गुवाहाटी भाग-५

काझीरंगा में जिस तरह दिन भर जानवरों की चहल पहल रहती हैं, उसी तरह रात में भी यहाँ पर जानवरों की चहल पहल होती हैं। क्योंकि बाघ जैसे जानवरों का भी यह महत्त्वपूर्ण आवासस्थल है। भारत में घट रही बाघों की संख्या यह फिलहाल एक चिन्ता का मुद्दा बन गया है। ‘काझीरंगा नॅशनल पार्क’ में रहनेवाली बाघों की संख्याघनता (डेन्सिटी) को देखते हुए इस नॅशनल पार्क को बाघों की सर्वाधिक डेन्सिटीवाला प्रदेश घोषित किया गया है। सन २००६ में इस नॅशनल पार्क को ‘टायगर रिझर्व्ह’ का दर्जा दिया गया है। प्राणिविशेषज्ञों ने जब यहाँ के बाघों का अध्ययन किया, तब एक बात की ओर उनका ध्यान आकर्षित हुआ। काझीरंगा के बाघ काफ़ी हट्टेकट्टें पाये गये। शायद यहाँ पर उनके लिए भक्ष्य की विपुलता है यह इसकी एक वजह हो सकती है। यहाँ के बाघों में रॉयल बेंगाल टायगर, इंडियन लेपर्ड एवं क्लाऊडेड लेपर्ड का समावेश होता है।

काझीरंगा का र्‍हायनो जिस तरह मशहूर है, उसी तरह यहाँ के हाथी भी। पुराने समय से असम हाथियों के लिए मशहूर है, यह तो हम पढ़ ही चुके हैं। सन २००५ के आसपास यहाँ पर हाथियों की संख्या एक हज़ार से भी अधिक थी।

हाथियों के साथ ही काझीरंगा में पाया जानेवाला एक और खास जानवर है, ‘वाइल्ड एशियन वॉटर बफेलो’। लगभग १२०० किलो वजनवाले इन बफेलोज़ के सिंग बहुत लंबे रहते हैं। उनकी लंबाई दो मीटर्स तक भी हो सकती है।

जहाँ पर काझीरंगा नॅशनल पार्क बसा हुआ है, वहाँ समतल मैदान से लेकर छोटे बड़े झीलों से लेकर विशाल ब्रह्मपुत्र तक सब कुछ मौजूद है। इसलिए यहाँ पर छोटी घास से लेकर ऊँचे पेड़ों तक वनस्पतियों के विभिन्न प्रकार दिखायी देते हैं।

यहाँ के प्रदेश में तीनों ऋतुओं को अच्छी तरह अनुभव किया जा सकता है। बारिश के मौसम में अक़सर यहाँ के नदियों में बाढ़ आ जाती है, जिस वजह से बरसात में काझीरंगा के जलमय हो जाने का नज़ारा दिखायी देता है। मान्सून के मौसम में काझीरंगा नॅशनल पार्क सैलानियों के लिए बंद रहता है।

‘जीवो जीवस्य जीवनम्’ इस तत्त्व के आधार पर ही सृष्टि का चक्र चलता रहता है। इसका सुन्दर उदाहरण हमें ऐसे नॅशनल पार्कस् में देखने मिलता है। सृष्टिचक्र संचालित करनेवाला यह तत्त्व प्राणि-वनस्पति और मानव इन सृष्टिघटकों के बीच का सन्तुलन बनाये रखने का काम करता है।

काझीरंगा के महत्त्वपूर्ण एवं खास माने जानेवाले जानवरों को तो हमने देख लिया, लेकिन इसके अलावा भी कई प्राणियों और पंछियों को भी हम यहाँ देख सकते हैं। चलिए, तो उन्हें भी क्यों न देखा जाये!

लेकिन इसलिए हमें फिर एक बार जंगल सफ़ारी पर चलना होगा और चारों ओर नज़र रखनी होगी। क्योंकि हमें यहाँ के प्राणियों के साथ पंछियों को भी देखना है।

इस नॅशनल पार्क में प्राणियों की कुल ३५ प्रजातियाँ पायी जाती हैं। इन ३५ प्रजातियों में से १५ प्रजातियों को दुर्लभ माना जा रहा है। इन प्रजातियों का भली भाँति संवर्धन एवं संरक्षण न किया जाये तो उनका अस्तित्व इस पृथ्वी पर से नष्ट होने की आशंका जतायी जा रही है। यहाँ पर पंछियों की कुल ४७९ प्रजातियाँ पायी जाती हैं। इनमें यहाँ पर स्थायी रूप में रहनेवाले पंछियों के साथ साथ स्थलान्तरित होनेवाले पंछियों का भी समावेश है। इनमें से कई प्रजातियों का अस्तित्व आज खतरे में माना जा रहा है।

ईस्टर्न स्वॅम्प डिअर, वाइल्ड बोअर, स्लोथ बेअर, जंगल कॅट, फिशिंग कॅट एवं लेपर्ड कॅट ये कॅट्स के प्रकार, इंडियन ग्रे नेवला, स्मॉल इंडियन नेवला इनके साथ साथ सीयार, भेड़िया, गिलहरी, चमगादड़ जैसे जंगल में हमेशा पाये जानेवाले जानवर भी यहाँ पर हैं।

