गुवाहाटी भाग-२

वैसे देखा जाये तो गुवाहाटी और ब्रह्मपुत्र का साथ काफ़ी पुराना है। प्राचीन काल में जिसे ‘प्राग्-ज्योतिषपुर’ कहा जाता था, वह गुवाहाटी शहर ब्रह्मपुत्र के दक्षिणी तट पर बसा है। इस कुदरती सुन्दरता से भरे हुए शहर को पहाड़ी श्रृंखलाओं की पार्श्‍वभूमि भी प्राप्त है।

ब्रह्मपुत्र के जल से और यहाँ पर होनेवाली भारी बारिश के कारण यह प्रदेश हराभरा रहता है लेकिन यहाँ का गर्मियों का मौसम भी तीव्र रहता है। इस शहर में हर मोड़ पर बहुत क़रीब से ब्रह्मपुत्र महानद की धारा हमारे साथ रहती है, यह यहाँ की खासियत है।

ईशान्य भारत का प्रवेशद्वार कहे जानेवाले इस गुवाहाटी शहर में दाखिल होने से पहले ही हम असम राज्य और ब्रह्मपुत्र से परिचित हो चुके हैं। अब विश्राम करने के बाद चलिए इस शहर की सैर करने निकलते हैं।

‘गुवाहाटी’ यह शब्द असमिया भाषा के दो शब्दों से बना हुआ है। असमिया भाषा के इन शब्दों का अर्थ है – सुपारी का बाज़ार।

इस शहर में मन्दिरों की संख्या भी का़फ़ी होने से इसे ‘मन्दिरों का शहर’ भी कहा जाता है। यह शहर ईशान्य भारत का एक महत्त्वपूर्ण शैक्षणिक एवं औद्योगिक केंद्र भी है।

यहाँ पर आबादी कब से बस रही है यह कहना तो दर असल मुश्किल है। पुराणों में, लोककथा-कहानियों में और ऐतिहासिक दस्तावेज़ों में इस शहर का ज़िक्र विभिन्न कालखण्डों में किया गया है। इन सब उल्लेखों से यह ज्ञात होता है कि गुवाहाटी शहर पुराने समय से कई राजाओं की राजधानी का शहर रह चुका है। पुराने समय से यह शहर कई पहलुओं से महत्त्वपूर्ण रहा है।

‘अंबारी’ में की गयी खुदाई से यह अनुमान लगाया गया है कि ईसा पूर्व दूसरी सदी से लेकर ईसा की तीसरी सदी तक के समय में यहाँ पर आबादी बसा करती थी। पुरातत्त्व विशेषज्ञों की राय में गुवाहाटी शहर में प्राचीन समय से आबादी बसा करती थी, ऐसे सबूत मिले हैं।

इन सब बातों से यह ज्ञात होता है कि विभिन्न नामों से ही सही, लेकिन गुवाहाटी का अस्तित्व प्राचीन समय से था। पुराने समय में इसे ‘प्राग्-ज्योतिषपुर’ कहा जाता था। बीच के किसी कालखण्ड में इसका नाम ‘दुर्जय’ भी था।

असम का इतिहास और गुवाहाटी का इतिहास एक दूसरे के साथ अटूट रूप से जुड़ा हुआ है, क्योंकि असम पर राज करनेवाले कई राजाओं की राजधानी गुवाहाटी थी।

छठीं सदी से इस शहर को ‘प्राग्-ज्योतिषपुर’ कहा जाता था। पाल और वर्मन राजाओं के कार्यकाल में यह प्रदेश काफ़ी महत्त्वपूर्ण रहा था। ये राजा कामरूप प्रदेश के शासक थे।

सातवीं सदी में यहाँ पर आये ह्युएन-त्संग इस चिनी मुसाफ़िर के सफ़रनामें में उसने कहा है कि उस वक़्त यह शहर ‘भास्करवर्मा’ नाम के राजा के अधिपत्य में था। तब इस शहरका विस्तार लगभग १९ किलोमीटर्स तक था और यह एक विकसित व्यापारी केन्द्र भी था। साथ ही यहाँ पर एक सुसज्जित एवं प्रमुख नौसेना अड्डा (नेव्हल बेस) था। कुल मिलाकर ३०,००० युद्धनौकाएँ और उनपर तैनात कुशल नौचालक अधिकारी ऐसा इस नौसेना अड्डे का स्वरूप था। ये अधिकारी सागरी मार्गों का अच्छा खासा ज्ञान रखते थे।

खुदाई में मिले अवशेषोंसे इस बात की पुष्टि होती है कि यह शहर बहुत ही महत्त्वपूर्ण था। नौंवीं सदी से लेकर ग्यारहवीं सदी तक कई पहलुओं से इस शहर का यह स्थान बरक़रार था।

कामता वंश के राजा जब यहाँ पर राज कर रहे थे, तब यह शहर काफ़ी विकसित हो चुका था। लेकिन कामता राजवंश की सत्ता का अस्त होते ही इस शहर का व्यापारी केन्द्र इस दृष्टि से होनेवाला महत्त्व घटता गया और बाद में वह केवल फ़ौजी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण शहर बना रहा।

