अवैध रूप से भारत में रह रहे रोहिंग्यों की खदेड़ पर मानवाधिकार सगंठनों की चिंता

नई दिल्ली/न्यूयॉर्क: भारत में अवैध तरीके से रह रहे म्यानमार के करीब ४० हजार रोहिंग्यों को फिर से म्यानमार में खदेड़ा जाएगा, ऐसे संकेत केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री किरेन रिजीजू ने दिये है। इसके बाद मानवाधिकार संगठन रोहिंग्यों के बचाव के लिए सामने आए है। भारत रोहिंग्यों को मत खदेड़े और अन्तर्राष्ट्रीय नियमों का पालन करे, ऐसा आवाहन ‘ह्यूमन राइट वाच’ और ‘एम्नेस्टी इंटरनेशनल’ इन मानवाधिकार संगठनों ने किया है। इसके पहले भी संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव एन्टीनियो गुटेरेस ने भारत के इस निर्णय पर चिंता व्यक्त की है।

म्यानमार में ९० के दशक से धार्मिक अल्पसंख्यांक इस्लामधर्मीय रोहिंग्या समुदाय को लक्ष्य किया जा रहा था। पिछले कुछ दिनों में इस हिंसा में बढ़ोतरी हुई है, जिससे हजारो रोहिंग्यों ने म्यानमार से अन्य देशों में पलायन किया है। क्योंकि म्यानमार रोहिंग्यों को अपने नागरिक मानने के लिए तैयार नहीं हैं। रोहिंग्यों मूल बांगलादेशी हैं और वह बांग्लादेश में लौट जाएँ, ऐसा म्यानमार का कहना है। रोहिंग्यों समुदाय और म्यानमार की सेना में संघर्ष की अनेक घटनाएँ सामने आई हैं। पिछले कुछ समय में लाखों रोहिंग्यों ने बांग्लादेश में शरण ली है यह बात सामने आई थी। इसके आलावा अन्य एशियाई देशों में भी हजारो रोहिंग्यों ने पनाह ली है।

भारत में भी पिछले कुछ सालों से हजारो रोहिंग्यों अवैध रूप से दाखिल हुए हैं। जम्मू-कश्मीर, हैदराबाद (तेलंगाना), राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश में रोहिंग्यों की बस्तियां हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने रोहिंग्यों को पीड़ित समुदाय की सूचि में रखा है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के ‘हाय कमिशनर ऑफ़ रिफ्यूजी’ की ओर से (यूएनएचसीआर) असी शरणार्थियों की नोंद की जाती है और उनको पहचान पत्र दिया जाता है।

लेकिन अवैध तरीके से रहनेवाले सभी रोहिंग्यों को भारत से फिर से म्यानमार में भेजा जाएगा। यूएनएचसीआर ने दर्ज किए हुए और पहचानपत्र दी गए रोहिंग्यों का भी इसमें समावेश होगा, ऐसा सोमवार को केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री किरेन रिजीजू ने स्पष्ट किया था। भारत में ४० हजार रोहिंग्यों का वास्तव्य होने की बात सामने आई है। लेकिन संयुक्त राष्ट्रसंघ ने उसमे से केवल १६,५०० लोगों को पहचानपत्र दिया था, ऐसी जानकारी रिजीजू ने दी थी।

यूएनएचसीआर अपना काम कर रही है। उनको रोका नहीं जा सकता। लेकिन शरणार्थियों की समस्या पर भारत की अलग चिंताएं हैं। इस वजह से भारत के लिए रोहिंग्यों को आश्रय देने के लिए बंधनकारक नहीं है, ऐसा भी रिजीजू ने स्पष्ट किया है। ‘रोहिंग्यों’ अवैध तरीके से भारत में दाखिल होकर रह रहे हैं। उनको यहाँ पर रहने का अधिकार नहीं है। अवैध रूप से आने वाले हर एक को वापिस लौटना पड़ेगा, ऐसा रिजीजू ने कहा है।

पिछले हफ्ते संसद में बोलते समय रिजीजू ने इस बारे में संकेत दिए थे। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को जिला स्तर पर कृति दल स्थापित करके अवैध रूप से रहने वाले विदेशी नागरिकों की पहचान कर के उनको उनके देश में भेजने के निर्देश दिए गए हैं, ऐसा एक सवाल का जवाब देते समय रिजीजू ने कहा था।

हैदराबाद पुलिस को कुछ रोहिंग्यों के ‘आयएस’ के आतंकवादियों के साथ संबंध होने की भनक लगी है। इस पृष्ठभूमि पर रोहिंग्यों को वापिस भेजने की भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है। दौरान, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भारत की इस निर्णय पर चिंता प्रकट की थी। गुटेरेस के प्रवक्ता फरहान हक़ ने इसके सन्दर्भ में भारत के साथ चर्चा की जाने वाली है, ऐसा कहा है। जान को खतरा है ऐसे ठिकानों पर दर्ज किए गए शरणार्थियों को वापस नहीं भेजा जा सकता, ऐसा हक ने कहा था।

इसके बाद मानवाधिकार संगठन भी रोहिंग्यों के बचाव के लिए सामने आई हैं। अफ़ग़ानिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, तिब्बत जैसे पडौसी देशों से आए हुए शरणार्थियों को आसरा देने का भारत का बहुत बड़ा इतिहास है, इसकी याद ह्युमन राइटस वाच (एचआरडब्ल्यू) इस मानवाधिकार संगठन ने कराई है। साथ ही भारत ने इस तरह की खदेड़ करने से पहले अन्तर्राष्ट्रीय नियमों का पालन करना चाहिए, ऐसा कहा है। इसके लिए ‘एचआरडब्ल्यू’ ने १९५१ का ‘रिफ्यूजी कन्वेशन’ और १९६७ के ‘प्रोटोकोल’ का हवाला दिया है। इसके अनुसार जहाँ शरणार्थियों की जान को खतरा हो सकता है, ऐसी जगहों पर उनको जबरदस्ती से खदेड़ा नहीं जा सकता, ऐसा ‘एचआरडब्ल्यू’ का कहना है।

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