सीमाविवाद के लिए भारत ही ज़िम्मेदार होने का चीन का आरोप

बीजिंग – चीन ने भारत के साथ सीमा नियोजन के संदर्भ में हुए समझौतों का उल्लंघन किया और इसी वजह से दोनों देशों के संबंधों में तनाव आया, ऐसा आरोप भारत के विदेशमंत्री जयशंकर ने किया था। उसपर चीन की प्रतिक्रिया आयी है। चीन ने नहीं, बल्कि भारत ने ही सीमाविषयक समझौते का उल्लंघन किया, ऐसा दोषारोपण चीन के सरकारी मुखपत्र ग्लोबल टाईम्स ने किया है।

सीमाविवादभारत के विदेशमंत्री जयशंकर लैटिन अमरिकी देशों के दौरे पर हैं। अपने ब्राज़िल दौरे में जयशंकर ने चीन के साथ भारत के तनावपूर्ण संबंधों के लिए सीमा पर चल रहीं चीन की उक़साऊ हरक़तें ज़िम्मेदार होने का आरोप किया। दोनों देशों के बीच, एलएसी पर सेना तैनात नहीं करनी है, ऐसे समझौते सन 1993 और 1996 में ही हुए थे। चीन ने उनका उल्लंघन किया। लद्दाख की गलवान वैली में क्या हुआ वह सभी को पता है। यह समस्या अभी भी हल नहीं हुई है और उसका असर भारत-चीन संबंधों पर हुई है, ऐसा विदेशमंत्री जयशंकर ने ब्राज़िल के साओ पावलो में माध्यमों के साथ की बातचीत के दौरान स्पष्ट किया।

दोनों देशों में उत्तम संबंध होना अत्यावश्यक है ही। लेकिन ये संबंध इकतरफ़ा नहीं हो सकते, इसके लिए दोनों देशों ने एक-दूसरे का आदर करना अनिवार्य साबित होता है, इसका एहसास विदेशमंत्री जयशंकर ने करा दिया था। रविवार को जयशंकर ने किये इन बयानों की गूंजें चीन से सुनाई देने लगीं हैं। चीन का सरकारी मुखपत्र होनेवाले ग्लोबल टाईम्स ने, भारत के कारण ही सीमाविवाद भड़क उठने का आरोप किय था। पिछले 20 सालों से भारत चीन से सटे अपने सीमाक्षेत्र में लष्करी क्षमता बढ़ा रहा है। इसलिए सन 1993 के समझौते का चीन नहीं, बल्कि भारत ही उल्लंघन कर रहा होने का दोषारोपण ग्लोबल टाईम्स ने किया है।

भारत के विदेशमंत्री जयशंकर एलएसी के पास उनका देश जो कारनामें कर रहा है, उसे नज़रअन्दाज़ कर रहे हैं। इसलि वे अगर लगातार इस प्रकार के बयान करते रहे, तो वह बात दोनों देशों के संबंधों के लिए उपकारक साबित नहीं होगी, ऐसा ताना भी ग्लोबल टाईम्स के लेख में मारा गया है। इसी बीच, असियान की बैठक में विदेशमंत्री जयशंकर ने, भारत और चीन एकसाथ आये बग़ैर इस सदी को ‘एशिया की सदी’ के रूप में जाना नहीं जा सकेगा, ऐसा बयान किया था। लेकिन चीन के क़ारनामों की वजह से यह मुश्किल बना होने का एहसास उन्होंने थाइलैंड की एक युनिवर्सिटी में किये अपने एक व्याख्यान में करा दिया था। लेकिन केवल उनके चुनिंदा बयानों का हवाला देकर चीन के विदेश मंत्रालय ने उसका स्वागत किया था।

इसी कारण, लैटिन अमरिकी देशों के दौरे पर होनेवाले भारत के विदेशमंत्री को फिर एक बार, चीन की उक़साऊ हरक़तों के कारण ही दोनों देशों के संबंध बिग़ड़े होने की बात पर ग़ौर कराना पड़ा। उसके बाद अपने सरकारी अख़बार के ज़रिये चीन को खुलासे देने पड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। सीमाविवाद चाहे कितना भी बिग़ड़ जायें और दोनों देशों के हज़ारों सैनिक सीमा पर चाहे एक-दूसरे के सामने खड़े हो जायें, कोई हर्ज़ नहीं है। उसका द्विपक्षीय सहयोग पर असर नहीं होना चाहिए, ऐसी ग़ैरवाजिब उम्मीद चीन रखता है। अलग शब्दों में, भारत क्से साथ व्यापारिक सहयोग क़ायम रखकर सीमा पर भारत की सुरक्षा को चुनौती देने की योजना पर चीन काम करना चाहता है। लेकिन गलवान वैली के संघर्ष के बाद भारत ने अपनाई कठोर भूमिका के कारण चीन की एक न चल रही होकर, चीन की यह योजना नाक़ाम हुई दिखाई दे रही है। लेकिन इस असफलता का ठिकरा भारत के माथे पर ही फोड़ने की चाल चीन ने चली है।

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