उसके बाद यहाँ पर कोच और अहोम (आहोम) इन दो राजवंशों का राज था। इनका शासनकाल काफ़ी दौड़-धूप भरा रहा, क्योंकि इस दौरान कई विदेशी आक्रमक इस इला़के पर अपना कब्ज़ा जमाने की कोशिश में थे और शायद इसी वजह से यह फ़ौजी दृष्टिकोण से एक महत्त्वपूर्ण शहर बन गया।

इतिहास में उल्लेख मिलता है कि मुग़लों जैसे विदेशियों ने असम के कुछ इलाक़ों पर कब्ज़ा करने की कोशिशें कीं और कुछ जगह उन्हें क़ामयाबी मिलीं, तो कुछ जगह उन्हें हारना पड़ा। जिन इलाक़ों को वे जीत नहीं सके, उनमेंसे ही एक था, गुवाहाटी।

अहोम राजाओं के शासनकाल में एक-दो बार नहीं, बल्कि १७ बार मुग़लोंने असम पर कब्ज़ा जमाने की कोशिशें कीं। लेकिन अहोम राजा के सेनापति ने उनके मनसूबों को नाक़ाम कर दिया। अहोम राजा के बीर लछित बोरफुकन इस सेनापति का नाम गुवाहाटी और असम के इतिहास में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। इनकी युद्धकुशलता के कारण दुश्मन को बार बार परास्त करना मुमक़िन हुआ, ऐसा इतिहास कहता है।

इन युद्धों में से ‘सराईघाट’ की जंग यादग़ार मानी जाती है। असम और गुवाहाटी के इतिहास में इसे अहम माना जाता है। गुवाहाटी के पास ही रहनेवाले ‘सराईघाट’ में हुई जंग में विदेशियों को हराने में अहोम के सेनापति और उनकी सेना की महारत ही प्रमुख कारण थी, ऐसा भी कहा जाता है।

आज के गुवाहाटी शहर में उस वक़्त के अहोम के सेनापति का निवास था और इसी शहर में रहनेवाला ‘दोप्दार’ यह उनके दरबार का स्थान था।

अँग्रेज़ों ने भारत में दाखिल होने के बाद उन्नसवीं सदी के पूर्वार्ध में ही असम के लगभग आधे हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया था, लेकिन बाक़ी के असम पर अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए उन्हें बीसवीं सदी की शुरुआत तक इंतज़ार करना पड़ा। अँग्रेज़ों के ज़माने में इस शहर को ‘गोहाटी’ कहा जाता था।

भारत के आज़ाद होने के बाद ईशान्य भारत में कुल सात राज्य बन गये। असम और अन्य छह राज्यों को मिलाकर ‘सेव्हन सिस्टर स्टेटस्’ कहा जाता है।

इस गुवाहाटी शहर का एक हिस्सा ‘दिसपूर’ इस नाम से अस्तित्व में आ गया। सन १९७३ में दिसपूर को असम की राजधानी बनाया गया।

देखिए, ब्रह्मपुत्र के किनारे पर से सैर करने निकले तो थे, लेकिन इतिहास में ही हम खो गये। लेकिन किसी शहर में दाखिल होने से पहले उसके इतिहास की जानकारी रखना यह ज़रूरी भी है।

इस शहर के नाम में ही ‘हाट’ यानी बाज़ार यह शब्द है और इस शहर में कई नामों के बाज़ार भी है।

शहर के केन्द्रवर्ती इला़के का पान बाज़ार, जहाँ महत्त्वपूर्ण सरकारी कचहरियाँ, कुछ महत्त्वपूर्ण शिक्षा संस्थाएँ हैं। शहर के केन्द्रवर्ती इला़के में पलटन बाज़ार, फॅन्सी बाज़ार भी है। पुराने समय में फॅन्सी बाज़ार को फाँसी बाज़ार कहा जाता था, क्योंकि यहाँ पर गुनाहग़ारों को फाँसी देनेवाली जेल थी। लेकिन समय की धारा में इसका नाम फॅन्सी बाज़ार हो गया। इन प्रमुख बाज़ारों के साथ कुछ अन्य बाज़ार भी इस शहर में हैं।

‘दिघालि पुखुरी’ इस नाम से क्या आपकी समझ में कुछ आ रहा है? नहीं ना! तो चलिए, वहाँ जाकरही देखते हैं। यह एक बड़ी झील है, जिसे खोदकर बनाया गया है। कहा जाता है कि भगदत्त नाम के इस प्रदेश के राजा की भानुमती नाम की बेटी के स्वयंवर के समय इसका निर्माण किया गया।

गुवाहाटी का इतना प्रदीर्घ इतिहास और आज की हमारी सैर! अब इसके बाद असम की वह मशहूर चाय पीने के लिए एक ‘ब्रेक’ लेना ज़रुरी है। है ना!

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