गुवाहाटी भाग-१

हमारे भारत में जितने प्रदेश, उतनीही उस हर एक प्रदेश की अपनी अपनी विशेषताएँ। इसलिए हर एक प्रदेश का सफ़र करने का अपना एक अलग मज़ा है। भारत के किसी भी प्रदेश के अंतरंग में हम जैसे जैसे प्रवेश करते हैं, वैसे वैसे हमें कुछ न कुछ अनमोल खज़ाना प्राप्त होता रहता है। आइए, अब चलते हैं, भारत की ईशान्य दिशा में और देखते हैं, वहाँ हमें क्या मिलता है।

स्कूल में भूगोल में ब्रह्मपुत्र, काझीरंगा इस तरह के नाम पढे थे। इनके साथ साथ चाय के बाग़ानों के बारे में भी पढा था। मुझे लगता है कि अब तक आप यह जान ही गये होंगे कि हम कहाँ जा रहे हैं। जी हाँ, हम जा रहे हैं ‘असम’। असम के सबसे बड़े शहर की सैर करने। यह सफ़र लंबा है, तो क्यों न इसे सार्थक बनाया जाये।

‘गुवाहाटी’, असम राज्य का सबसे बड़ा शहर। भारत के ईशान्य में प्रवेश करने का द्वार। असम के लंबे इतिहास का केंद्रबिंदु। ब्रह्मपुत्र के तट पर बसे हुए इस शहर को ‘गौहाटी’ भी कहा जाता है।

‘ब्रह्मपुत्र’ यह एशिया की सबसे बड़ी नदी है। उसे ‘ब्रह्मपुत्रा’ भी कहा जाता है। वह है गुवाहाटी शहर के इतिहास और वर्तमान का गवाह। दर असल ‘ब्रह्मपुत्र’ यह एक महानद माना जाता है। लेकिन इसकी वजह के बारे में कोई पता नहीं है।

गुवाहाटी तक के सफ़र में हम गुवाहाटी से संबंधित ज़ानकारी प्राप्त करते हैं, जिससे कि हमारा समय भी फिजूल नहीं जायेगा।

तो हम बात कर रहे थे, ब्रह्मपुत्र इस महानद की। इस ब्रह्मपुत्र का विस्तार उसके ‘महानद’ इस विशेषण के अनुसार ही है। ब्रह्मपुत्र के प्रवाह में दो जगह द्वीप हैं और वे इतने बड़े हैं कि उनपर आबादी बस रही है। इस महानद का विस्तार कई स्थानों पर सागर जितना विशाल प्रतीत होता है।

तिबेटस्थित ‘अंग्सी ग्लेशिअर’ यह ब्रह्मपुत्र का उद्गमस्थान माना जाता है। इस महानद की कुल लंबाई लगभग १८०० मील यानी २९०० किलोमीटर्स है। कुछ जगह यह महानद ३८० फीट गहरा है। ब्रह्मपुत्र में से बोट द्वारा यातायात भी होती है। ब्रह्मपुत्र की दूसरी ख़ासियत यह है कि यह महानद उपजाऊ घाटी का निर्माण करता है। इससे यहाँ पर फ़सल बहुत होती है; लेकिन साथही बाढ का ख़तरा भी मंड़राता रहता है।

ऐसा यह महानद उसके उद्‍गम प्रदेश में ‘यार्लुंग त्सांग्पो’ इस नाम से जाना जाता है। हिमालय को पार करके जब वह अरुणाचल प्रदेश में आता है, तब उसे ‘दिहांग’ कहा जाता है। असम में उसे ‘ब्रह्मपुत्र’ कहा जाता है। गंगा के त्रिभुज प्रदेश (डेल्टा) में जाने के बाद पहले वह पद्मा और फिर मेघना नदी में मिलता है और अंत में बंगाल के उपसागर में समा जाता है।

ब्रह्मपुत्र के लौहित्य, लोहित, नाम- दाओ-फी यें नाम भी हैं।

भारतीय समाजमानस में नदियों को बहुत ही पवित्र माना जाता है और ब्रह्मपुत्र भी इसके लिए अपवाद (एक्सेप्शन) नहीं है।

तो ऐसे इस ब्रह्मपुत्र के तट पर बसी गुवाहाटी की ओर हम जा रहे हैं। गुवाहाटी लंबे अरसे तक असम के शासकों की राजधानी रही है।

असम का इतिहास बहुत ही विस्तृत है। प्राचीन समय से यह प्रदेश अस्तित्व में है। पुराने समय में इसे ‘कामरूप’ कहा जाता था।

असम की ख़ासियत है, यहाँ की उपजाऊ ज़मीन, घने बड़े जंगल, विपुल खनिज़ संपदा, विपुल प्राणिसंपदा और उसमें भी ख़ास कर हाथी और गेंड़ा ये दो प्रमुख प्राणि, जो यहाँ के जंगलों में पाये जाते है।

अन्य एक ख़ासियत है, जिसके बिना हमारें दिन की शुरुआत ही नहीं होती और वह है ‘चाय’।

असम की जलवायु चाय की फ़सल के लिए अनुकूल है यह जानने के बाद यहाँ पर चाय की फ़सल ली जाने लगी और देखते देखते यहाँ की चाय यहा नंबर एक की फ़सल बन गयी। आज भी असम की चाय मशहूर हैं। यहाँ पर चाय की जिस प्रजाति की फ़सल ली जाती है, उसका नाम है ‘कॅमेलिया आसामिका’।