पंछियों में शानदार लेकिन दुर्लभ रहनेवाले गरुड को शायद किसी ने देखा हो। काझीरंगा में गरुडों की भी कई प्रजातियाँ है, ऐसा कहा जाता है। यदि हमारी क़िस्मत साथ देती है, तो शायद हमें भी गरुड दिखायी देगा।

प्राणी-पक्षीसृष्टि में सन्तुलन रखने का कार्य करनेवाले पंछियों में से एक महत्त्वपूर्ण पंछी है, गिध्द। लेकिन आज गिध्द की प्रजाति खतरे में पड़ गयी है। किसी ज़माने में यहाँ पर गिध्दों की सात प्रजातियाँ पायी जाती थी, ऐसा कहा जाता है।

साथ ही यहाँ बतख (डक्स्), किंगफिशर, शॅन्क्स, क्रेन्स जैसे पंछी दिखायी देते हैं।

छोटी सी घास से लेकर ऊँची एलिफंट घास तक कई प्रकार की घास यहाँ पर दिखायी देती है। घास में से रेंगते हुए जानेवाले कई जानवर भी यहाँ पर हैं। उनमें से प्रमुख हैं-रेटीक्युलेटेड पायथॉन, रॉक पायथॉन और कोब्रा। साथ ही यहाँ पर कई तरह के खास कछुए भी दिखायी देते हैं।

अब जंगल के ऊँचे पेड़ों पर बंदरों जैसे जानवरों का रहना तो स्वाभाविक बात है। लेकिन काझीरंगा में ‘एप’ क़िस्म के बंदर दिखायी देते हैं। गोरिला, चिंपांझी का समावेश ‘एप’ इस संज्ञा में होता है। इससे आप यह जान गये होंगे कि एप्स कैसे दिखायी देते हैं। भारत में पाया जानेवाला ‘हूलॉक गिब्बॉन’ नाम का एप यहाँ पाया जाता है। कहा जाता है कि यहाँ की नदियों में डॉल्फीन्स भी पाये जाते है।

यहाँ बातों में हमारी जंगल सफ़ारी पूरी भी हो गयी और हमारी वापसी की यात्रा भी शुरू हो गयी। चलिए, तो इस वनस्पति-प्राणीसृष्टि से विदा लेकर हम पुन: गुवाहाटी की ओर प्रस्थान करते हैं।

सन २००५ में काझीरंगा नॅशनल पार्क की स्थापना के सौ वर्ष पूरे हो जाने के उपलक्ष्य में यहाँ पर एक शानदार समारोह का आयोजन किया गया था।

काझीरंगा में होनेवाले एक उत्सव के बारे में जानकारी प्राप्त करना तो रह गया। साधारण रूप से फरवरी के महीने में यहाँ पर हाथियों के महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इसे ‘एलिफंट फेस्टिवल’ कहा जाता है। इस फेस्टिवल में हाथियों को पूरी तरह सजाया जाता है और उनके लिए कई प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है। इस एलिफंट फेस्टिवल में एक साथ हम कई हाथियों को देख सकते हैं।

गुवाहाटी की ओर हम आगे बढ़ रहे हैं। असम में कुदरती खूबसूरती की कोई कमी नहीं है, इसलिए चारों ओर खूबसूरत नज़ारें हमें दिखायी दे रहे हैं।

वहाँ कुछ ही दूरी पर कुछ लिखा हुआ दिखायी दे रहा है। आइए, देखते हैं।

मानस नॅशनल पार्क’। अब बोर्ड पर लिखे इन अक्षरों को पढ़ते ही हमारे मन में यह विचार आता है कि एक और नॅशनल पार्क देखने का अवसर मिल रहा है, तो इसे गँवाना मुनासिब नहीं है। यहाँ से गुवाहाटी शहर महज़ १७६ कि.मी. की दूरी पर है। आइए, तो इतमिनान से इस नॅशनल पार्क की भी एक सैर करते हैं और फिर गुवाहाटी चलते हैं।

देखिए, बातें करते हम ‘मानस नॅशनल पार्क’ के प्रवेशद्वार तक पहुँच भी गये। इस नॅशनल पार्क को भी युनेस्को ने ‘नॅशनल हेरिटेज’ का दर्जा दिया है।

इस पार्क में से बहनेवाली ‘मानस’ नदी के नाम से ही इस पार्क को ‘मानस’ यह नाम दिया गया है। यह मानस नदी ब्रह्मपुत्र की एक प्रमुख शाखा है।

कुल पाँच जिलों में यह पार्क फैला हुआ है। कोक्राझार, चिरंग, बक्सा, उदलगुरी और दर्रंग ये उन पाँच जिलों के नाम हैं। अक्तूबर १९२८ में इसे सॅन्कचरी का दर्जा दिया गया।

असम रूफ टर्टल, पिग्मी हॉग, हिस्पिड हेर और गोल्डन लंगूर जैसे जानवर इस नॅशनल पार्क की खासियत है।

अरे, लेकिन देखिए तो! सामने पश्‍चिमी क्षितिज पर सूर्य ढलने लगा है। अब थोड़ी ही देर में सूर्यनारायण यहाँ से प्रस्थान करेंगे। तो फिर हमें भी थोड़ा बहुत विश्राम करना ही चाहिए।

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