्मीद व्यक्त की है।

युक्रेन की स्थितिसंयुक्त राष्ट्रसंघ में भारत के राजनीतिक अधिकारी आर.रविंद्र ने सुरक्षा परिषद में बोलते हुए युक्रेन की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की। युक्रेन युद्ध की वजह से महिला, बच्चें और वृद्ध नागरिकों को मजबूरन कठिन स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। उनकी स्थिति दहला रही है। इस वजह से लाखों लोग विस्थापित हुए हैं और उन्हें पड़ोसी देशों में आश्रय लेना पड़ रहा है, ऐसा कहकर आर.रविंद्र ने भारत की संवेदना व्यक्त की। इस तरह से संघर्ष में भी अन्तर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन किए बिना नागरी सुविधाओं को लक्ष्य ना किया जाएँ, ऐसी उम्मीद आर.रविद्र ने व्यक्त की।

युक्रेन में तुरंत युद्धविराम करके राजनीतिक बातचीत शुरू करें, ऐसी भारत की माँग है। आर.रविंद्र ने सुरक्षा परिषद में फिर से यह माँग उठायी। साथ ही, भारत युक्रेन और अन्य देशों में युक्रेनी विस्थापितों के लिए बड़ी मात्रा में मानवीय सहायता भेज रहा हैं। इसमें दवाईयाँ और अन्य ज़रूरी सामान का समावेश होने की जानकारी आर.रविंद्र ने प्रदान की। साथ ही युक्रेन युद्ध का बुरा असर सीर्फ यूरोपिय देशों को ही नहीं बल्कि विकसनशील देशों को भी भुगतना पड़ रहा हैं, इसका अहसास इस दौरान भारत के राजनीतिक अधिकारी ने कराया।

युक्रेन यह अन्न और खाद निर्माण में प्रमुख देश है। इस देश से गेहूं और खाद की निर्यात बंद होने का नुकसान, युक्रेन की निर्यात पर निर्भर विकासशील देशों को पहुँचा है। ‘यह बात ध्यान में रखकर विकासशील देशों को सस्ती कीमत में, सुलभता से और समानता के तत्त्व पर अनाज़ उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। मुक्त व्यापार का पुरस्कार करके अनाज़ की सप्लाई को लेकर विवाद करने का यह अवसर नहीं। साथ ही, ऐसें समय में अनाज और धान के मुद्दे पर भेद नहीं किया जा सकता, इसपर भी आर.रविंद्र ने ध्यान आकर्षित किया है।

युक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद अन्न धान की किल्लत का सामना कर रहें विकसित देशों ने, पहले अपने भंड़ार भरने की गतिविधियाँ शुरू की थीं। इसके अलावा, इन देशों की कंपनियों ने, अन्नधान की किल्लत का इस्तेमाल मुनाफे के लिए करने की ज़ोरदार तैयारी की थी। इसके लिए, अन्न एवं धान पर्याप्त मात्रा में रखनेवाले भारत से खरीद करने के लिए इन कंपनियों ने पहल की थी। लेकिन, भारत ने गेहूं की निर्यात पर पाबंदी लगाकर, सरकारी स्तर पर अन्य देशों को गेहूं की सप्लाई की जाएगी, ऐसा ऐलान किया। साथ ही, सबसे अधिक मात्रा में ज़रूरत होनेवालों का विचार करके उन देशों को गेहूं की निर्यात होगी, ऐसा भारत ने कहा है। भारत की इस नीति पर विकसित देशों ने नाराज़गी व्यक्त की थी।

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