गुवाहाटी भाग-७

भरपूर कुदरती सुन्दरतायुक्त असम प्रदेश में आज भी कई प्रथाओं एवं परंपराओं को जतन किया गया हैं। असम के जनजीवन में ये बातें बड़ी ही अहमियत रखती हैं। मेहमान-नवाज़ी के मामले में मशहूर रहनेवाले असमवासियों की दृष्टि से पान-सुपारी, ‘गमोसा’ नाम का एक वस्त्र और ‘कांस्य’ नामक धातु (मेटल) से बनाया गया ‘क्सोराइ’ नाम का एक तरह का पात्र (बर्तन) बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं।

अब भी गुवाहाटी शहर तक पहुँचने में काफ़ी देर है। चलिए, तो सफ़र में असम के सांस्कृतिक जीवन की जानकारी प्राप्त करते हुए आगे बढते हैं।

इस प्रदेश को कुदरत का वरदान मिला हुआ है और इसीलिए यहाँ पर वन्य संपदा के साथ साथ भरपूर खनिज संपदा भी पायी जाती है।

बाँस और बेंत से रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल की जानेवाली कई वस्तुएँ तथा डेकोरेटिव्ह चीज़ें भी यहाँ पर बनायी जाती हैं। असम में खेतों में काम करनेवाले लोगों के सिर पर एक सुन्दर सी बड़ी हॅट दिखायी देती हैं। बाँस से बनायी जानेवाली ‘जापि’ नाम की यह हॅट ही यहाँ के कारीगरों की कुशलता का परिचय देती है।

बाँस और बेंत से बनायी जानेवाली चीज़ों के साथ साथ लकड़ी पर नक़्काशी काम करके बनायी गयी वस्तुओं को भी यहाँ बनाया जाता है। ‘पेंटिंग्ज़’ यह कलाप्रकार भी असम में पुराने समय से चला आ रहा है। असम के किसी राजा ने राजा हर्षवर्धन को दिये हुए नज़राने में कई सुन्दर पेंटिग्ज़ का भी समावेश था, ऐसा उल्लेख मिलता है।

यहाँ के निवासी पुराने समय से पीतल और कांस्य (ब्रास ओर बेल मेटल) से बनी वस्तुओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। गुवाहाटी स्थित संग्रहालय में हमें इस बात की झलक देखने मिलती है।

‘खट् खट् खट् खट्’ इस तरह की आवाज़ करनेवाला करघा जब चलता है, तब करघे पर काम करनेवाले कारीगर की मेहनत वस्त्र के रूप में साकार होती है।

आज भी असम के प्रमुख उद्योगों में से एक है – करघे पर वस्त्र बनाना।

वस्त्रों के कई प्रकार यहाँ प्रचलित है। उनमें से सिल्क के वस्त्र यानी रेशमी वस्त्र मशहूर है। रेशम के कीड़ों से रेशम बनती है और हर प्रकार के रेशम की अपनी खासियत रहती है।

यहाँ बनाये जानेवाले सिल्क को ‘असम सिल्क’ कहा जाता है। इसमें तीन क़िस्में होती हैं – मुगा सिल्क, पट सिल्क और एरी सिल्क।

मुगा सिल्क यह सिर्फ़ असम में बनती है, क्योंकि इस सिल्क का निर्माण करनेवाले कीड़ें असम में ही पाये जाते हैं। कुदरती सुनहरे रंगवाली इस सिल्क की अपनी एक चमक रहती है और वह टिकाऊ भी रहती है। इस सिल्क के धागों को ‘डाय’ नहीं किया जा सकता यानी रंगा नहीं जा सकता और इसीलिए उनके कुदरती रूप में ही उनसे वस्त्र बनाये जाते हैं। मुगा सिल्क से बननेवाले किसी भी वस्त्र का रंग सुनहरा ही होता है। ऐसा भी कहते हैं कि जितना इस वस्त्र को धोया जाता है, उतना ही इसका रंग खिलता रहता है।

इन तीनों सिल्क के साथ गत कुछ सदियों से जुड़ा हुआ है ‘सुआल्कुची’ नाम का एक गाँव। असम सिल्क से वस्त्रनिर्माण करनेवाले ‘सुआल्कुची’ को ‘मँचेस्टर ऑफ असम’ भी कहा जाता है।

गुवाहाटी से चंद ३५ किलोमीटर्स पर बसे हुए और ब्रह्मपुत्र के उत्तरी तट पर स्थित इस ‘सुआल्कुची’ गाँव का वस्त्रनिर्माण का इतिहास शुरु होता है, सतरहवीं सदी से।

इससे पहले भी कला-कौशल्य के तरह तरह के व्यवसाय यहाँ पर चल ही रहे थे, लेकिन समय के एक पड़ाव पर ‘सुआल्कुची’ की पहचान बिलकुल ही बदल गयी ओर यह असम सिल्क के वस्त्रनिर्माण में अग्रसर बन गया।

इस गाँव के लगभग ७० प्रतिशत निवासी आज भी सिल्क वस्त्रनिर्माण के उद्योग में हैं।

महात्मा गाँधीजीने भी यहाँ के कारीगरों की प्रशंसा की थी, ऐसा भी पढने में आया था। हुआ यूँ कि सन १९४६ कीजनवरी में गाँधीजी यहाँ पधारे थे और उस समय उन्हें वस्त्र पर अंकित किया गया उन्हीं का चित्र उपहार स्वरूप दिया गया। वह चित्र इतना हुबहू बनाया था कि उसे देखकर गाँधीजी ने यहाँ के कारीगरों की सराहना की थी।

