युरोपीय महासंघ की सदस्यता को लेकर ब्रिटन के पीछे पीछे अब जर्मनी एवं फ़्रान्स में भी सार्वमत की माँग

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निर्वासितों के झूँड़ों की समस्या युरोपीय महासंघ की धज्जियाँ उड़ायेगी, यह डर सच होने के आसार दिखायी देने लगे हैं। ब्रिटन महासंघ में रहेगा या नहीं, इसका निर्णय होने की घड़ी अब केवल ९० दिनों पर आयी है और महासंघ के आधारस्तंभ ही माने जानेवाले जर्मनी और फ्रान्स में भी महासंघ की सदस्यता के मुद्दे पर सार्वमत लेने की माँग ज़ोर पकड़ रही है । जर्मनी में ‘आल्टरनेटिव्ह फॉर जर्मनी’ इस पक्ष की नेता ने सार्वमत की खुलेआम माँग की है । वहीं, फ्रान्स के एक सर्वेक्षण में, पूरे ५३ प्रतिशत नागरिकों ने सार्वमत लेने को अपना समर्थन दिया है ।

ब्रिटन में २३ जून को, ‘युरोपीय महासंघ में रहना है या नहीं’ इस मुद्दे पर सार्वमत का आयोजन किया गया है । ‘ब्रिटन महासंघ से बाहर हो जाये’ (ब्रेक्झिट) ऐसा मत रहनेवालों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है । अपितु ब्रिटन यदि महासंघ से बाहर हो जाता है, तो उसे भारीभरकम नुकसान सहन करना पड़ेगा, ऐसे दावे भी किये जा रहे हैं । हाल ही में, ‘कॉन्फेडरेशन ऑफ ब्रिटीश इंडस्ट्री’ (सीबीआय) ने तैयार किये एक रिपोर्ट में ऐसी गंभीर चेतावनी दी गयी है कि ‘जून में होनेवाले सार्वमत में यदि ब्रिटन महासंघ से बाहर हो गया, तो देश की अर्थव्यवस्था को पूरे १०० अरब पौंडों का नुकसान हो सकता है । महासंघ से बाहर हो जाने पर ब्रिटन का विकासदर सन २०२० तक पाँच प्रतिशत से कम हो सकता है और उसी समय पूरी १० लाख नौकरियों से हाथ धोना पड़ेगा ।’

इस प्रकार इस सार्वमत को लेकर ब्रिटन में दोनों तरफ़ से ज़ोरदार आरोप-प्रत्यारोप जारी हैं । उसी समय ब्रिटन के इस सार्वमत की तथा उसके संभाव्य नतीजे की गूँजें युरोप के अन्य देशों में भी सुनायी दे रही हैं ।

युरोप में निर्वासितों की समस्या ने भी बहुत ही गंभीर रूप धारण किया होकर, इस समस्या ने महासंघ के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा किया है, ऐसा कहा जा रहा है । जर्मनी तथा फ्रान्स में से सार्वमत की माँग की जाना, यह ब्रिटन में हो रहा सार्वमत एवं वहाँ निर्वासितों की समस्या पर रहनेवाला असंतोष, इनपर ज़ाहिर की गयी प्रतिक्रिया का ही भाग दिखायी दे रहा है ।

जर्मनी में कुछ दिन पूर्व हुए चुनावों में चॅन्सेलर मर्केल के सत्ताधारी शासन को ज़बरदस्त झटका लगा था । इन चुनावों में कट्टर दाहिनी विचारधारा की ‘आल्टरनेटिव्ह फॉर जर्मनी’ (एएफडी) इस पार्टी को बड़ी सफलता मिली थी । युरोपीय महासंघ का विरोध करनेवाली इस पार्टी ने, मर्केल ने निर्वासितों के मुद्दे पर अपनायी हुई ‘ओपन डोअर पॉलिसी’ का प्रखर विरोध किया था । इस पार्टी की उपाध्यक्षा बेट्रिस व्हॉन स्टॉर्क ने, निर्वासितों के झूँड़ एवं युरो इन मुद्दों का कारण बताकर ठेंठ सार्वमत की माँग की है ।

‘शेन्गेन यंत्रणा ढह गयी है । इसी यंत्रणा के माध्यम से युरोप की सीमाएँ सुरक्षित थीं । अब वे उतनी सुरक्षित नहीं रहीं । अपने लिए क्या उचित है और क्या अनुचित, यह तय करने का अधिकार हर एक सदस्य देश को है । उस अधिकार का इस्तेमाल करने का एकमात्र मार्ग है, ब्रिटन की तरह ही सार्वमत लिया जाना । निर्वासितों की समस्या का सामना करने के लिए पाबंदियाँ लगायी जायें या नहीं, युरो चाहिए या नहीं, महासंघ में रहना है या नहीं इन बातों का निर्णय जर्मन जनता भी खुद कर सकती है और इसके लिए सार्वमत यही उचित मार्ग है । जर्मन जनता को विकल्प की ज़रूरत है, उन्हें क्या चाहिए और क्या नहीं, यह पूछने की आवश्यकता है’ ऐसे ठेंठ शब्दों बेट्रिस व्हॉन स्टॉर्क ने जर्मनी में सार्वमत लेने की माँग की ।

सार्वमत की माँग करते हुए ही, उन्होंने मर्केल की नीतियों की तथा तुर्की की महासंघ की संभाव्य सदस्यता की भी आलोचना की । तुर्की का, महासंघ में सदस्य के तौर पर समावेश किये जाने के प्रयास यानी जर्मनी के लिए ‘रेड लाईन’ होने की स्पष्ट चेतावनी उन्होंने दी ।

जर्मनी के पीछे पीछे फ़्रेंच जनता में भी युरोपीय महासंघ के ख़िलाफ़ असंतोष बढ़ रहा होने का चित्र सामने आया है । ब्रिटन की ‘युनिव्हर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग’ द्वारा आयोजित किये गए एक सर्व्हे में, फ़्रेंच नागरिकों ने महासंघ की सदस्यता के मुद्दे पर सार्वमत लेने के लिए सर्वाधिक समर्थन दिया है । तक़रीबन ५३ प्रतिशत फ़्रेंच नागरिकों ने ब्रिटन के नक्शेकदम पर चलते हुए फ़्रान्स में भी महासंघ के मुद्दे पर सार्वमत लिया जाये, ऐसी राय ज़ाहिर की । फ़्रान्स की दाहिनी विचारधारा की ‘फ़्रंट नॅशनल’ इस पार्टी की प्रमुख मारि ले पेन ने इस सर्व्हे का स्वागत किया है ।

गत कुछ महीनों से निर्वासितों की समस्या के मुद्दे को लेकर महासंघ की नींव डाँवाडोल हो रही होने की बात लगातार सामने आ रही है । युरोप के बहुसंख्य देशों द्वारा निर्वासितों की नीति को ठुकराया जाना, ‘शेन्गेन’ व्यवस्था को दी हुई स्थगिती इन जैसी बातों से महासंघ के मतभेद स्पष्ट रूप में सामने आ रहे हैं । महासंघ के कुछ सदस्य देशों में हुए चुनावों के नतीजों में से भी युरोप में महासंघ के ख़िलाफ़ तीव्र असन्तोष होने की बात सामने आयी है । इस पार्श्वभूमि पर, महासंघ के आधारस्तंभ ही माने जानेवाले जर्मनी-फ़्रान्स जैसे देशों में से भी सार्वमत की माँग शुरू होना, यह महासंघ के लिए बहुत ही बड़ा सदमा साबित हो रहा है ।

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