यूक्रेन युद्ध रोकने में असफल हुए संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद पर भारत की कड़ी आलोचना

संयुक्त राष्ट्र संघ – यूक्रेन युद्ध को एक साल पूरा होने के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने रशिया विरोधी प्रस्ताव पारित किया। रशिया यूक्रेन से अपनी सेना हटाए और रक्तपात बंद करे, ऐसी मांग इस प्रस्ताव में की गई थी। यह प्रस्ताव बहुमत से पारित हुआ है, फिर भी भारत के साथ २९ देशों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में और रशिया के खिलाफ मतदान न करते हुए तटस्थ भूमिका अपनाई। साथ ही यूक्रेन युद्ध रोकने में संयुक्त राष्ट्र संघ पूरी तरह से असफल रहा, यह आरोप भारत ने लगाया। साल १९४५ में गठित संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद मौजूदा समय में प्रभाव हीन है और यूक्रेन युद्ध रोकने में सुरक्षा परिषद की असफलता यह बात फिर से रेखांकित करती है, ऐसी फटकार भारत ने लगाई।

संयुक्त राष्ट्र संघ में यूक्रेन ने अमरीका की सहायता से पेश किए रशिया विरोधी प्रस्ताव के पक्ष में १४१ देशों ने वोट किया। सात देशों ने इसके खिलाफ और भारत एवं चीन समेत २९ देशों ने तटस्थ भूमिका अपनाकर रशिया के खिलाफ वोट नहीं किया। ब्रिटेन, फ्रान्स और जर्मनी ने इस प्रस्ताव के पक्ष में भारत को जोडने की कोशिश की, ऐसा कहा जा रहा है। लेकिन, भारत ने ऐसा करने इन्कार किया, ऐसी खबर मिली है। तथा, क्या रशिया और यूक्रेन की सम्मति से इस युद्ध को रोकने की कोशिश संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद ने की है? ऐसा मूल सवाल इस दौरान भारत ने पूछा। संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की राजदूत रुचिरा कंबोज ने यूक्रेन और रशिया को बातचीत में शामिल किए बिना यह युद्ध रोकना नामुमकिन है, इसका अहसास कराया।

यूक्रेन युद्ध के बड़े भयंकर परिणाम सामने आ रहे हैं। इस युद्ध की वजह से बच्चों और महिलाओं को बड़ी यातनाएं सहनी पड़ रही हैं, इस पर भारत की राजदूत ने ध्यान आकर्षित किया। लेकिन, इस युद्ध को रोकना है तो बातचीत ही एकमात्र विकल्प होगा। भारत ने समय-समय पर इसका अहसास कराया था। भारत के प्रधानमंत्री ने कहा था कि, यह समय युद्ध का नहीं है, इसका दाखिला भी राजदूत रुचिरा कंबोज ने दिया। लेकिन, यह युद्ध रोकने के लिए दोनों देशों में सम्मति करवाने के लिए सुरक्षा परिषद ने पर्याप्त कोशिश नहीं की, ऐसी कड़ी आलोचना भारतीय राजदूत ने की।

संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद की यह असफलता दर्शाती है कि, वर्तमान में सुरक्षा परिषद प्रभावहीन है। साल १९४५ में गठित संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद को वर्तमान की चुनौतियों का सामना करके दुनियाभर में शांति और सुरक्षा स्थापित करना मुमकिन नहीं हो पाय है, ऐसा आरोप भारत की राजदूत ने लगाया।

यूक्रेन युद्ध एवं अन्य समस्याओं का हल निकालने में सुरक्षा परिषद सफल नहीं हो सका है। इसकी वजह से संयुक्त राष्ट्र संघ अपना प्रभाव खो देगा ऐसा खतरा निर्माण हुआ है, यह इशारा भी भारत ने पहले ही दिया था। राजदूत रुचिरा कंबोज ने संयुक्त राष्ट्रसंघ में यह मुद्दा फिर से उठाया और भारत लगातार कर रही मांग को अनदेखा करना अब संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए भी कठिन हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के बाद दुनियाभर में काफी बड़े बदलाव हुए हैं और इन बदलावों की छवि संयुक्त राष्ट्र संघ के सबसे प्रभावी सुरक्षा परिषद में दिखाई नहीं दे रही है।

इस सुरक्षा परिषद में अब भी अमरीका, रशिया, ब्रिटेन, फ्रान्स और चीन केवल यह पांच ही स्थायी सदस्य हैं। इसकी वजह से सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों का विस्तार करने की जरुरत है और इसमें भारत का स्थान होना ही चाहिये, ऐसी भारत की भूमिका है। दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या और पांचवे स्थान की अर्थव्यवस्था से भारत की इस स्थायी सदस्यता पर नैसर्गिक अधिकार होने का दावा भारतीय नेता और राजनीतिक अधिकारी ड़टकर कर रहे हैं। इस पर अन्य देशों से काफी बड़ा समर्थन मिल रहा है। इस पृष्ठभूमि पर यूक्रेन युद्ध और अन्य समस्याओं का हल निकालने में राष्ट्र संघ असफल हुआ, इसका अहसास भारत लगातार करा रहा है और भारत के इस दावे को अन्य देशों का भी समर्थन मिल रहा है।

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