असम सिल्क में मुगा सिल्क के साथ साथ पट सिल्क तथा एरी सिल्क को भी महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

‘पट सिल्क’ को ‘मलबेरी सिल्क’ भी कहा जाता है। यह रेशम जिन कीड़ों से बनता है, उन कीड़ों की परवरिश ‘मलबेरी’ नाम की वनस्पतियों के पत्तों पर होती है। यह सिल्क सफ़ेद रंग की रहती है।

अब ‘एरी सिल्क’ के बारे में। इस सिल्क को ‘नॉन व्हॉयलेंट सिल्क’ भी कहा जाता है। इसकी वजह यह है कि इस रेशम को बनानेवाले कीड़ों को किसी भी तरह की क्षति न पहुँचाते हुए इसे प्राप्त किया जाता है।

इस सिल्क का निर्माण करनेवाले कीड़ें एरंड के पत्तों पर बढते हैं, इसलिए इसे ‘एण्डी’ या ‘एरण्डी सिल्क’ भी कहते हैं। असम की भाषा में एरण्ड को ‘एरा’ कहा जाता है और इसीलिए इस पेड़ पर परवरिश किये जानेवाले कीड़ों से मिलनेवाली सिल्क को ‘एरी’ कहा जाता है।

चीमड़ एवं मज़बूत रहनेवाला यह सिल्क गर्म रहता है, यह इसकी एक खासियत है और इसीलिए इस सिल्क का इस्तेमाल शाल, ब्लँकेट, जॅकेट्स बनाने के लिए भी किया जाता है। कहा जाता है की यह सिल्क जाड़े के दिनों में गर्मी देता है, वहीं गरमियों में ठण्डक देता है।

कुदरत के साथ अटूट रूप से जुड़े हुए यहाँ के लोकजीवन में नृत्य का भी विशेष महत्त्व है। असम के विभिन्न इलाक़ों में विभिन्न प्रकार के नृत्य किये जाते हैं। यहाँ की भाषा को हम स्थूल रूप में असमिया भाषा कहते हैं, लेकिन असमिया भाषा के साथ साथ अन्य बोलियाँ भी यहाँ बोली जाती हैं। प्रत्येक जनसमूह की अपनी एक बोली है। यहाँ असमिया भाषा के साथ साथ बोडो और बंगाली भाषाएँ भी प्रमुख रूप से बोली जाती हैं।

बिहू’ नाम का उत्सव यहाँ के जनजीवन का एक अविभाज्य अंग है। साल में तीन बार यह मनाया जाता है। इसमें खास नृत्य और गीत भी प्रस्तुत किये जाते हैं। उन्हें बिहू नृत्य और बिहू गीत कहा जाता है।

भारत के कई प्रदेशों में अतिथि का स्वागत करने के लिए उसे पान-सुपारी देने की पद्धति है। असम के जनजीवन में आज भी पान-सुपारी का महत्त्व बिलकुल वैसा ही है। यहाँ पर पान-सुपारी यह स्वागत के साथ साथ सम्मानदर्शक भी माना जाता है और यह मित्रतापूर्ण संबंधों का परिचय भी माना जाता है।

अब अन्त में इस लेख के प्रारंभ में वर्णित असम की दो खासियतों के बारे में।

‘गमोसा’ यह एक वस्त्रप्रकार है। एक सफ़ेद रंग के चौकोर आकार के कपड़े पर तीनों तरफ़ लाल रंग की बॉर्डर रहती है और चौथी बाजू को लाल रंग के धागों से नक़्काशी बनायी गयी होती है। साधारणतः गमोसा यह सूती यानी कॉटन का वस्त्र रहता है या कभी सिल्क से भी बनाया जाता है।

गमोसा का असम निवासियों के जीवन में जो उपयोग किया जाता है, उसे देखने पर हमारी समझ में यह आता है की यह उनके रोजमर्रा के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

कुछ लोगों की राय में भगवान के पवित्र ग्रन्थ पर आच्छादन के रूप में गमोसा इस वस्त्र का उपयोग किया जाता है।

रोजमर्रा के जीवन में सुबह से ही गमोसा का इस्तेमाल किया जाता है साथ ही किसी मेहमान या बुज़ुर्ग को सम्मानित करने के लिए भी गमोसा का उपयोग किया जाता है।

‘क्सोराइ’ यानी स्टँड पर रखा गया पात्र, जिसका उपयोग ट्रे की तरह किया जाता है। पारंपरिक रूप में क्सोराइ नाम का यह पात्र ‘बेल मेटल’ से यानी कांस्य धातु से बनाया जाता है। आजकल अन्य धातुओं से भी इसे बनाया जाता है।

ईश्‍वर को प्रसाद चढाने से लेकर मेहमानों को सम्मानित करने तक क्सोराइ का उपयोग किया जाता है। कभी इस पात्र पर ढक्कन रहता है, तो कभी नहीं।

देखिए, बातें करते करते हम गुवाहाटी में दाखिल हो भी गये। मग़र अब भी असम की कुछ विशेषताओं के बारे में जानकारी प्राप्त करना बाक़ी है। तो फिर थोड़ी देर तक विश्राम करके उसे देखेंगे।

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