काझीरंगा के अभयारण्य के बारे में तो हम सब स्कूली जीवन से जानते ही हैं।

कहा जाता है कि इस राज्य का नाम संस्कृत के ‘असम’ इस शब्द से बना है। असम यानी असमतल प्रदेश। असम के भूगोल को देखने के बाद हमें ‘असम’ यह नाम कितना अचूक है इसका ज्ञान होता है। यहाँ पर पहाड़ियाँ, खाइयाँ, घाटियाँ, नदियाँ यह सब कुछ होने के कारण यह प्रदेश सचमुच ही ‘असम’ यानी समतल न रहनेवाला प्रदेश है।

प्राचीन समय से भारत को आज़ादी मिलने तक की अवधि में भारत के ईशान्य में असम यही सबसे बड़ा प्रदेश था।

‘स्टोन एज’ से ही इस प्रदेश में मनुष्यों की आबादी बस रही थी, ऐसा इतिहास कहता है। उस ज़माने में मानव यहाँ की पहाड़ियों में बसा करते थे।

पुराणों के अनुसार कुछ समय तक दानवों ने इस प्रदेश पर कब्ज़ा कर लिया था। अहिरंग नाम के दानव के राज्य करने से दानवराज की शुरुआत होती है और उसके बाद कई दानवों ने यहाँ पर राज किया। इन्हींमें से एक था नरकासुर, जिसका वध श्रीकृष्ण ने किया था। यही है वह नरकासुर, जिसे श्रीकृष्ण ने अश्‍विन कृष्ण चतुर्दशी को मौत के घाट उतार दिया था। आज भी यह दिन दीपावलि के एक दिन यानी नरकचतुर्दशी के रूप में विख्यात हैं। नरकासुर और उसके भगदत्त नाम के बेटे ने यहा पर राज किया। भगदत्तने विदेशियों की मदद से युद्ध करना शुरू कर दिया। वह कौरवों के पक्ष में था और आख़िर अर्जुनने उसे मार दिया, यह जानकारी पुराणकथाओं से प्राप्त होती है।

जब इसे ‘कामरूप’ कहा जाता था, तब यहाँ पर दानवों या असुरों का नामोंनिशान तक नहीं था। कामरूप पर कई बलशाली राजाओं ने राज किया। इन राजाओं में से वर्मन् राजा, सलस्तंभ राजा और कामरूप के पालराजा का उल्लेख किया जाता है।

कामरूप प्रदेश का ज़िक्र रघुवंश में किया गया है, ऐसा पढने में आया। साथ ही यह भी जानकारी प्राप्त हुई कि कामरूप के राजा ने अन्य प्रदेश के किसी राजा को दिये गये उपहार में इस प्रदेश के हाथी भी थे। इससे हमें ज्ञात होता है कि तब भी यह प्रदेश हाथियों के लिए मशहूर था।

विभिन्न शासकों ने उनके शासन काल में यहाँ पर मंदिरों का निर्माण किया। इनमें से अधिकतर राजाओं की राजधानी गुवाहाटी ही थी।

ह्युएन-त्संग भी कामरूप आया था यह उसके सफ़रनामे से ज्ञात होता है।

असम के इतिहास के अगले पड़ाव में अहोम (/आहोम) और कोच इन दो महत्त्वपूर्ण राजवंशों का उल्लेख मिलता है। ये दोनों राजवंश इतिहास में काफ़ी प्रभावशाली माने जाते हैं।

राज्य पर सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से यहाँ पर कई युद्ध भी हुए। प्रारंभिक काल में पड़ोसी राजाओं के साथ होनेवाला यह संघर्ष आग़े चलकर विदेशियों के साथ होने लगा।

अन्य देशों से आनेवाले शासकों ने यहाँ पर सत्ता जमाने के लिए कई बार आक्रमण किये। कई आक्रमकों को असम के शासकों ने परास्त कर दिया। लेकिन अंग्रेज़ नाम के विदेशी सिर्फ़ यहाँ पर ही नहीं, बल्कि सारे भारत पर कब्ज़ा कर बैठे।

असम पर कब्ज़ा करने से अँग्रज़ों के लिए संपूर्ण ईशान्य भारत पर कब्ज़ा करना आसान हो गया। असम में अँग्रेज़ों के खिलाफ़ कई क्रांतिकारियों ने आंदोलन भी किये।

अब इतने लंबे सफ़र में इतिहास जैसे विषय पर चर्चा करना क्या आवश्यक है? हम जिस गुवाहाटी शहर जा रहे हैं, वह पुराने समय से अस्तित्व में है और वह असम की अधिकतर समय राजधानी भी रहा है इसी कारण असम और गुवाहाटी का इतिहास एक दुसरे के साथ अटूट रूप में जुड़ा हुआ है और इसीलिए इस इतिहास की जानकारी लेना भी आवश्यक है।

अरे देखिए, वह ब्रह्मपुत्र का प्रवाह यहीं से साफ़ साफ़ दिखायी देने लगा है। लगता है हमारा गंतव्य स्थल क़रीब आ गया है। चलिए, तो फिर गुवाहाटी शहर में जाकर पहले थोड़ा विश्राम करते है।

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